सोशल मीडिया पर फील-गुड ज्ञान के साइड इफेक्ट, दुख को और बढ़ा सकता है इंफ्लूएंसर

ऋतु सिंह | Updated:Oct 10, 2022, 01:13 PM IST

सोशल मीडिया पर फील-गुड ज्ञान का साइड इफेक्ट, दुख को और बढ़ा सकता है इंफ्लूएंसर  

World Mental Health Day: सोशल मीडिया पर कई बार ऐसे ज्ञान दिए जातें हैं जिसका पॉजिटिव कम निगेटिव इफेक्ट्स ज्यादा होता है.

डीएनए हिंदीः कई बार ऐसा होता है कि फिल गुड ज्ञान कई बार परिस्थितियों के अनुसार हर किसी के लिए फील गुड नहीं करती. खास कर सोशल मीडिया पर आए दिन शेयर होने वाले ज्ञान हर किसी को नहीं भाते. 

अभी वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे पर सोशल मीडिया पर किसी ने दुख से उबरने के लिए ज्ञान दिया कि जीवन में कुछ भी खोने पर दुखी न हो क्योंकि जब भी कोई पेड़ एक पत्ता खोता है तो एक नया पत्ता उसकी जगह ले लेता है. ठीक उसी तरह किसी ने सलाह दी कि गुस्सा कभी नहीं होना चाहिए. 

झुंझलाट पैदा कराता है 

लेकिन इस ज्ञान का जरूरी नहीं कि हर इंसान पर पॉजिटिव असर हो. कई बार ऐसे मैसेज सामने वाले के दुख को और बढ़ा सकते हैं या अच्छा महसूस नहीं कराते. मनोवैज्ञानिक भी मानते हैं कि सोशल मीडिया पर आने वाली ज्ञान की बातें कई बार सामने वाले के मन में झुंझलाट पैदा करती है और उसका असर उसके दिमाग पर अच्छा नहीं पड़ता. 

दुख स्ट्रांग बनाता है

ब्रिटिश दार्शनिक एलेन डी बॉटन का कहना है कि दुख और सुख दोनों ही अनुभव करना जरूरी होता है क्योंकि ऐसा संभव नहीं है कि किसी को दुख कभी न हो और वह उससे उबरने के लिए संघर्ष न करें. उनका कहना है कि दुख के बाद सुख का अनुभव भी तभी होता है. दुखी रहने वाला इंसान जब इससे उबरता है तो वह पहले से ज्यादा स्ट्रांग होता है और नई चुनौतियों का आसानी से मुकाबला कर लेता है. 

ज्ञान भरे मैसेज दुख बढ़ाते हैं

लेकिन ऐसा तभी संभव होता है जब इंसान खुद उस दुख या दर्द से निकलना चाहता है. किसी के कहने या सोशल मीडिया पर ज्ञान का भंडार उसे और हतोत्साहित कर सकता है. क्येांकि कई बार दुख से निकलने के दौरान ऐसे मैसेज उसके दर्द को और कुरेद सकते हैं. 

कामेडी का पंच दुख दूर करता है

वहीं अगर ऐसे मैसेज या वीडियो सोशल मीडिया पर आते हैं जिसमें कॉमेडी हो तो सामने बैठे व्यक्ति का तनाव खुद ब खुद कम होने लगाता है. हाल ही में एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें मां अपने बच्चों को कभी चप्पल तो कभी झाड़ू से पिटती नजर आई थीं. ये कॉमेडी के तौर पर पेश किया गया था जिसमें मां और बच्चों के संबंधों को दिखाया गया था. कमेंट में लिखा गया था कि बच्चे को मां के जूते ही समझते हैं. ऐसे वीडियो दिमाग को खुश करते हैं लेकिन ज्ञान के मैसेज से व्यक्ति दुखी होता है. 

पुरानी बचपन की यादे सुख देती हैं लेकिन सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर के मैसेज फील गुड हर बार कराएं ये जरूरी नहीं. तो अगली बार सोशल मीडिया पर कुछ भी फील गुड ज्ञान पोस्ट करने से पहले एक बार जरूर सोचें कि क्या आपका ये फील गुड मैसेज हर किसी को खुश करेगा या केवल आपको अच्छा लगा इसलिए आप इसे पोस्ट कर रहे हैं. 

(Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें.) 

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