डीएनए हिंदीः देश की राजनीति में मुलायम सिंह यादव का एक अलग ही स्थान और कद था. कभी इस कद्दावर नेता को हराने के लिए विरोधी दल तमाम तरह के उपाय किया करते थे, लेकिन कभी कामयाब नहीं हो सके.
82 साल की उम्र में गुड़गांव के मेदांता में नेताजी ने अंतिम सांस ली लेकिन उनकी यादें हमेशा ही लोगों को याद आती रहेंगी. उनकी यादों के खजाने से एक किस्सा ये भी है कि कभी यूपी के चुनाव में उनको हराने के लिए विरोधी पार्टियों ने उनकी नाम से ही तीन मुलायम को उतारा था. इस किस्से के जरिये चलिए आज नेताजी को श्रद्धांजलि दें.
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यूपी की सियासत के दांव पेंच में एक बार मुलायम सिंह यादव को भी उलझाने का प्रयास किया गया था. उनके तीन विधानसभा सीट से तीन और मुलायम नाम के प्रत्याशी उतरे गए थे ताकि उनका वोट कंफ्यूजन में कट सके.
बता दें कि मतदाताओं को कन्फ्यूज करने के लिए मुलायम सिंह यादव के साथ एक नहीं दो बार ऐसा हुआ था कि चुनाव के दौरान उनकी सीट से मुलायम नाम के दूसरे प्रत्याशी उतारे गए थे और तब मुलायम अपनी ही नामराशि के मुलायम से चुनाव में लड़े थे.
पहली बार 1989 में आया जब जसवंत नगर विधानसभा से मुलायम ने पर्चा भरा था तो उन्हीं की नाम राशि वाला एक व्यक्ति मुलायम सिंह यादव उनके खिलाफ खड़ा हुआ था. तब मुलायम ने मतदाताओं कंफ्यूजन से बचाने के लिए अपने नाम में पिता का नाम भी जोड़ दिया था. मुलायम ने अपने पिता का नाम सुघड़ सिंह जोड़ कर विरोधी मुलायम को चरखा दावं की पटखनी दी थी. बैलेट पेपर पर उनका नाम छपा मुलायम सुघड़ सिंह यादव था.
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दो साल बाद 1991 में भी जसवंतनगर सीट से जब वह खड़ें हुए तो फिर से यहां पर ऐसे व्यक्ति को टिकट दिया गया जिसका नाम मुलायम सिंह यादव था.
मुलायम सिंह यादव जब साल 1993 के चुनाव में एक साथ तीन सीटों से चुनाव लड़ने की ठानी थी और वह इटावा जिले की जसवंतनगर, फिरोजाबाद की शिकोहाबाद और एटा जिले की निधौली कलां सीटों से पर्चा भरे थे. बता दें कि उस पर तो स्थिति इतनी विकट थी कि तीनों ही सीटों से मुलायम के खिलाफ उनकी नाम राशि वाले प्रत्याशी उतार दिए गए थे.
हालांकि, बता दें कि नाम से उलझाने की राजनीति मुलायम के खिलाफ कभी काम नहीं आ सकी थी और वह हर चुनाव को जीतते गए थे.
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