Divorce Law : कोर्ट में तलाक के लिए अर्जी लगाने से पहले जान लें, केवल इन आधार पर मिलता है डिवोर्स

ऋतु सिंह | Updated:Dec 26, 2022, 12:31 PM IST

Divorce Law : कोर्ट में तलाक के लिए अर्जी लगाने से पहले जान लें, इन आधार पर मिलता है डिवोर्स

Divorce: हिंदू विवाह अधिनियम के तहत क्या आप जानते हैं कि तलाक़ के 8 आधार क्या हैं?

डीएनए हिंदीः हिंदू धर्म में विवाह को 7 जन्मों का रिश्ता माना जाता है और कहते हैं जोड़ियां उपर वाला ही तय कर देता है. ऐसे में यह जरूरी हैं कि सभी को अपना जीवनसाथी सपनों और उम्मीदों पर खरा मिले. कई बार विवाह के बाद तलाक लेने तक की नौबत आ जाती है लेकिन क्या आपको पता है कि किन आधार पर तलाक मान्य होता है और कोर्ट आपके फैसले पर मोहर लगती है?

हिंदू विवाह अधिनियम में तलाक के लिए 8 आधार तय किए गए हैं. यानी विवाह में अगर 8 प्रकार की समस्याओं में से कोई एक भी दिक्कत हो तो उसके आधार पर कोर्ट में तलाक के लिए अर्जी लगाई जा सकती है. तो चलिए जानें ये आधार हैं क्या़?

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हिंदू विवाह अधिनियम,1955 में विवाह विच्छेद का आधार:

हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत विवाह विच्छेद की प्रक्रिया दी गई है जो कि हिंदू, बौद्ध, जैन तथा सिख धर्म को मानने वालों पर लागू होती है. इस अधिनियम की धारा-13 के तहत विवाह विच्छेद के निम्नलिखित आधार हो सकते हैं:

व्यभिचार (Adultry)
यदि पति या पत्नी में से कोई भी किसी अन्य व्यक्ति से विवाहेतर संबंध स्थापित करता है तो इसे विवाह विच्छेद का आधार माना जा सकता है.

धर्मांतरण (Proselytisze)
यदि पति पत्नी में से किसी एक ने कोई अन्य धर्म स्वीकार कर लिया हो.

मानसिक विकार (Unsound Mind)
पति या पत्नी में से कोई भी असाध्य मानसिक स्थिति तथा पागलपन से ग्रस्त हो और उनका एक-दूसरे के साथ रहना असंभव हो.

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शादी से बाहर यौन संबंध (Sex outside Marriage)

अगर पति या पत्नी किसी का भी शादी से बाहर किसी गैर से यौन संबंध हो और यह साबित हो जाए तो इस आधार पर भी तलाक के लिए अर्जी दी जा सकती है. 

क्रूरता (Cruelty) 
पति या पत्नी को उसके साथी द्वारा शारीरिक, यौनिक या मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है तो क्रूरता के तहत इसे विवाह विच्छेद का आधार माना जा सकता है.

परित्याग (Desertion)
यदि पति या पत्नी में से किसी ने अपने साथी को छोड़ दिया हो तथा विवाह विच्छेद की अर्जी दाखिल करने से पहले वे लगातार दो वर्षों से अलग रह रहे हों.

इसके अलावा अधिनियम की धारा-13B के तहत आपसी सहमति को विवाह विच्छेद का आधार माना गया है.
विशेष विवाह अधिनियम, 1954 (Special Marriage Act, 1954) की धारा-27 में इसके तहत विधिपूर्वक संपन्न विवाह के लिये विवाह विच्छेद के प्रावधान दिये गए हैं. हालांकि इन दोनों अधिनियमों में से किसी में भी इर्रीट्रीवेबल ब्रेकडाउन ऑफ मैरिज को विवाह विच्छेद का आधार नहीं माना गया है.

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इर्रीट्रीवेबल ब्रेकडाउन ऑफ मैरिज (Irretrievable Breakdown of Marriage): 
ऐसे वैवाहिक संबंध निष्फल होते हैं तथा इनका जारी रहना दोनों पक्षों को मानसिक प्रताड़ना देता है. उसे इर्रीट्रीवेबल ब्रेकडाउन ऑफ मैरिज कहा जाता है. के आर. श्रीनिवास कुमार बनाम आर. शमेथा मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने विभिन्न न्यायिक निर्णयों की जांच करते हुए इर्रीट्रीवेबल ब्रेकडाउन ऑफ मैरिज को संविधान के अनुच्छेद-142 का प्रयोग करते हुए विवाह विच्छेद का निर्णय दिया था.

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने इस निर्णय में कहा कि जिन मामलों में वैवाहिक संबंध पूर्ण रूप से अव्यवहार्य, भावनात्मक रूप से मृतप्राय यानी जिसमें सुधार की कोई संभावना न हो तथा अपूर्ण रूप से टूट चुके हों उन्हें विवाह विच्छेद का आधार माना जा सकता है. ऐसे वैवाहिक संबंध निष्फल होते हैं तथा इनका जारी रहना दोनों पक्षों को मानसिक प्रताड़ना देता है.

सहमति से तलाक की ये है प्रक्रिया 
आपसी सहमति से तलाक की अपील तभी संभव है जब पति-पत्नी सालभर से अलग-अलग रह रहे हों. पहले दोनों ही पक्षों को कोर्ट में याचिका दायर करनी होती है. दूसरे चरण में दोनों पक्षों के अलग-अलग बयान लिए जाते हैं और दस्तखत की औपचारिकता होती है. तीसरे चरण में कोर्ट दोनों को 6 महीने का वक्त देता है ताकि वे अपने फैसले को लेकर दोबारा सोच सकें.कई बार इसी दौरान मेल हो जाता है और घर दोबारा बस जाते हैं. छह महीने के बाद दोनों पक्षों को फिर से कोर्ट में बुलाया जाता है. इसी दौरान फैसला बदल जाए तो अलग तरह की औपचारिकताएं होती हैं. आखिरी चरण में कोर्ट अपना फैसला सुनाती है और रिश्ते के खत्म होने पर कानूनी मुहर लग जाती है.
 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 

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