कितनी सच थी पृथ्वीराज और संयोगिता की प्रेम-कहानी?

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Nov 24, 2021, 01:27 PM IST

जयचंद की बिटिया और कन्नौज की राजकुमारी संयोगिता को पृथ्वीराज की वीरता से प्यार हो गया.

डीएनए हिन्दी : वह सपनों सी कहानी थी. एक ख़ूबसूरत सजीला राजा और बेइंतहा ख़ूबसूरत राजकुमारी. युवा राजा की वीरता के चर्चे आम और राजकुमारी के सौन्दर्य पर लिखी जाती इबारतें...

यह कहानी किसी और की नहीं दिल्ली के आखिरी राजपूत राजा पृथ्वीराज और उनकी प्रेमिका सह पत्नी संयोगिता की है.

राय पिथौरा के नाम से भी प्रसिद्द पृथ्वीराज चौहान दिल्ली और अजमेर के राजा थे, जिनकी वीरता के क़िस्से उन दिनों आम थे. संयोगिता के पिता जयचंद कन्नौज के राजा थे.

कैसे हुआ प्यार?

 कहा जाता है कि सभी राजाओं पर अपनी वीरता स्थापित करने के लिए जयचंद ने राजसूय यज्ञ किया पर दिल्ली के शासक पृथ्वीराज ने जयचंद की प्रभुता मानने से इंकार कर दी. यह उन दोनों के बीच दुश्मनी का आग़ाज़ था.

इसी दरमियान जयचंद की बिटिया और कन्नौज की राजकुमारी संयोगिता को पृथ्वीराज की वीरता से प्यार हो गया. क़िस्सों के मुताबिक़ एक चित्रकार ने संयोगिता की तस्वीर पृथ्वी राज को दिखाई और संयोगिता को पृथ्वीराज के क़िस्से सुनाये.

क़िस्से तो यह भी कहते हैं जब राजा जयचंद ने संयोगिता का स्वयंवर आयोजित किया तो पृथ्वीराज से अपनी दुश्मनी साबित करते हुए उसकी मूर्ती दरबान की तरह लगवायी, ताकि पृथ्वीराज का अपमान हो सके. संयोगिता ने उस मूर्ती को वरमाला पहना दी. वहां पृथ्वीराज भी छिपकर मौजूद थे. मूर्ती पहनाने के बाद वे संयोगिता को साथ लेकर आ गये.

सवाल यह उठता है कि इसमें कितना क़िस्सा है, कितनी सच्चाई?

सच या झूठ?

पृथ्वीराज और संयोगिता के बारे में विस्तृत वर्णन चंदवरदाई की लिखी हुई किताब पृथ्वीराज रासो में मिलता है. चंदवर दाई पृथ्वीराज के दरबारी कवि और मित्र थे.

कई ऐतिहासिक सूत्रों और दशरथ शर्मा सरीखे विद्वानों का मानना है कि पृथ्वीराज तिलोत्तमा अप्सरा जैसी सुन्दर किसी स्त्री से प्रेम करते थे, जो गंगा के तट पर बसे शहर में रहती थी. यह धारणा पृथ्वीराज के जीवनकाल में लिखी गयी संस्कृत काव्य कृति ‘पृथ्वीराज विजय’ पर आधारित है. इसमें  संयोगिता का नाम का नाम तो नहीं है पर स्थान और अन्य चीज़ें मिलती हैं. कहा जाता है कि यह काव्य कश्मीर के संस्कृत कवी जयनक का रचा हुआ था.

इतिहास संयोगिता के नाम पर भले ही एक मत न हो पर पृथ्वीराज के समय की दो महत्वपूर्ण रचनाएं पृथ्वीराज के गंगा किनारे की राजकुमारी से प्रेम -प्रसंग की पुष्टि करती हैं...

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