पृथ्वी पर गंगा विष्णु के आदेश से राजा शांतनु की पत्नी होंगी और शिवजी से उनका सदा संपर्क बना रहेगा.
- दिनेश कुमार मिश्र
गंगा के पृथ्वी पर अवतरण के सम्बंध में ब्रह्मवैवर्त पुराण में एक बहुत ही रोचक संदर्भ आता है. इसके अनुसार भगवान विष्णु की लक्ष्मी, गंगा और सरस्वती तीन पत्नियां थीं जो प्रेमपूर्वक समान भाव से उनके निकट रहती थीं. एक बार गंगा विष्णु को देखती हुई बार-बार उन पर कटाक्ष कर रही थी और विष्णु भी उनके संकेतों का प्रसन्न मुद्रा में उत्तर दे रहे थे. सरस्वती से यह सब सहन नहीं हुआ और लक्ष्मी के समझाने के बाद भी उनका क्रोध कम नहीं हुआ. उन्होंने विष्णु को उलाहना दिया जो स्त्री अपने पति के प्रेम से वंचित है उसका जीवन व्यर्थ है. अपने शरीर त्याग की धमकी देकर सरस्वती ने यह भी कहा कि उसके निर्दोष होने पर भी उसका वध करने का आप पर आरोप आएगा और जो पुरुष अपनी निर्दोष स्त्री का वथ करता है उसे एक कल्प तक नरकवास करना पड़ता है चाहे वह सर्वेश्वर विष्णु ही क्यों न हो. सरस्वती के इस तरह के कठोर वचन वचनों को सुन कर विष्णु ने कुछ विचार किया और वहां से उठ कर चले गए.
सरस्वती का गंगा को श्राप?
विष्णु के सभा से चले जाने के बाद वाणी की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती ने गंगा को बहुत बुरा भला कहा और उनके बालों को खींचना चाहा. लक्ष्मी के बीच बचाव से ऐसा नहीं हो पाया. इस पर सरस्वती और भी कुपित हो गईं और लक्ष्मी को शाप दिया कि गंगा का विपरीत आचरण देख कर भी वह सभा के बीच वृक्ष और नदी की तरह बिना कुछ बोले खड़ी रही अतः तू नदी और वृक्ष का रूप धारण करेंगी इसमें संशय नहीं है. लक्ष्मी फिर भी शांत रहीं और स्थिर होकर खड़ी रहीं और सरस्वती का प्रतिवाद नहीं किया. लक्ष्मी को सांत्वना देते हुए तब गंगा ने उनसे कहा कि सरस्वती वाणी की अधिष्ठात्री होते हुए भी अत्यंत झगड़ालू हैं. महाकोप करने वाली उस देवी की बातों पर ध्यान मत दो. इतना कह कर गंगा ने सरस्वती को शाप दिया कि जिस ने रोष भरे शब्दों में लक्ष्मी को शाप दिया है वह स्वयं भी नदी रूप में हो जाए और नीचे मृत्यु लोक, जहां पापियों का समूह निवास करता है, जाकर वहां रहे तथा कलयुग में उनके पापांशों को भी प्राप्त करे, इसमें संशय नहीं है. यह सुन कर सरस्वती ने गंगा को भी शाप किया कि,' तू ही पृथ्वी पर जाएगी और पापियों के पाप को प्राप्त करेगी.' इस तरह से तीनों देवियां पारस्परिक कलह के कारण शाप ग्रस्त हो गई.'
विष्णु ने किया निवारण
कूछ समय बाद विष्णु पुनः सभाकक्ष में लौट आये और अपनी पत्नियों के कलह का रहस्य सुनकर अपनी दुखी स्त्रियों को संबोधित करते हुए कहा कि लक्ष्मी पृथ्वी पर जाकर राजा धर्मध्वज की कन्या तुलसी बनेंगी. यहां विष्णु के ही अंश शंखचूड़ से उनका विवाह होगा. तुलसी वहां वृक्ष का भी रूप धारण करेंगी और वह पद्मावती ( यह नारायणी अथवा गंडक नदी का दूसरा नाम है) नदी के रूप में प्रवाहित होंगी. उन्होंने गंगा से कहा कि भारती के शापवश तुम्हें भी पृथ्वी पर जाना पड़ेगा जहां तुम विश्वपावनी भागीरथी नदी बन कर रहोगी. पृथ्वी पर गंगा विष्णु के आदेश से राजा शांतनु की पत्नी होंगी और शिवजी से उनका सदा संपर्क बना रहेगा. सरस्वती को भी विष्णु ने भारतवर्ष में नदी बनने का आदेश दिया और शाप की समाप्ति पर ब्रह्मा के यहां जाकर रहने को कहा.
विष्णु के वचनों को सुनकर तीनों देवियां बहुत व्यथित हुईं. सरस्वती का कहना था कि उत्तम स्वभाव वाले पति द्वारा त्यागी हुई स्त्रियां कहां जीवित रहती हैं? मैं भारत में योग द्वारा निश्चित रूप से शरीर त्याग दूंगी. गंगा ने भी विष्णु से अपना अपराध पूछा और शरीर त्याग देने का प्रस्ताव किया. लक्ष्मी ने उत्तम स्वभाव वाले विष्णु से क्षमादान के लिए प्रार्थना की और पूछा कि भारत में पापी लोग मुझमें स्नान करके मुझे अपना पाप दे जाएंगे तब फिर किसके द्वारा पाप से मुक्त होकर मैं यहां आपके स्थान पर वापस आ सकूंगी? वृक्ष रूप से मेरा उद्धार कब होगा? गंगा जब भारत में जाएगी तो वह शाप से कब मुक्त होगी और इसी प्रकार सरस्वती कब शाप से मुक्त होकर आपके पास आएगी? सरस्वती को ब्रह्मा के पास और गंगा को शंकर के पास मत भेजिए. सबको क्षमादान दे दीजिए.
विष्णु ने लक्ष्मी से कहा कि वह तीनों को समानता प्रदान करेंगे. सरस्वती कला मात्र से नदी बनकर भारत चली जाए और ध्यान से से ब्रह्मा के घर जाएं और पूर्णेश पूर्णेश से मेरे पास रहें. इसी तरह गंगा भगीरथ के सतप्रयत्न से अपने कलांश से त्रिलोकों को पवित्र करने के लिए भारत जाएं और अपने पूर्णांश से मेरे पास रहें, वहां उन्हें भगवान शंकर का दुर्लभ मस्तक भी प्राप्त होगा और वह पहले से भी ज्यादा पवित्र हो जाएंगी. तुम स्वयं भारत में पद्मावती नाम की नदी और मां तुलसी नामक वृक्ष होकर रहो. कलयुग में पांच सहस्त्र वर्ष व्यतीत होने पर तुम लोग नदी भाव से मुक्त हो जाओगी और फिर मेरे पास यहां लौट आओगी. देहधारियों को संपत्ति की प्राप्ति में विपत्ति कारण होती है क्योंकि संसार में बिना विपत्ति का सामना किए किसी को भी गौरव नहीं होता. मेरे मंत्रों की उपासना करने वाले सज्जनों के स्नान करने से तुम पापियों के स्पर्शजन्य पापांश से छुटकारा पा जाओगी.
अब पांच हज़ार साल बीत चुके हैं, अब क्या होगा?
अब वापस अपने धरातल पर लौटें. कलयुग के पांच सहस्त्र वर्ष तो पूरे हो चुके हैं और सरस्वती विष्णु के पास वापस जा चुकी है. गंगा का समय भी पूरा हो चुका है, वह विष्णु के पास जाना चाहती है या नहीं पर पृथ्वी वासियों ने अपनी तरफ से उनके जाने का प्रबंध पूरा करने में कोई कसर नहीं उठा रखी है. पापियों द्वारा फैलाया गया प्रदूषण, बेतरह बांधों के निर्माण और धारा के प्रवाह को पूर्णतया अथवा आंशिक रूप से मोड़ कर सदानीरा नदियों को मौसमी बनाने का कुचक्र जारी है. काशी में बहने वाली गंगा में गंगा का शायद ही कोई अंश बचा हो. ऐसा विश्वास किया जाता है कि वहां बहने वाली नदी का पानी यमुना का है. गंगा के पानी को तो कबका सोख लिया गया है. यह क्रम जारी रहा तो बिहार में प्रवेश के समय बची-खुची गंगा महज एक नाला बन कर रह जाएगी. परोपकार के उदाहरण के रूप में कभी नदियों के प्रवाह की मिसाल दी जाती थी और जब परोपकार शब्द ही अपना अर्थ खो चुका हो तो प्रवाह की चिंता किसे होगी? हमारे पास बहुत कम समय बचा है जो हम अपनी प्रकृति के मूल तत्वों, जंगल, नदियों और पहाड़ों की रक्षा कर सकें. नदियों को हमारी परंपरा ने माता का स्थान दिया है. माता, माता होती है. वह कभी संसाधन नहीं होती. संसाधनों का दोहन होता है, माता का नहीं. इस परिभाषा के अंतर को समझना होगा. इस दिशा में जितना शीघ्र कदम उठाया जाए उतना ही उत्तम होगा.
(दिनेश कुमार मिश्र प्रसिद्ध नदी-शास्त्री हैं. बिहार की नदियों पर लिखी गयी इनकी पुस्तकें और किया गया काम उल्लेखनीय है.)
((यहाँ दिये गये विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)