पता ही नहीं चलता लेकिन 500 की जगह अकाउंट से कब 1000 से लेकर 1500 रुपये निकल जाते हैं. जागते तब हैं जब बजट पूरी तरह बिगड़ जाता है.
इंडिया डिजिटल दुनियाभर में सबसे तेजी से हुआ है. इसने न केवल खरीदारी आसान कर दी है, बल्कि पेमेंट को भी आसान कर दिया है. अब अगर आपके हाथ में मोबाइल है और अकाउंट में पैसे हैं तो आपको इधर-उधर न तो ATM तलाशने की जरूरत पड़ती है और न ही सब्जी वाले से लेकर रेहड़ी-पटरी वाले को पैसे देने की. लेकिन इन सबके बीच कुछ लोग बहुत परेशान हैं, क्योंकि उनकी जेब नहीं बल्कि अकाउंट बहुत तेजी से खाली हो रहा है.
अब एटीएम में लंबी कतार नहीं लगती है. लेकिन धीरे-धीरे ही सही लोग ये जरूर कहने लगे हैं कि पता ही नहीं उनका अकाउंट कब खाली हो जाएगा. वहीं दूसरा वर्ग ऐसा है जो यूपीआई पेमेंट के जरिए अपनी बचत को बढ़ा रहा है. पिछले दिनों बहुत बड़े वर्ग पर तो नहीं लेकिन 276 लोगों पर आईआईटी दिल्ली ने एक सर्वे किया है. जिसमें पता चला है कि UPI पेमेंट के कारण खर्च जरूरत से ज्यादा बढ़ गया है.
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आईआईआईटी दिल्ली के असिस्टेंट प्रोफेसर ध्रुव कुमार ने अपने छात्रों के साथ एक छोटा सा सर्वे किया. जिसमें 18 साल से अधिक उम्र के 270 से अधिक लोगों को शामिल किया था.
हालांकि इस सर्वे का दूसरा स्वरूप भी सामने आया है कि न केवल लोग यूपीआई के द्वारा खर्च कर रहे हैं. बड़े-बड़े किराना स्टोर और दुकानों और रेस्टोरेंट से इतर रेहड़ी पटरी वाले यूपीआई से पेमेंट ले भी रहे हैं. चाहें वो चाय की दुकान हो या फिर गर्मियों में मटका बेचने वाले या फिर बात करें सब्जी बेचने वाले भी पेमेंट यूपीआई से ले रहे हैं.
करेंसी से UPI पेमेंट तक
आईआईटी के इस सर्वे में यूपीआई पेमेंट के फायदे और नुकसान के साथ साथ कई सवाल पूछ गए. जिसमें इस बात की पुष्टि हुई कि जब जेब में करेंसी होती थी तो नोट खर्च होते ही बचाने की चिंता बढ़ जाती थी. लेकिन यूपीआई पेमेंट से पता ही नहीं चलता और खर्च ज्यादा हो जाता है. हालांकि 74 फीसदी लोगों ने ही माना है कि खर्च बढ़ रहे हैं.
आशा ने बताया कि, "मुझे पता नहीं कि मेरे वॉलेट में आखिरी बार नोट कब थे. खरीदारी करनी हो या फिर मेट्रो की सवारी मैं यूपीआई पेमेंट का ही सहारा लेती हूं. नोट हाथ में आते ही लगता है बहुत खर्च कर दिया. "
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वहीं, कृष्ण ने बताया कि हाथ में नकदी से लगातार याद रहता है कि खर्च ज्यादा हो रहा है अभी तो जेब में 1000 रुपये थे लेकिन अब इतने ही रह गए हैं. चूंकि पेमेंट से पैसे गिनने की चिंता नहीं रहती है इससे आराम तो है लेकिन खर्च बढ़ गया है.
लेकिन हमारी मुलाकात उन लोगों से भी हुई जो यूपीआई से काफी खुश हैं. ग्रेटर नोएडा में सब्जी बेचने वाली राधा कहती हैं, " जितने पैसे सब्जी बेच के आते हैं वो दूसरे दिन सब्जी खरीदने और हर दिन के हमारे खर्चे में चले जाते हैं. लेकिन सब्जी खरीदने आने वाले कुछ लोग यूपीआई से पेमेंट कर जाते हैं जिससे वो बैंक में पैसे चले जाते हैं जिसे हम महीने में एक बार चेक करते हैं और इससे हमारी बचत हो रही है.
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दुगुने से भी ज्यादा हुए UPI से ट्रांजैक्शन
देश पूरी दुनिया को डिजिटल अपनाने की सलाह दे रहा है और कई देशों में तो भारतीय यूपीआई को सराहा भी गया है.
बता दें कि आज देश में करीब 84 करोड़ से अधिक लोग इंटरनेट से जुड़े हैं. वहीं 100 करोड़ से अधिक मोबाइल फोन को यूज करते हैं जिसमें 60 करोड़ लोग स्मार्ट फोन यूज करते हैं. केंद्रीय मंत्री श्याम जाजू अपने एक लेख में लिखते हैं कि भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था 2025 तक एक ट्रिलियन डॉलर को पार कर जाएगी ऐसी संभावना है. वह नवभारत टाइम्स के अपने लेख में लिखते हैं कि शहर हो या गांव, छोटे खुदरा व्यापारी हों या फिर बड़े सभी यूपीआई का उपयोग कर रहे हैं. मूंगफली बेचने वाले से लेकर बड़े रेस्टोरेंट तक क्यूआर कोड का उपयोग कर रहे हैं. आरबीआई ने अपनी कंपाउंड एनुअल रिपोर्ट में ग्रोथ रेट 147 परसेंट बताया है और कहा है कि 2017 -18 में यूपीआई से ट्रांजैक्शन 920 मिलियन में हुआ था जो 2022 -23 में बढ़कर 83.75 बिलियन का हो गया है.
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