डीएनए हिंदी: किसी भी जंग को जीतने के लिए सबसे मजबूत हथियार माने जाते हैं तोप. जिनकी तोपों से ज्यादा हथियार-गोले निकलते हैं, युद्ध में उनकी जीत तय. एक ऐसा भी हथियार है, जिसकी मारक क्षमता तोप की तुलना में कहीं ज्यादा है. तोप की आसमान में क्षमताएं सीमित होती हैं लेकिन इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेलगन, कहीं भी कुछ भी तबाह करने में सक्षम होती है.
रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेलगन (EMRG) बनाने की दिशा में आगे बढ़ चुका है. इसे और आधुनिक बनाने की दिशा में काम जारी है. बारूद की जगह इसमें इलेक्ट्रो मैग्नेटिक फील्ड का इस्तेमाल किया जाएगा. इससे फायर होने वाले गोले की रफ्तार ध्वनि से भी 6 से 7 गुनी तेज होगी.
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रेलगन के प्रोजेक्टाइल की गति 4,600 मील प्रति घंटे की रफ्तार तक हो सकती है. इस रेलगन दागने के लिए किसी विस्फोटक या प्रणोदक (Propellants) की जरूरत नहीं पड़ती है बल्कि लेजर और गतिज ऊर्जा (Kinetic energy) के जरिए इनसे निकलने वाला इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड ही दुश्मन को तबाह करने के लिए काफी है.
अलग-अलग वेरिएंट पर हो रहा है काम
DRDO के अधिकारियों ने कहा है कि उन्होंने इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेलगन में 12 मिमी स्क्वायर बोर की क्षमता वाले वेरिएंट पर काम किया है. आने वाले दिनों में 30 मिमी वेरिएंट पर काम किया जाएगा.
10 मेगाजूल के कैपेसिटर बैंक के साथ रेलगन को विकसित करने की कोशिश की जाएगी. DRDO आने वाले दिनों में 1 किलोग्राम प्रोजेक्टाइल को 2,000 मीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से फायर करने की तकनीक पर भी काम किया जाएगा. सेना को इसी हाल में भविष्य के ये हथियार सौंपे जाएंगे.
क्या होती हैं इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेलगन?
रेलगन्स की गिनती भारत के सबसे घातक हथियारों में होती है. यह बड़े से बड़े ऑब्जेक्ट को आसानी से फायर करने में सक्षम है. इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेलगन किसी ऑब्जेक्ट को बेहद तेज रफ्तार से दाग सकता है, जो निशाने पर जाकर तबाही मचा सकता है.
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अमेरिकी नौसेना जिस प्रोटोटाइप रेलगन प्रोजेक्टाइल को ध्वनि की गति से छह गुना तेज कर सकता है. यह दुनिया के किसी भी हथियार से ज्यादा खतरनाक है. इसकी रफ्तार करीब 5,400 मील प्रति घंटे से भी ज्यादा हो सकती है.
कैसे काम करते हैं इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेलगन?
इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेलगन के काम करने का तरीका दूसरे हथियारों से बेहद अलग है. पुणे में ARDE ने 10 एमजे कैपेसिटर बैंक के बेस पर रेलगन बनाया है. इसे पावर टेक्नोलॉजी के जरिए ऑपरेट करने लायक बनाया गया है. इस फ़ैसिलिटी का इस्तेमाल 2,000 मीटर प्रति सेकेंड से ज्यादा हाइपर वेलोसिटी (hypervelocity) प्रोपल्शन बनाने के लिए किया जाएगा. यह प्रयोग एक गतिशील प्लेटफॉर्म पर किया गया था. रेलगन में 10 एमजे के एक ऑब्जेक्ट का इस्तेमाल किया गया था. इसके परीक्षणों और काम करने के तरीकों पर भी गौर किया गया.
अलग-अलग फायरिंग के अलग-अलग नतीजे सामने आए हैं. इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेलगन के जरिए 12 मिमी से लेकर 45 मिमी तक के फायर ऑब्जेक्ट दागे जा सकते हैं. इनका वजन 80 ग्राम, 120 ग्राम, 250 ग्राम और 500 ग्राम तक हो सकता है.
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इस सिस्टम के काम करने का तरीका अलग है. इलेक्ट्रिक करंट के जरिए इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड पैदा की जाती है, इसके बाद गतिज ऊर्जा पैदा होती है. रेलगन की फायरिंग स्पीड ध्वनि की रफ्तार से करीब 6 से 7 गुना ज्यादा हो सकती है. रेलगन्स सही तरीके से काम करे इसके लिए प्रोजेक्टाइल को कंट्रोल करना होता है, जिससे इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिशन को जरूरत के हिसाब से ब्लॉक किया जा सके.
तोप से कितना अलग होता है इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेलगन?
एक तोप की तुलना में, रेलगन किसी चमत्कार से कम नहीं है. तोप की रेंज 50-60 किलोमीटर तक की होती है. रेलगन की मारक क्षमता 200 किलोमीटर तक होती है. रेलगन के जरिए दुश्मनों के फाइटर जेट्स को हवा में ही तबाह किया जा सकता है. समुद्र में भी दुश्मन जहाजों पर इससे हमला किया जा सकता है और बचा भी जा सकता है. इसमें बारूद का कम से कम इस्तेमाल होता है जो इसे और खास बना देता है.
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