युद्ध भले ही सीमाओं के लिए और दो या उससे अधिक देशों के बीच हो, लेकिन इसकी विभीषिका को शब्दों में नहीं बांधा जा सकता. प्रायः ये देखा गया है कि युद्ध जीतने के उद्देश्य से लड़ रहे देशों द्वारा कई बार ऐसे हथकंडे अपनाए जाते हैं जो मानवता और मानवाधिकार की बातों पर सवालिया निशान खड़े करते हैं. ये हथकंडे कितने क्रूर होते हैं? अगर इसे समझना हो तो हम TOS-2 Tosochka नाम से मशहूर उस हथियार को देख सकते हैं जिसका इस्तेमाल रूस अपने दुश्मन यूक्रेन के खिलाफ कर रहा है.
TOS-2 Tosochka मल्टीपल रॉकेट लॉन्चर सिस्टम है. जिसमें थर्मोबेरिक वॉरहेड लगाया जाता है. ये हथियार कितना घातक है इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि ये रॉकेट्स जहां गिरते हैं, उसके आसपास की ऑक्सीजन खींच लेते हैं जिससे दुश्मन को सांस लेने में भारी दिक्कतों को सामना करना पड़ता है.
कल्पना कीजिये कि दुश्मन किसी बंकर में छुपा हो और वहां ये रॉकेट्स गिरें तो उस स्थिति में दुश्मन का क्या हाल होगा? जाहिर है सांस लेने के उद्देश्य से दुश्मन बाहर आएगा और मारा जाएगा.
जानकारी के मुताबिक रूस की सेना साल 2021 से TOS-2 Tosochka का इस्तेमाल कर रही है. माना जाता है कि रॉकेट सिस्टम में 220 मिलिमीटर कैलिबर के 18 रॉकेट होते हैं. इनकी रेंज 10 किलोमीटर होती है.
ऊपर जिक्र थर्मोबेरिक हथियारों का हुआ है तो सबसे पहले हमारे लिए ये समझना जरूरी हो जाता है कि आखिर थर्मोबेरिक हथियार हैं क्या? कैसे ये दुश्मन के लिए एक बड़ी चुनौती हैं? बताते चलें कि थर्मोबेरिक हथियार जिन्हें वैक्यूम बम (Vaccume Bomb) भी कहा जाता है बेहद घातक होते हैं.
डिफेंस एक्सपर्ट्स की मानें तो जैसे ही ये फटते हैं प्रेशर वेव निकलती है जिससे काफी गर्मी उत्पन्न होती है और जिस जगह ये गिरे होते हैं वहां ऑक्सीजन कम हो जाती है. मामले ऐसे भी देखे गए हैं जहां इनके गिरने के बाद इनसे निकले केमिकल सैनिकों की सांस के जरिए शरीर में चले गए जिसने उनके फेफड़ों तक को फाड़ दिया.
रक्षा विशेषज्ञ इस बात पर भी एक मत हैं कि किसी भी देश की आंतरिक सुरक्षा के लिहाज से ये बेहद महत्वपूर्ण हथियार हैं. ऐसे में भारत जो विश्व गुरु बन कर उभर रहा है. आने वाले वक़्त में इस टेक्नोलॉजी को अपना सकता है और इन हथियारों का इस्तेमाल कर चीन या पाकिस्तान जैसे दुश्मनों को उन्हीं की भाषा में जवाब दे सकता है.