ISRO के SSLV ने उड़ान भरकर रचा इतिहास, आपदा अलर्ट देने वाली सैटेलाइट लेकर गया 'छुटकू', जानें 10 खास बात

Written By कुलदीप पंवार | Updated: Aug 16, 2024, 10:50 AM IST

ISRO SSLV ने अपनी फाइनल डेवलपमेंटल उड़ान भी सफलता से पूरी कर ली है. 

ISRO Satellite Launch Updates: भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो के सैटेलाइट ले जाने वाले सबसे छोटे रॉकेट SSLV की तीसरी और फाइनल डेवलपमेंटल फ्लाइट सफल रही है. यह रॉकेट आज अपने साथ धरती की निगरानी करने वाली एक सैटेलाइट लेकर गया है.

ISRO Satellite Launch Updates: धरती से मंगल तक अनूठे कारनामे कर चुकी भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो (ISRO) आज एक नया इतिहास रच दिया है. आज (शुक्रवार 16 अगस्त) इसरो के सैटेलाइट ले जाने वाले सबसे छोटे स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (Small Satellite Launch Vehicle) यानी SSLV रॉकेट ने सुबह 9.33 बजे अपनी तीसरी और ऐतिहासिक फाइनल उड़ान आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस रिसर्च सेंटर में सफलतापूर्वक पूरी कर ली है. SSLV के मिशन (ISRO SSLV-D3-EOS-08 Mission) अपने साथ तीने पेलोड्स वाली सैटेलाइट लेकर गया है, जो आकाश में रहकर धरती की निगरानी करेगी और आपदा के आने से पहले ही अलर्ट देगी. इस मिशन की सफलता के साथ ही इसरो का 500 किलोग्राम तक के वजन की सैटेलाइट लॉन्च करने वाले सबसे छोटे रॉकेट के डेवलपमेंट का इतिहास रच दिया है.

इसरो का यह मिशन बेहद खास है. आइए 10 पॉइंट्स में बताते हैं आपको SSLV और उसके मिशन की खास बातें-

1. पहले 15 अगस्त को भरनी थी उड़ान

इसरो ने अपने SSLV की तीसरी और फाइनल डेवलपमेंटल उड़ान के लिए पहले 15 अगस्त का दिन तय किया था, लेकिन बाद में वेदर रिपोर्ट और कुछ अन्य टेक्नीकल कारणों से इसे बदल दिया गया था. नए समय में 16 अगस्त की सुबह 9.17 बजे से 1 घंटे की विंडो उड़ान के लिए तय की गई थी. इसरो के 'छुटकू' रॉकेट ने इस विंडो के बीच ही सफल उड़ान भर ली है. इसरो के Small Satellite Launch Vehicle (SSLV) की तीसरी और आखिरी डेवलपमेंट फ्लाइट थी, जिसका नाम SSLV-D3-EOS-08 रखा गया था. 

2. क्या है इसरो के 'छुटकू' की खासियत

इसरो का 34 मीटर लंबा रॉकेट अपने साथ 500 किलोग्राम वजन तक की सैटेलाइट को लेकर उड़ान भर सकता है. यह भारत का सबसे छोटा रॉकेट है, जिसके चलते इसे 'छुटकू' भी कहते हैं. छोटे साइज के बावजूद यह सैटलाइट को धरती की सतह से 500 किलोमीटर ऊपर तक यानी पृथ्वी की सबसे निचली कक्षा में स्थापित कर सकता है. 

3. फरवरी में भरी थी SSLV ने पिछली उड़ान

इसरो ने कॉमर्शियल यूज के इरादे से SSLV रॉकेट डिजाइन किया है. फाइनल उड़ान से पहले इसने जनवरी 2023 में अपनी पहली उड़ान भरी थी. यह उड़ान उस दिन आसमान में भेजे गए PSLV-C58/XpoSat के साथ हुई थी. इसके बाद फरवरी 2023 में SSLV ने अपनी दूसरी टेस्ट फ्लाइट को सफलता से पूरा किया था. दूसरी फ्लाइट में SSLV को GSLV-F14/INSAT-3DS के साथ भेजा गया था. पहली दोनों उड़ान सफल रहने के बाद आज इसे अकेले अपनी फाइनल उड़ान भरने का मौका दिया गया था, जो सफल रही है.

4. SSLV लेकर गया है ऐसी सैटेलाइट, जो आपदा आने से पहले देगी जानकारी

SSLV रॉकेट के जरिये इसरो ने एक अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट (EOS-8) लॉन्च की है, जो आपदा आने से पहले ही उसका अलर्ट धरती पर भेज देगी. यह सैटेलाइट धरती पर हो रही गतिविधियों की निगरानी में भी काम आएगी. इस सैटेलाइट में तीन खास पेलोड्स लगाए गए हैं, जिनमें एक इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल इंफ्रारेड पेलोड (EOIR), दूसरा ग्लोबल नेवीगेशन सैटेलाइट सिस्टम रिफ्लेक्टोमेटरी पेलोड (GNSS-R) और तीसरा सिलकॉन कार्बाइड अल्ट्रावायलट डॉजीमीटर (SiC UV Dosiemeter) है. यह सैटेलाइट Microsat/IMS-1 बेस पर बनाई गई है.

5. सैटेलाइट में लगाए गए हैं कैमरे से मिलेगी बेहद मदद

सैटेलाइट में लगाया गया EOIR दरअसल एक लॉन्ग रेंज इंफ्रारेड कैमरा है, जो दिन और रात, दोनों समय साफ फोटोज ले सकता है. यह दो तरह से फोटो ले सकता है, पहली मिड-वेव इंफ्रारेड रेंज (MIR) और दूसरी लॉन्ग वेव इंफ्रारेड (LWIR) बैंड्स में. यह कैमरा धरती की निगरानी के काम आएगा. इससे एकतरफ देश की सुरक्षा में मदद मिलेगी तो दूसरी तरफ आपदाओं पर नजर रखने, पर्यावरण से जुड़ी सभी सूचना देना और अन्य आपदाओं की स्थिति में रेस्क्यू मिशन चलाने में भी यह काम आएगा.

6. दूसरे पेलोड से मिलेगी ये मदद

सैटेलाइट के दूसरे पेलोड यानी GNSS-R से रिमोट सेंसिंग बेस्ड एप्लिकेशंस में मदद मिलेगी. इसका उपयोग समुद्री सतह पर हवा के विश्लेषण, मिट्टी की नमी का आकलन, हिमालयी इलाके में स्टडी करने, बाढ़ की पहचान करने और इनलैंड वाटर बॉडीज की निगरानी करने में किया जा सकता है.

7. तीसरा पेलोड आएगा इस काम

सैटेलाइट का तीसरा पेलोड यानी SiC UV Dosimeter इसरो के महत्वाकांक्षी गगनयान मिशन (Gaganyaan Mission) में काम आएगा. यह गगनयान मिशन में क्रू मॉड्यूल के व्यूपोर्ट पर UV विकिरण की निगरानी करेगा और गामा रेडिएशन की हाई-डोज पकड़ में आने पर अलार्म सेंसर की तरह काम करेगा.

8. करीब एक साल तक चलेगा इस सैटेलाइट का मिशन

इसरो की सैटेलाइट को पूरा साल चलने वाले मिशन के तौर पर डिजाइन किया गया है. आसमान में खुद को एक्टिव रखने के लिए इस सैटेलाइट में सोलर पैनल लगे हैं, जो करीब 420 वाट बिजली पैदा करते हैं.

9. इसरो को सैटेलाइट लॉन्च के कॉमर्शियल बाजार में उतरने में मदद मिलेगी

इसरो के SSLV रॉकेट को सफलतापूर्वक तैयार करने से उनके कॉमर्शियल सैटेलाइट लॉन्च मार्केट में उतरने के प्लान को पूरा करने में मदद मिलेगी. दरअसल SSLV के साथ छोटे सैटेलाइट को लॉन्च करना लागत के हिसाब से बेहद सस्ता साबित होगा. इससे इसरो की कॉमर्शियल विंग न्यू इंडिया स्पेस लिमिटेड दुनिया की तमाम कंपनियां और छोटे देशों को इस 'छुटकू' के जरिये अपनी सैटेलाइट लॉन्च कराने को तैयार कर सकती है और यह इसरो के लिए बड़ा बाजार साबित होगा.

10. क्या था तीसरी उड़ान में सैटेलाइट भेजने का असली मकसद

इसरो के EOS-8 मिशन का असली मकसद एक माइक्रोसैटेलाइट डिजाइन करना था. साथ ही माइक्रोसैटेलाइट बस के साथ ही कम्पैटिबल पेलोड उपकरण बनाना भी इसका मकसद था ताकि भविष्य में ऑपरेशनल सैटेलाइट्स के लिए नई तकनीक ईजाद की जा सके.

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