Guru Teg Bahadur Prakash Parv 2022 : कौन थे गुरु तेग बहादुर, जिनकी जयंती पर PM Modi करेंगे लाल क़िले से सम्बोधित 

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Apr 21, 2022, 08:54 AM IST

Guru Tegh Bahadur Jayanti 2022 : कौन थे गुरु तेग बहादुर? सिख धर्म में क्या था उनका स्थान? लीजिए पूरी जानकारी

डीएनए हिंदी : गुरु तेग बहादुर के जन्म को आज 401 साल हो जाएंगे. वे सिखों को नवें और सबसे प्रभावशाली गुरुओं में एक थे. गुरु तेग बहादुर खालसा पंथ शुरू करने वाले दसवें गुरु गोविन्द सिंह के पिता भी थे. पंजाब के अमृतसर में 1621 ई० में पैदा हुए गुरु तेग 1665 से 1675 में अपनी क़ुर्बानी तक सिखों के गुरु रहे. 

सिख धर्म का निडर योद्धा कहा जाता था गुरु तेग को 
गुरु तेग बहादुर(Guru Tegh Bahadur) को सिख धर्म के निडर योद्धा का मान मिला हुआ ही. वे छठे गुरु हरगोबिंद के सबसे छोटे बेटे थे. गुरु तेग को उनकी बहादुरी के साथ उनकी विद्वता के लिए भी मान मिलता था.   उनके 115 भजन गुरु ग्रन्थ साहिब में संकलित हैं. गौरतलब है कि गुरु ग्रन्थ साहिब सिख धर्म की मानद धार्मिक पुस्तक है. 

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धर्म की रक्षा के लिए दी जान 
गुरु तेग बहादुर(Guru Tegh Bahadur) जिस वक़्त सिख धर्म की बागडोर संभाल रहे थे, वह मुगलों के प्रादुर्भाव का वक़्त था. देश में बड़ी आबादी पर छठे मुग़ल बादशाह औरंगजेब का शासन था. औरंगजेब न केवल अपने साम्राज्य का विस्तार कर रहे थे बल्कि बड़े पैमाने पर देश भर की जनता को धर्म परिवर्तन के लिए भी बाध्य कर रहे थे. गुरु तेग ने औरंगजेब के इस हुक्म को मानने से मना कर दिया था और लगातार सिख धर्म के प्रचार-प्रसार में लगे हुए थे. इस बात पर औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर की हत्या का फरमान ज़ारी कर दिया.

दिल्ली में शहीदी हुई थी गुरु तेगबहादुर की  
तत्कालीन मुग़ल बादशाह औरंगजेब के आदेश पर दिल्ली में गुरु तेग बहादुर के सर को कलम कर दिया गया था.  दिल्ली के पवित्र शीश गंज साहिब(Gurudwara Sis Ganj Sahib) और रकाब गंज साहिब गुरुद्वारे (Gurdwara Rakab Ganj Sahib) वे जगह हैं जिन्हें उनकी शहीदी से जोड़ा जाता है. माना जाता है कि गुरु तेगबहादुर औरंगजेब के धर्म परिवर्तन अभियान के सख्त खिलाफ थे और उन्होंने मुग़ल बादशाह के कई भगोड़ों को भी पनाह दी थी. 

गुरु तेग बहादुर के बाद गुरु गोविन्द सिंह ने संभाली धर्म की बागडोर 
जब गुरु तेग की मृत्यु हुई उनके बेटे गोविन्द सिंह(Guru Govind Singh) केवल 9 साल के थे. उन्हें उस उम्र में धर्म की बागडोर सौंपी गई. गुरु गोविन्द सिंह ने बाद में औरंगजेब की सेना से टक्कर लेने के लिए सशस्त्र खालसा पंथ की शुरूआत की थी.  

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