इस पेड़ से पैदा हुई थी शिवजी की ये बेटी, नाम मिला अशोक सुंदरी

Written By हिमानी दीवान | Updated: Nov 22, 2021, 04:58 PM IST

भगवान शिव

शिव ही शुरुआत हैं और शिव ही अंत. शिव को आदियोगी और तपस्वी भी कहा जाता है और उनके गृहस्थ जीवन की भी मिसाल दी जाती है. वह क्षमाशील भी हैं और क्रोधी भी.

डीएनए हिंदी. भगवान शिव को शुरुआत, कालापन और शून्यता के रूप में वर्णित किया जा सकता है जहां से सब कुछ शुरू हुआ और अंत में सब कुछ खत्म हो जाएगा. शिव को लंबे समय से एक तपस्वी, एक योगी या यहां तक कि आदियोगी के रूप में वर्णित किया गया है. अपने उदार वरदानों, क्षमाशील स्वभाव, सादा जीवन के साथ-साथ अपने क्रोध के भय के लिए जाने जाने वाले शिव एक जटिल इकाई हैं.

शिव ही शुरुआत हैं और शिव ही अंत. शिव को आदियोगी और तपस्वी भी कहा जाता है और उनके गृहस्थ जीवन की भी मिसाल दी जाती है. वह क्षमाशील भी हैं और क्रोधी भी. वह भोले भी और उनका तीसरा नेत्र खुल जाए, तो सृष्टि का विनाश भी हो सकता है. वह जितने सरल हैं उतने ही जटिल भी. शिव महिमा को समझना इतना आसान नहीं है. शिव पुराण में उनकी पूरी जीवन यात्रा का वर्णन मिलता है. उनके संन्यासी होने से लेकर गृहस्थ जीवन में दाखिल होने तक , शिव से जुड़ी हर कथा शिव पुराण में है.

वैसे भी शिव भक्त अपने प्रिय भोले भंडारी के बारे में काफी कुछ जानते ही हैं. मसलन शिव जी का पार्वती जी से ब्याह हुआ था. उनके दो पुत्र भी हुए गणेश और कार्तिकेय. कम ही लोगों को मालूम होगा कि शिवजी की बेटी भी थी- अशोक सुंदरी. अशोक सुंदरी की कहानी गुजरात जैसे राज्यों में काफी मशहूर है. अशोक सुंदरी कार्तिकेय से छोटी थीं , लेकिन गणेश से बड़ी थीं.

पद्म पुराण में अशोक सुंदरी के जन्म की कहानी दर्ज है. बताया जाता है कि एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से दुनिया के सबसे सुंदर बगीचे को देखने की इच्छा जाहिर की. इस पर शिव उन्हें नंदनवन ले गए. वहां मां पार्वती को कल्पवृक्ष से लगाव हो गया. कल्पवृक्ष मनोकामना पूरी करने वाला वृक्ष है. माता पार्वती अपने एकाकीपन को दूर करना चाहती थी. इसके लिए उन्होंने कल्पवृक्ष से बेटी की कामना की. तब कल्पवृक्ष से अशोक सुंदरी का जन्म हुआ. 

उसे अशोका कहा गया क्योंकि उसने माता पार्वती को उनके शोक यानी दुख से मुक्ति दिलाई थी. सुंदरी इसलिए कहा गया, क्योंकि वह माता पार्वती की तरह ही बेहद सुंदर थीं. इसके अलावा उनके बारे में ये भी बताया जाता है कि जब गणेश का सिर काट दिया गया था, उस वक्त अशोक सुंदरी अपनी माता के क्रोध से डर कर नमक के बोरे के पीछे छिप गई थीं. कई जगहों पर चैत्र मास में अशोक सुंदरी को याद करते हुए नमक का त्याग किया जाता है.