Chanakya Niti: इस तरह आचार्य चाणक्य ने प्रकृति के उदाहरण से बताया है जीवन का गूढ़ सत्य

Written By शांतनू मिश्र | Updated: Jul 15, 2022, 11:09 PM IST

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Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य ने प्रकृति जैसे पेड़-पौधे, जानवर आदि का उदाहरण देते हुए मनुष्य को जीवन के गूढ़ रहस्यों से अवगत कराया है

डीएनए हिंदी: Chanakya Niti- आचार्य चाणक्य का नाम विश्व के श्रेष्ठतम विद्वानों में लिया जाता है. वह न केवल एक शिक्षक थे बल्कि एक महान रचनाकार भी थे. उनके द्वारा रचित चाणक्य नीति ने कई दशकों से मनुष्य जाति का मार्गदर्शन किया है. चाणक्य नीति में बताई गई शिक्षा का पालन करने वाले न केवल देश में हैं बल्कि विदेशों में भी कई लोग हैं जो सफल जीवन के लिए इन नीतियों का पालन करते हैं. राजनीति, कूटनीति, अर्थनीति के साथ-साथ चाणक्य नीति (Chanakya Niti Motivational Quotes) में जीवन की भी कई विशेष मुद्दों को आचार्य जी ने शामिल किया है. उन्होंने लोगों को कुछ ऐसे छिपे हुए सत्य से परिचित कराया है जो शायद है कोई सोच पाए. आचार्य चाणक्य ने प्रकृति जैसे पेड़-पौधे, जानवर आदि का उदाहरण देते हुए मनुष्य को जीवन के गूढ़ रहस्यों से अवगत कराया है. चाणक्य नीति के भाग में आइए कुछ ऐसे जीवन नीतियों के विषय में जानते हैं.

Chanakya Niti के वह तीन श्लोक जो बताते हैं जीवन का सत्य
 
शैले शैले न माणिक्यं मौक्तिकं न गजे गजे। 
साधवो न हि सर्वत्र चन्दनं न वने वने।।

इस श्लोक के माध्यम से आचार्य चाणक्य बताते हैं कि जिस तरह हर पर्वत पर मणि-माणिक्य या सोना-चांदी प्राप्त नहीं होता है, हर हाथी के मस्तक से मुक्ता-मणि नहीं मिलती है. संसार में व्यक्ति की कमी न होने पर भी साधु पुरुष नहीं मिलते हैं. उसी प्रकार सभी वनों में चन्दन के वृक्ष उपलब्ध नहीं होते हैं. इसलिए व्यक्ति को जीवन में जो प्राप्त होता है उसी में संतुष्ट रहना चाहिए.

कस्य दोषः कुले नास्ति व्याधिना को न पीडितः। 
व्यसनं केन न प्राप्तं कस्य सौख्यं निरन्तरम्।।

दोष किसके कुल में नहीं होता? ऐसा कौन जिसे रोग दुःखी नहीं करता है? किसी को दुख नहीं मिलता और तो कौन हमेशा सुखी रहता है. इसलिए आचार्य चाणक्य (Acharya Chanakya) करते हैं कि जीवन में किसी न किसी चीज की कमी सब जगह रहती है और यही कड़वी सच्चाई है. इसलिए व्यक्ति को हर कमी पर विलाप या दुखी नहीं होना चाहिए. बल्कि उन्हीं में नए अवसर तलाशने चाहिए. 

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प्रलये भिन्नमर्यादा भवन्ति किल सागराः। 
सागरा भेदमिच्छन्ति प्रलयेऽपि न साधव।।

चाणक्य नीति के श्लोक में बताया गया है कि जिस सागर को हम इतना शांत और गम्भीर समझते हैं. प्रलय आने पर वह भी अपनी मर्यादा और गंभीरता को भूल जाता है और किनारों को उजाड़ते हुए सब कुछ क्षत-विक्षत कर देता है. लेकिन श्रेष्ठ और साधु व्यक्ति संकट का पहाड़ टूटने पर भी अपनी मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं करता है. ऐसे ही व्यक्ति को सागर से भी महान का जाता है. 

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 

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