Kabir Jayanti 2022: कबीर दास के इन अनमोल दोहों में छिपे हैं जीवन के कई रहस्य

Written By डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated: Jun 14, 2022, 12:48 PM IST

कबीर दास जी

Kabir Jayanti 2022: संत कबीर दास जी को महान कवियों में गिना जाता है, उनके द्वारा रचित 'कबीर दास के दोहे' आज भी काफी प्रचलित हैं.

डीएनए हिंदी: संत कबीर दास जी (Kabir Jayanti 2022) को महान कवियों में गिना जाता है. उनके द्वारा रचित 'कबीर दास के दोहे' आज भी काफी प्रचलित हैं. बता दें कि जेष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि को इनका जन्म हुआ था. हिंदी साहित्य में और समाज में फैल रही भ्रांतियों और बुराइयों को दूर करने में इनका बहुत बड़ा योगदान था. संत कबीर दास जी को समाज सुधारक और विचारक के रूप में भी जाना जाता है. उनके दोहे (Kabir Das ke Dohe) आम जनमानस भी आसानी से पढ़ सकते हैं. आज भी बच्चों के पाठ्यक्रम के कबीर दास जी के दोहे शामिल किए जाते है. आज यानी 14 जून को कबीर जयंती 2022 मनाई जा रही है. आइए इसी मौके पर पढ़ते हैं संत कबीर दास जी के कुछ अनमोल दोहे.

Kabir Das के दोहे- 1 

बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।

कबीर दास जी के दोहे में कहा गया है कि खजूर के पेड़ के समान बड़ा होने में क्या लाभ है. वह ना तो ठीक से छाया दे पाता है और ना ही फल का आनंद देता है.

कबीर के दोहे- 2

गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाय,
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताए।

इस दोहे में ही कबीर दास जी कह रहे हैं कि गुरु और गोविंद यानी भगवान दोनों मेरे सामने खड़े हैं. लेकिन मैं किसके सबसे पहले चरण स्पर्श करूं? इस पर कबीर दास जी को युक्ति सूझती है और वह कहते हैं कि मैं सबसे पहले गुरु को प्रणाम करूंगा क्योंकि उन्होंने ही मुझे भगवान से परिचय कराया है.

Kabir Das के दोहे- 3

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ पंडित भया न कोई,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होई।

इस दोहे में बताया गया है कि बड़ी-बड़ी पुस्तकों को पढ़कर भी संसार में लोग मृत्यु के द्वार पर तो पहुंच जाते हैं लेकिन सभी विद्वान नहीं हो पाते. कबीर दास जी मानते हैं कि यदि कोई प्रेम या प्यार का ढाई अक्षर ही अच्छी तरह से पढ़ ले तो वह सच्चा ज्ञानी बन जाएगा.

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कबीर के दोहे- 4 

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।

कबीर दास जी कहते हैं कि व्यक्ति लंबे समय तक अपने हाथ में माला लेकर उसे घूमाता रहता है. लेकिन उसके भाव बदलते नहीं हैं. उसका मन शांत नहीं होता है. ऐसे व्यक्ति को कबीर दास जी सलाह देते हैं कि उसे हाथ की माला छोड़कर मन के मोतियों को बदलना चाहिए. 

Kabir Das के दोहे- 5

तन को जोगी सब करें, मन को बिरला कोई,
सब सिद्धि सहजे पाइए, जय मन जोगी होई।

कबीरदास जी कहते हैं भगवा वस्त्र धारण बहुत आसान है. लेकिन मन को योगी बनाना बिरले व्यक्तियों का ही काम है. मन यदि योगी बन जाता है तो सहजता से सिद्धि भी प्राप्त हो जाती है.

कबीर के दोहे- 6

जाति न पूछो साधु की पूछ लीजिए ज्ञान,
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान।

इस दोहे में कबीर दास जी बताते हैं कि सज्जन व्यक्ति की जाति न पूछो, बल्कि उसके ज्ञान को समझ लो. वह इसलिए क्योंकि तलवार का ही मूल्य होता है मयान सिर्फ उसे ढकने का काम करता है.

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