Niti Shatakam: भर्तृहरि मुनि के अनुसार मूर्ख और ज्ञानी व्यक्तियों में यह अंतर होता है

शांतनू मिश्र | Updated:Jun 06, 2022, 04:47 PM IST

नीतिशतक

Niti Shatakam में महर्षि भर्तृहरि ने अपनी नीतियों में जीवन के कुछ ऐसे गूढ़ सत्य बताए हैं जिनको जानना जरूरी है.

डीएनए हिंदी: जीवन में कई ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं जिनसे निकलने के लिए गुरु की आवश्यकता होती है. उनके द्वारा दी गई शिक्षा का अस्तित्व कई वर्षों तक रहता है. भर्तृहरि मुनि उन्हीं शिक्षकों में से एक थे. भर्तृहरि मुनि (Niti Shatakam by Bhartrihari) का नाम संस्कृत के महान कवियों में गिना जाता है. उनके द्वारा रचित शतकत्रय- नीतिशतक, शृंगारशतक, वैराग्यशतक में कई ऐसी बातें बताई गई हैं जिनका प्रभाव कई लोगों के जीवन पर पड़ रहा है. महर्षि भर्तृहरि ने अपनी नीतियों में जीवन के कुछ ऐसे गूढ़ सत्य बताए हैं जिनको जानना जरूरी है. नीतिशतक के इस भाग में जानते हैं मूर्ख और ज्ञानी व्यक्तियों में क्या अंतर है.

स्वायत्तमेकान्तगुणं विधात्रा विनिर्मितं छादानमज्ञतायाः 
विशेषतः सर्वविदां समाजे विभूषणं मौनमपण्डितानाम्।।

भर्तृहरि मुनि के अनुसार अपनी मूर्खता को छिपाने के लिए भगवान ने मूर्ख लोगों को 'मौन' के रूप में अद्भुत सुरक्षा कवच दिया है. विद्वानों से भरी सभा में मूर्खों के लिए 'मौन रहना' आभूषण से कम नहीं है.

परिवर्तिनि संसारे मृतः को वा न जायते ।
स जातो येन जातेन याति वंशः समुन्नतिम्॥

नीतिशतक के अनुसार इस परिवर्तन से भरे व अस्थिर संसार में ऐसा कौन है जिसका जन्म और मृत्यु न होता हो? लेकिन उसी मनुष्य के लिए यथार्थ में जन्म लेना सफलता है जिसके जन्म से वंश के गौरव की वृद्धि होती है. 

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दाक्षिण्यं स्वजने, दया परजने, शाट्यं सदा दुर्जने
प्रीतिः साधुजने, नयो नृपजने, विद्वज्जनेऽप्यार्जवम्।
शौर्यं शत्रुजने, क्षमा गुरुजने, नारीजने धूर्तता
ये चैवं पुरुषाः कलासु कुशलास्तेष्वेव लोकस्थितिः॥

नीतिशतक  में महर्षि भर्तृहरि (Niti Shatakam by Bhartrihari) ने बताया है कि जो व्यक्ति अपनों के प्रति कर्त्तव्य परायणता का निर्वाह करता है, अपरिचितों के प्रति दयालु भाव रखता है, दुष्टों से सदा सावधानी बरतता है, अच्छे लोगों के साथ सद्भावना से पेश आता है,  राजाओं से कुशल व्यव्हार के साथ पेश आता है, विद्वानों के साथ पारदर्शी रूप से अपनी बाते रखता है, शत्रुओं से निडर होकर सामना करता है, गुरुजनों से नम्रता से पेश आता है, महिलाओं के साथ समझदारी दिखाता है; उसपर ही सामाजिक प्रतिष्ठा निर्भर करती है. 

येषां न विद्या न तपो न दानं
ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः।
ते मर्त्यलोके भुवि भारभूता
मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति॥

जो लोग न तो विद्या अर्जित करते हैं न ही तपस्या या साधना करते हैं, न दान करते हैं, न ही ज्ञान के रास्ते पर चलते हैं. जिनका न तो आचरण होता है, न किसी प्रकार का गुण अर्जित करते हैं और न ही धर्म के कार्यों में भाग लेते हैं. वे लोग मृत्युलोक में मनुष्य के रूप में हिरण की तरह भटकते रहते हैं और धरती पर बोझ की तरह होते हैं.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 

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