Sawan Kanwar Yatra 2022: इस तरह हुई थी कांवड़ यात्रा की शुरुआत, जानिए खास बातें

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Jul 10, 2022, 02:05 PM IST

कांवड़ यात्रा 

Kanwar Yatra 2022: कांवड़ यात्रा के कुछ खास नियम हैं जिनका पालन करने से ही यह यात्रा सफल होती है और व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है.

डीएनए हिंदी: Kanwar Yatra 2022- 14 जुलाई को सावन का पवित्र महीना शुरू होने जा रहा है. भगवान शिव को प्रिय इस पवित्र महीने में कई शिव भक्त कांवड़ यात्रा पर निकलते हैं. बता दे कांवड़ यात्रा के दौरान शिवभक्त पवित्र गंगाजल को कांवड़ में भरकर लंबी यात्रा करते हैं और प्रसिद्ध शिवालयों में भगवान शिव पर जल अर्पित करते हैं. मान्यता यह है कि कांवड़ यात्रा से व्यक्ति को पुण्य प्राप्त होता है.  कांवड़ यात्रा (Sawan Kanwar Yatra 2022) करने वाले भक्तों को कांवड़िया कहा जाता है. बता दें कि कांवड़ यात्रा के कुछ खास नियम हैं जिनका पालन करने से ही यह यात्रा सफल होती है और व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है. जिसमें से सबसे महत्वपूर्ण नियम है कि श्रद्धालु कांवड़ को जमीन पर नहीं रखते हैं. कांवड़ यात्रा के भी तीन प्रकार होते हैं. इन तीनों कांवड़ यात्राओं का अपना-अपना महत्त्व है.

इस वर्ष कांवड़ यात्रा 14 जुलाई से लेकर 26 जुलाई तक चलेगी. आइए जानते हैं कैसे हुई थी कांवड़ यात्रा की शुरुआत और क्या हैं इसके खास नियम.

कैसे हुई थी कांवड़ यात्रा की शुरुआत (Kanwar Yatra 2022)

हर क्षेत्र में कांवड़ यात्रा को लेकर कई मान्यताएं प्रचलित हैं. लेकिन हिंदू ग्रंथों में सबसे पहले त्रेता युग में इस यात्रा का वर्णन किया गया है. जब श्रवण कुमार अपने माता-पिता की इच्छा को पूरा करने के लिए कांवड़ यात्रा पर निकले थे. उन्होंने अपने माता-पिता को कांवड़ में बैठाकर हरिद्वार की यात्रा की थी. उन्होंने वहां जाकर गंगा में स्नान किया और वापस लौटते समय गंगाजल लेकर आए और पवित्र शिवलिंग को अर्पित किया. तभी से कांवड़ यात्रा की परंपरा प्रचलित है. इसके साथ कुछ लोग यह भी मानते हैं कि भगवान परशुराम ने गढ़मुक्तेश्वर धाम में से गंगाजल भरकर शिवलिंग पर चढ़ाया था जिसके बाद कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई थी.

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कांवड़ यात्रा के कुछ खास नियम (Kanwar Yatra 2022 Rules)

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कांवड़ यात्रा को पैदल ही पूर्ण किया जाता है. साथ ही भक्तों को कई कठोर नियमों का भी पालन करना पड़ता है. जिसमें सात्विक भोजन, मांसाहार-मदिरा से दूरी, कांवड़ को जमीन पर न रखना इत्यादि शामिल हैं. इसके साथ कांवड़ियों को विश्राम के समय कांवड़ को पेड़ पर लटकाना होता है. अगर गलती से जल का पात्र टूट जाता है या नीचे गिर जाता है तो यह यात्रा असफल हो जाती है और दोबारा गंगाजल भरकर यात्रा शुरू करनी पड़ती है.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 

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