डीएनए हिंदी: वैदिक ज्योतिष में शनि व राहु ( Shani Rahu Upay ) ग्रहों को पाप ग्रह का स्थान प्राप्त है. इन दोनों के संबंध से पिशाच (Pishach Yog) नामक योग की उत्पत्ति होती है. जब भी शनि और राहु संबंध बनाते हैं तो जातक के जीवन में नकारात्मक प्रभाव पड़ सकते हैं. इसलिए इस योग को पिशाच योग वर्णित किया गया है. शनि की राहु पर या राहु की शनि पर दृष्टि हो तब यह योग बनता है. इस युति से जातक चिंतित और निर्बल महसूस करता है. आइए जानते हैं कि शनि और राहु के संबंध बनाने से जातक पर किस तरह के प्रभाव पड़ते हैं और कैसे इस बचाव किया जा सकता है.
शनि व राहु की युति से व्यक्ति के जीवन में हमेशा चिंता रहती है. मन-मस्तिष्क में नकारात्मक विचार आते हैं. शरीर से जुड़ी समस्याएं परेशान करती है. द्वितीय भाव में शनि व राहु के संबंध से व्यक्ति को सभी कार्य में बाधाएं आती रहती हैं. संतान सुख भी प्राप्त नहीं होता है.
चतुर्थ भाव में युति होने से माता का पूर्ण सुख नहीं मिलता है और आर्थिक नुकसान होने की संभावनाएं बढ़ जाती है. पंचम भाग में संबंध उत्पन्न होने से व्यक्ति शिक्षा से दूर भागने लगता है. छठे, सातवें और आठवें भाग में युति से जातक को शत्रु, धोखा और दाम्पत्य जीवन में कलह का सामना करना पड़ता है.
नवम और दशम भाव में युति से व्यक्ति के भाग्य व कारोबार में उथल-पुथल की स्थिति उत्पन्न होती है. ग्यारहवें भाव में आप सट्टे या जुए द्वारा आप धन कमाते हैं और आखिरी भाव में इस संबंध से अनैतिक संबंध बनने की संभावनाएं बढ़ जाती है.
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शनि स्तोत्र का पाठ करें और अमावस्या के दिन जब सूर्य ढल रहा हो उस समय बहते पानी में नारियल प्रवाहित करें
शनि व राहु के हवनात्मक जप करें
दुर्गा सप्तशती का विधि पूर्वक पाठ व दशांश करें
संकटमोचन हनुमाष्टक व सुंदरकांड का पाठ नितदिन करें
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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