डीएनए हिंदी: भारत में कई महान धर्म गुरु एवं संतों का जन्म हुआ. 16वीं सदी में राघवेंद्र स्वामी ( Raghavendra Swamy ) उन्हीं प्रभावशाली हिंदू संतों में से एक थे. गुरु राघवेंद्र स्वामी वैष्णववाद (भगवान विष्णु की पूजा) और श्री माधवाचार्य के द्वैत-दर्शन को बढ़ावा दिया था. साल 1595 में शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को जन्में राघवेंद्र स्वामी के कई किस्से प्रचलित हैं. जिनमें से एक है स्वामी जी की आदोनी के नवाब हुई मुलाकात.
जब आदोनी के नवाब ने Raghavendra Swamy को भेंट किया था मांस
एक बार स्वामी राघवेंद्र आदोनी के नवाब से उसके महल में मिलने पहुंचें तो नवाब ने स्वामी जी से उपहार स्वीकार करने के लिए कहा. स्वामी जी ने विनम्र भाव से कहा ' श्री राम वह हर चीज स्वीकार करेंगे जो भक्ति भाव से दी गई हो'. इसके बाद नवाब के नौकरों ने मेज के ठीक बीच में कपड़ों से ढके थाली को रख दिया. जब नवाब ने वह कपड़ा उठाया तो वह थाली मांस के टुकड़ों से भरा हुआ था. इसपर स्वामी जी के अनुयायी जरूर भौचक्के रह गए मगर राघवेंद्र स्वामी जस के तस बैठे रहे. उन्होंने हाथ में जल लिया और मांस से भरी थाली पर उस जल का छिड़काव कर दिया. उस समय सबलोग हैरान हुए जब चमत्कार से मांस ताजे फलों में बदल गए.
तब स्वामी जी ने नवाब से कहा 'देखा नवाब? अल्लाह को पता है उन्हें हमारे भगवान का आदर कैसे करना है. वह हमें हर बार सही राह दिखाते रहेंगे.' इस चमत्कार को देखकर नवाब स्वामी जी के चरणों में गिर गया और सजा देने की गुहार की. इसपर स्वामी जी ने कहा जो वास्तव में पश्चाताप करता है, भगवान राम किसी को भी दंडित नहीं करेंगे. स्वामीजी ने अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए किसी भी तरह का उपहार लेने से इनकार कर दिया लेकिन उन्होंने मांग की कि मनचले (वर्तमान मंत्रालयम) क्षेत्र के आसपास की भूमि, जो नवाब के राज्य का हिस्सा थी, को उनके मठ को सौंप दिया जाए.
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क्यों मंत्रालयम में Raghavendra Swamy ने स्थापित किया था मठ
आदोनी के नवाब ने उन्हें मनचले से अधिक उपजाऊ क्षेत्र देने की पेशकश की मगर राघवेंद्र स्वामी ने तुंगभद्रा नदी के तट पर मंत्रालयम के आसपास के सूखे और बंजर क्षेत्र देने पर ही जोर दिया. वर्षों बाद, उन्होंने एक भक्त से कहा कि यह वही क्षेत्र है जहां राजा प्रहलाद ने द्वापर युग के दौरान भगवान राम के लिए यज्ञ का आयोजन किया था और यही कारण है कि यह एक अत्यंत पवित्र भूमि है. स्वामी जी का मठ तो मंत्रालयम में स्थापित हो गया मगर उन्होंने अपनी आध्यात्मिक यात्रा जारी रखी. मंत्रालयम में, गुरु राघवेंद्र ने सभी भक्तों को अन्नदानम (भोजन दान) को प्रोत्साहित किया. आज भी इस चलन को मठ द्वारा पालन किया जाता है.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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