Mahabharata Secret Revealed: महाभारत युद्ध के दौरान कौन-कौन रहे कौरवों के सेनापति

अनुराग अन्वेषी | Updated:Jul 05, 2024, 11:57 AM IST

महाभारत युद्ध के दौरान अलग-अलग समय में कौरव सेना के कुल 5 सेनापति रहे.

Mahabharata Trivia Revealed: किसी भी युद्ध में सेनापति की भूमिका अहम होती है. पांडव सेना में शुरू से अंत तक धृष्टद्युम्न सेनापति की भूमिका निभाते रहे. लेकिन कौरव सेना में पूरे युद्ध के दौरान कुल 5 सेनापति हुए. कौरव सेना में युद्ध के पहले दिन प्रधान सेनापति के रूप में भीष्म पितामह नियुक्त किए गए था.

18 दिनों तक चला था महाभारत का युद्ध. कौरव और पांडवों की कुल 18 अक्षौहिणी सेना आमने-सामने थीं. दोनों दलों की ओर से सेनापति नियुक्त किए गए थे. पांडवों की सेना में शुरू से अंत तक धृष्टद्युम्न सेनापति की भूमिका निभाते रहे. लेकिन कौरव सेना में पूरे युद्ध के दौरान कुल 5 सेनापति हुए.

पहले सेनापति भीष्म पितामह   

किसी भी युद्ध में सेनापति की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है. कौरव सेना में महाभारत युद्ध के पहले दिन प्रधान सेनापति के रूप में भीष्म पितामह को नियुक्त किया गया था. इस रूप में उन्होंने कुल 10 दिनों तक कौरव सेना का नेतृत्व किया. इस दौरान पांडव सेना को सबसे ज्यादा क्षति भीष्म पितामह ने ही पहुंचाई. 10वें दिन भीष्म पितामह शरशैय्या पर सो गए. 

द्रोणाचार्य ने संभाली कमान

भीष्म पितामह के बाद कौरव सेना की कमान द्रोणाचार्य ने संभाली. सेनापति बनने के तीसरे दिन ही द्रोणाचार्य ने अपने रण कौशल से चक्रव्यूह की रचना की. इसी चक्रव्यूह में अर्जुन पुत्र एकलव्य को घेरकर मारा गया था. एरियल व्यू से देखने पर यह चक्रव्यूह घूमते चक्र की तरह नजर आता था. इसकी खूबी यह थी कि इसमें अंदर प्रवेश करने का रास्ता तो नजर आता था, लेकिन बाहर आने का कोई रास्ता समझ नहीं आता था. द्रोणाचार्य ने अपनी व्यू रचना में उलझाकर और द्रुपद, विराट आदि कई महारथियों का वध किया.


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महाभारत युद्ध के 15वें दिन द्रोणाचार्य का वध छल से धृष्टद्युम्न ने किया. गुरु द्रोण की मृत्यु के बाद कर्ण ने प्रधान सेनापति के रूप में दो दिन तक भयानक संग्राम किया. 17वें दिन अर्जुन से कर्ण का युद्ध शुरू हुआ. इस युद्ध के दौराण कर्ण के रथ का पहिया खून से दलदल में धंस गया. इसी समय अर्जुन ने अपने दिव्यास्त्र से कर्ण का वध कर दिया.


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युद्ध के 17वें दिन ही कर्ण की मौत के बाद कौरव सेना में सेनापति के रूप में शल्य नियुक्त किए गए. शल्य मद्रदेश के राजा थे और रिश्ते में नकुल सहदेव के मामा. महाराज पांडु शल्य के बहनोई थे. किंतु 18वें दिन के युद्ध के पहले पहर में ही युधिष्ठिर के हाथों शल्य भी मारे गए.

खून से तिलक

इस वक्त दुर्योधन युद्ध में भीम के हाथों घायल होने के बाद अंतिम घड़ियां गिन रहे थे, कौरव सेना पूरी तरह समाप्त हो चुकी थी. कौरव सेना में सिर्फ कृपाचार, कृतवर्मा और अश्वत्थामा बचे थे. ऐसे में दुर्योधन ने अपने घायल शरीर के रक्त से अश्वत्थामा का तिलक कर उन्हें सेनापति बनाया था.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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