महाभारत में कई चरित्र ऐसे हैं जो प्रेरक हैं. युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल, सहदेव, कर्ण से लेकर पितामह भीष्म, द्रोणाचार्य विदुर, अश्वत्थामा तक कई नाम हैं, जो अपने गुणों के कारण भारतीय समाज को प्रेरित करते हैं. इन सबमें युधिष्ठिर ऐसे थे जिन्हें धर्मराज की उपाधि मिली हुई है. लेकिन इस धर्मराज से भी कुछ इन्सानी चूकें हुई हैं और इस नाते उनकी आलोचना भी होती है.
पहली चूक युधिष्ठिर ने जुए में द्रौपदी को दांव पर लगाकर की थी. स्त्री का उपयोग वस्तु के रूप में करने को लेकर आज का समाज युधिष्ठिर के इस निर्णय की आलोचना करता है. धर्मराज युधिष्ठिर का दूसरा कृत्य तो लोकोक्ति में तब्दील हो गया और आज के समाज में 'युधिष्ठिरी सच' के रूप में इस्तेमाल होने लगा.
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गुरुद्रोण की व्यूह रचना से पांडवों की सेना जब पस्त पड़ने लगी तो श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को कूटनीति अपनाने को कहा. इसी कूटनीति के तहत प्रसारित किया गया कि अश्वत्थामा मारा गया. गुरुद्रोण को इस बात पर भरोसा नहीं हुआ कि उनका पुत्र अश्वत्थामा मारा गया होगा. तब उन्होंने धर्मराज युधिष्ठिर से पूछा कि क्या अश्वत्थामा मारा गया. इस सवाल के जवाब में युधिष्ठिर ने कहा - अश्वत्थामा हतो, नरो वा कुंजरो वा. मतलब यह कि युधिष्ठिर ने जानते हुए कि अश्वत्थामा नाम का हाथी मरा है, गुरुद्रोण से कहा - अश्वत्थामा मारा गया लेकिन नर नहीं हाथी. युधिष्ठिर जब कह रहे थे - नर नहीं हाथी - तभी श्रीकृष्ण ने शंख फूंककर बहुत तेज आवाज निकाली और इस तेज स्वर में गुरुद्रोण युधिष्ठिर का अंतिम वाक्य नहीं सुन सके. बस, उन्होंने इतना जाना कि अश्वत्थामा मारा गया. युद्धभूमि में ही वे पुत्रशोक में डूब गए और अपने शस्त्र धरती पर रख दिए. तभी पांचाल नरेश द्रुपद के पुत्र और द्रौपदी का जुड़वां भाई धृष्टद्युम्न ने उनका वध कर दिया. इस तरह युधिष्ठिर के एक अधूरे सच ने गुरुद्रोण को मौत के मुंह में धकेल दिया.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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