किष्किंधा के वानर राजा बाली के छोटे भाई सुग्रीव थे और बालि के पुत्र का नाम अंगद था. तो इसी किष्किंधा नरेश ने लंकापति रावण को अपनी कांख में कई दिनों तक दबाए रखा था. ये जानकारियां पंडित अर्जुन शास्त्री ने डीएनए हिंदी के कार्यक्रम 'धर्मयुग' में दीं.
दरअसल, डीएनए हिंदी ने इन दिनों 'धर्मयुग' नाम से एक ऐसे मंच की शुरुआत की है, जहां धर्म से जुड़े आपके हर सवाल का जवाब विशेषज्ञ देते हैं. इस बार के कार्यक्रम में एक पाठक ने पूछा था कि क्या सच में बाली इतना ताकतवर था कि उसने रावण को अपनी पूंछ में बांध रखा था? इस सवाल का जवाब देते हुए पंडित अर्जुन शास्त्री ने बताया कि पूंछ में नहीं, बल्कि बगल में दबाकर रखा था.
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पंडित अर्जुन शास्त्री ने बताया कि तपस्या करने के बाद जब रावण को सारे वरदान प्राप्त हो गए, तो उसने चाहा कि तीनों लोकों पर उसका अधिकार चले. इसके लिए वह सबको जीतने के लिए निकल पड़ा. चराचर को जीतने के बाद अहंकार में डूबे रावण ने बाली को भी जीतने की बात सोची. उसने सुन रखा था कि बाली बहुत शक्तिशाली है. जिस वक्त रावण के मन में यह बात उठी उस वक्त बाली एक वर्ष का अनुष्ठान कर रहे थे. इसी अनुष्ठान के बीच रावण जा पहुंचा बाली के पास और उन्हें ललकारने लगा - तू मुझसे युद्ध कर, तू मुझसे युद्ध कर. तब बालि ने रावण को समझाने की कोशिश की कि अमुक दिन हमारा अनुष्ठान खत्म होगा, उस दिन मैं युद्ध की तुम्हारी इच्छा पूरी करूंगा. लेकिन रावण माना नहीं और बार-बार बालि को उकसाता रहा. तब बालि ने उसे पकड़कर अपनी कांख में दबा लिया और हाथ जोड़कर अपनी आराधना में लगे रहे.
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पंडित अर्जुन शास्त्री बताते हैं कि छह महीने बाद आराधना पूरी होने पर जब बाली ने अपनी बाहें फैलाईं तो रावण मुक्त हो सका और चुपके से भाग निकला. शास्त्री जी ने यह भी जोड़ा की रावण बड़ा राजनीतिज्ञ था. उसने फिर कभी बाली से युद्ध करने की बात नहीं सोची, बल्कि उसने बालि से दोस्ती कर ली.
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