Brihadeshwara Temple: दक्षिण का रहस्यमयी मंदिर, जो 1,000 साल बाद भी बिना नींव के खड़ा है
Temples Of India: तमिलनाडु के तंजौर में बृहदेश्वर मंदिर (Brihadeshwara Temple) का निर्माण 1000वीं सदी में राजा राजराजेश्वर चोल-प्रथम ने कराया था.
कुलदीप पंवार | Updated: Jan 24, 2023, 06:08 AM IST
तंजौर मंदिर करीब 13 मंजिल ऊंचा है, जिनकी ऊंचाई करीब 66 मीटर है. हर मंजिल एक आयताकार शेप में है, जिन्हें बीच में खोखला रखा गया है. देखने में यह मंदिर मिस्र के पिरामिड जैसे आकार का लगता है. आप यह जानकर शायद हैरान रह जाएंगे कि इतनी विशाल और भव्य इमारत बिना किसी नींव के तैयार की गई थी. करीब 1,000 साल बीत जाने के बावजूद बिना नींव का यह मंदिर आज भी बिना किसी नुकसान के खड़ा हुआ है.
तंजौर के इस रहस्यमयी मंदिर को करीब 1.3 लाख वजन के ग्रेनाइट पत्थरों से बनाया गया है, जबकि इस मंदिर के 100 किलोमीटर के दायरे में कहीं भी ग्रेनाइट नहीं मिलता है. माना जाता है कि यह दुनिया का पहला और इकलौता ऐसा मंदिर है, जो केवल ग्रेनाइट पत्थरों से बना था. कहा जाता है कि इन पत्थरों को लाने और 13 मंजिल ऊंचा गर्भगृह खड़ा करने के लिए 3,000 से ज्यादा हाथियों की मदद ली गई थी. इस मंदिर की 13 मंजिलों का निर्माण करने के लिए पत्थरों को आपस में किसी केमिकल, चूने या सीमेंट से नहीं जोड़ा गया बल्कि पत्थरों के खांचे काटकर उन्हें आपस में फंसाकर इतना विशाल निर्माण तैयार किया गया, जो हजार साल बाद भी वैसा ही खड़ा है.
इस मंदिर का सबसे बड़ा रहस्य इसका आर्किटेक्चर यानी वास्तुशिल्प है. इस वास्तुशिल्प के पहले दो रहस्य यानी बिना नींव और बिना जोड़ के निर्माण के बारे में आप जान ही चुके हैं. इस आर्किटेक्चर का तीसरा रहस्य ये है कि इस मंदिर के गुंबद की कोई परछाई नहीं बनती. यह गुंबद करीब 88 टन वजन का है, जिसके ऊपर करीब 12 फुट का स्वर्ण कलश रखा हुआ है. खास बात यह है कि ना तो सूरज की धूप में इस मंदिर के गुंबद का साया जमीन पर दिखाई देता है और ना ही चांद की रोशनी में इसकी परछाई दिखती है. केवल बिना गुंबद के मंदिर की ही परछाई देखने को मिलती है. यह गुंबद एक ही पत्थर से बना हुआ है. ऐसे में इतने भारी पत्थर को इतनी ऊंचाई तक बिना क्रेन से पहुंचाना और ऐसे लगाना कि हजार साल बाद भी नहीं हिले, ये भी अपनेआप में महान इंजीनियरिंग का सबूत है.
मंदिर के गौपुरम में बने चौकोर मंडप के अंदर विशालकाय चबूतरे पर 6 मीटर लंबी, 2.6 मीटर चौड़ी और 3.7 मीटर ऊंची नंदी प्रतिमा है, जो एक ही पत्थर से तराशकर बनाई गई है. यह भारत की महज दूसरी ऐसी नंदी प्रतिमा है, जो एक ही पत्थर से बनी है. करीब 25 टन वजन की यह प्रतिमा मंदिर के साथ नहीं बनाई गई थी, बल्कि इसे 16वीं सदी में विजयनगर के शासकों ने बनवाया था. नंदी की प्रतिमा जिस मंडप में रखी है, उसकी छत नीली और सुनहरे रंग की है. इसके सामने मौजूद इकलौते स्तंभ पर भगवान शिव और उनके वाहन को प्रणाम करते राजा का चित्र है.
इस मंदिर को साल 1987 में यूनेस्को ने अपनी विश्व धरोहरों में शामिल किया था. इस मंदिर में संस्कृत और तमिल भाषा में लिखे अक्षरों की नक्काशी वाले बेहद सुंदर शिलालेख हैं, जिनमें गहनों के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है. इन शिलालेखों में 23 प्रकार के मोती के साथ ही लगभग 11 तरह के हीरे और माणिक की जानकारी दी गई है. इससे पता चलता है कि उस समय भारत का स्वर्ण विज्ञान किस कदर परिष्कृत था.