Dussehra 2024: भारत की 8 जगह, जहां राक्षस नहीं देवता की तरह मंदिर में पूजा जाता है रावण
Ravana Temples in India: रामायण में रावण ने भले ही माता सीता का अपहरण करने जैसा राक्षसी काम किया था, लेकिन वास्तव में वह महापंडित था. इसी कारण भारत के कई हिस्सों में अपनी-अपनी मान्यताओं के आधार पर रावण को पूजा जाता है.
कुलदीप पंवार | Updated: Oct 12, 2024, 01:03 AM IST
उत्तर प्रदेश के दिल्ली से सटे नोएडा (Noida) के ग्रेटर नोएडा वेस्ट (Greter Noida West) में बिसरख गांव स्थित है. बिसरख गांव के लोगों का दावा है कि यह रावण का जन्म स्थल था. ग्रामीणों के मुताबिक, गांव का नाम रावण के पिता विश्रवा मुनि के नाम पर है. यहां ऋषि विश्रवा और उनका पुत्र रावण भगवान शंकर की उपासना करते थे. करीब एक सदी पहले खुदाई में बेहद गहराई पर मिले अद्भुत शिवलिंग को रावण की पूजा वाला शिवलिंग माना जाता है. इस शिवलिंग को यहां मंदिर बनाकर स्थापित किया गया है, जिसमें रावण की भी पूजा होती है. बिसरख गांव के लोग कभी दशहरे पर रावण के पुतले को नहीं जलाते हैं.
राजस्थान के जोधपुर का भी गोधा श्रीमाली समुदाय खुद को रावण का वंशज मानता है. उनकी मान्यता है कि जोधपुर के मंडौर इलाके में रावण की पत्नी मंदोदरी का जन्म हुआ था और यहीं उन दोनों का विवाह हुआ था. यहां किला रोड स्थित अमरनाथ महादेव मंदिर में रावण और मंदोदरी के मंदिर भी बने हुए हैं, जिनमें उनकी पूजा की जाती है. दशहरे के दिन गोधा श्रीमाली समुदाय शोक मनाता है और रावण दहन हो जाने के स्नान करने के बाद फिर से यज्ञोपवीत धारण करते हैं. इस समुदाय का मानना है कि वे लंका में रावण वध के बाद उसके बचे हुए वंशजों का अंश हैं, जो भागकर जोधपुर आ गए थे और यहां बस गए थे.
मध्य प्रदेश के मंदसौर निवासी इसे रावण की पत्नी मंदोदरी का मायका बताते हैं. मान्यता है कि यहीं पर रावण और मंदोदरी का विवाह हुआ था. मंदोदरी के नाम पर ही यह जगह मंदसौर कहलाई. यहां के लोग रावण को दामाद मानते हैं. यहां रावण का मंदिर बना हुआ है, जिसमें उसे रुण्डी नाम से पूजा जाता है. दामाद होने के कारण महिलाएं घूंघट करके रावण की पूजा करती हैं.
उत्तर प्रदेश के कानपुर के शिवाला इलाके के रावण मंदिर के कपाट साल में केवल दशहरे के दिन खोले जाते हैं. दशहरे पर रावण की मूर्ति को पूरे विधिविधान से दूध से स्नान-अभिषेक करने के बाद उसका शृंगार किया जाता है और फिर पूजा-आरती भी की जाती है. यहां तेल के दीये जलाने पर सभी मनोकामनाएं पूरी होने की मान्यता है.
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में भी रावण की पूजा की जाती है. यहां मान्यता है कि बैजनाथ कांगड़ा में ही रावण ने भगवान शिव को तपस्या करके प्रसन्न किया था, जिससे शिव प्रकट हुए थे. इस कारण कांगड़ा के लोग रावण को महाशिव भक्त मानकर उसकी पूजा करते हैं. यहां मान्यता है कि यदि किसी ने रावण दहन किया तो उसकी मौत हो जाएगी.
मेरठ में भी सदर थाने के पीछे स्थित बिल्वेश्वर महादेव मंदिर में भले ही रावण की मूर्ति मौजूद नहीं है, लेकिन दशहरा के दिन यहां भी शोक मनाया जाता है. मान्यता है कि मेरठ का पुरातन नाम मयराष्ट्र था और यह मंदोदरी के पिता मय दानव की राजधानी था. मंदोदरी बिल्वेश्वर महादेव मंदिर में भी भगवान शिव की पूजा करने आती थी. इस कारण मेरठ वासी भी अपने शहर को रावण की ससुराल मानते हैं.