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Rang Panchami 2022: इंदौर के गेर उत्सव का है खास इतिहास, देश-विदेश से देखने आते हैं लोग

इंदौर में होली के पांचवें दिन रंग पंचमी मनाया जाता है. इस दिन शहर के चौक-चौराहों पर होली से भी ज्यादा धूम रहती है.

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  • Mar 22, 2022, 04:14 PM IST

इंदौर में रंग पंचमी उत्सव हर साल धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन को गेर उत्सव भी कहते हैं और इस साल 2 साल के बाद यह उत्सव लोगों ने मनाया है. पिछले 2 साल कोरोना की वजह से आयोजन नहीं हो पाया था. गेर या रंग पंचमी के पीछे की मान्यताओं के बारे में जानें.

1.होल्कर राजवंश से जुड़ी है परंपरा

होल्कर राजवंश से जुड़ी है परंपरा
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कहा जाता है गेर निकालने की परंपरा होलकर वंश के समय से ही चली आ रही है. लेकिन एक कहानी और है जिसे गेर से जोड़कर देखा जाता है जिसे हम आगे बताएंगे. 2 साल से गेर आयोजन नहीं हो रहा था क्योंकि कोविड की पाबंदियां लागू थी.



2.यूनेस्को हेरिटेज में शामिल कराने की कोशिश 

यूनेस्को हेरिटेज में शामिल कराने की कोशिश 
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दो साल पहले गेर को यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज की लिस्ट में जगह दिलाने की कोशिश हुई थी. हालांकि, तब सफलता नहीं मिल पाई थी. इस साल फिर यही कोशिश है. इस साल लोगों ने पूरे धूमधाम से यह आयोजन किया है. यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज सूची में शामिल होने के लिए तीन शर्तें पूरी करना जरूरी है. जैसे कि कई पीढ़ी से चली आ रही परंपरा हो और उसका ग्लोबल कनेक्ट हो. गेर में हिस्सा लेने के लिए देश-विदेश से लोग जुटते हैं.



3.पहलवान के लोटे से जुड़ी है किस्सा

पहलवान के लोटे से जुड़ी है किस्सा
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रंग पंचमी से जुड़े कई किस्से सुनने में आते हैं. शहर के प्रसिद्ध कवि सत्यनारायण सत्तन ने हमारे सहयोगी ज़ी न्यूज को बताया कि कैसे गेर की शुरूआत हुई थी.  उन्होंने बताया कि पश्चिम क्षेत्र में गेर 1955-56 से निकलना शुरु हुई थी. इससे पहले शहर के मल्हारगंज क्षेत्र में कुछ लोग खड़े हनुमान के मंदिर में फगुआ गाते थे एक दूसरे को रंग और गुलाल लगात थे. 1955 में इसी क्षेत्र में रहने वाले रंगू पहलवान एक बड़े से लोटे में केशरिया रंग घोलकर आने-जाने वाले लोगों पर रंग मारते थे. यहां से रंग पंचमी पर गेर खलने का चलन शुरू हुआ था.



4.होल्कर राजवंश से जुड़ी है परंपरा

होल्कर राजवंश से जुड़ी है परंपरा
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कहा जाता है गेर निकालने की परंपरा होलकर वंश के समय से ही चली आ रही है. ऐसी लोककथाएं हैं कि होल्कर राजघराने के लोग पंचमी के दिन बैलगाड़ियों में फूलों और रंग-गुलाल लेकर  सड़क पर निकल पड़ते थे. रास्ते में उन्हें जो भी मिलता था उन्हें रंग लगा देते थे. इस परंपरा का उद्देश्य समाज के सभी वर्गों को साथ मिलकर त्योहार मनाना था. 



5.गेर परंपरा में जुटते हैं लाखों लोग 

गेर परंपरा में जुटते हैं लाखों लोग 
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300 साल से यह परंपरा चली आ रही है. 100 साल पहले सामाजिक रूप से मनाने की शुरुआत हुई थी.  शहरभर में 3000 से ज्यादा पंडाल लगाए जाते हैं  और 1.5 करोड़ से ज्यादा लोग शामिल होते हैं. इंदौर की गेर विश्व भर में प्रसिद्ध है. देश-विदेश से लाखों पर्यटक इस आयोजन में हिस्सा लेने के लिए पहुंचते हैं.



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