इन 3 चीज़ों के लिए जान दे सकते हैं अघोरी, करनी पड़ती है हर शर्त पूरी  

Written By नितिन शर्मा | Updated: Feb 23, 2024, 07:36 PM IST

Facts About Aghoris: अघोरी तब तक सिद्ध नहीं होता जब तक गुरु की दीक्षा नहीं मिल जाए और इसके लिए उन्हें कई मुश्किल साधना और परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है.आइए जानते हैं अघोरी पंथ की 'तिलिस्मी दुनिया का सच' की पांचवी कड़ी में क्या हैं वो दीक्षा की परीक्षा...

खुद को भगवान शिव का अनुयायी मानने वाले अघोर पंथी (Aghor Panth) की दुनिया किसी भी साधु संत की दुनिया से बहुत अलग और कठिन बताई गई है. अघोरी को अपने गुरु और उनके आशीर्वाद के बिना कोई भी सिद्धि प्राप्त नहीं होती है. उन्हें अपने गुरु से दीक्षा प्राप्त करने के लिए कठोर परीक्षा से गुजरना पड़ता है. ये प्रक्रिया आम व्यक्ति को दी जाने वाली दीक्षा या साधु संत और महात्माओं से बेहद अलग और कठोर होती है. तंत्र विद्या के धनी अघोरियों के पंथ में तीन तरह की दीक्षा होती है. यह तीनों दीक्षाओं के लिए गुरु जो भी मांगता है या आदेश देता है, शिष्य को वह पूरा करना पड़ता है. 

आइए जानते हैं अघोरियों का गुरु के प्रति समर्पण से लेकर उनके पंथ में आने वाली तीन तरह की दीक्षाएं कौन सी हैं और अघोरी (Aghori Real Story) उन्हें कैसे प्राप्त करते हैं...
 


यह भी पढ़ेंः कौन था पहला 'अघोरी', जानिए अघोरी पंथ की तिलस्मी दुनिया का सच


हिरित दीक्षा

अघोर पंथ में सबसे पहली हिरित दीक्षा होती है. इसमें अघोरी पंथ पर चलने का फैसला करने वाले लोग सिद्धि (Aghori Sidhi) प्राप्त कर चुके अघोरी को अपना गुरु बनाते हैं. गुरु से गुरु मंत्र या ​बीज मंत्र लेते हैं. गुरु बी​ज मंत्र अपने शिष्य के कान में कहता है. यह एकदम सरल और शुरुआती दीक्षा है. इसे अघोर पंथ पर चलने का फैसला करने वाला कोई भी शख्स ले सकता है. इसमें गुरु और शिष्य के बीच कोई नियम और बंधन नहीं होता है. 

शिरित दीक्षा

हीरित के बाद दूसरी दीक्षा शिरित लेनी होती है. इसमें शिष्य (Aghori Panth) को अपने गुरु को वचन देना पड़ता है. साथ ही कमर, गले या फिर हाथ पर काला धागा बांधना होता है. यह धागा पुरुष को दायीं और स्त्री को बायीं भुजा में बांधकर बीज मंत्र दिया जाता है. इसके बाद गुरु अपने हाथ में जल लेकर शिष्य को आचमन कराता है. गुरु अपने शिष्य को उसके और अपने बीच के कुछ नियम बताता है, जो बेहद जटिल होते हैं. इन नियमों का शिष्य को पालन करना होता है. इसी के बाद वह अगली दीक्षा ग्रहण कर सकता है.  


यह भी पढ़ेंः पीरियड्स के दौरान बनाते हैं यौन संबंध, विचित्र हैं अघोरी परंपराएं


रंभत दीक्षा

इसी कड़ी में तीसरी और आखिरी दीक्षा है रभंत (Rambhat Diksha). इसके नियम भी बेहद कठोर (Aghori Real Story) और मुश्किल भरे होते हैं. अघोरी गुरु रंभत दीक्षा बहुत ही विलक्षण लोगों को देते हैं. इस दीक्षा को ग्रहण करने वाले शिष्य पर गुरु का पूरा अधिकार होता है. शिष्य को किसी भी हाल में गुरु के कही हर बात को पूरी करनी होती है. सिर्फ गुरु की इच्छा के बाद ही शिष्य इस बंधन से मुक्त  हो सकता है.

जो भी अघोरी रंभत दीक्षा तक पहुंचते हैं उनकी गुरुअघोरी कई परीक्षाएं लेते हैं. इसके बाद उन्हें रंभत दीक्षा दी जाती है. 

गुरु संप्रदाय का असल ​अधिकारी बनता है शिष्य

रंभत दीक्षा  (Aghori Diksha) को लेने के बाद ही शिष्य अपने गुरु के संप्रदाय का असल अधिकारी बनता है. उत्तराधिकार प्राप्त शिष्य भी इसी श्रेणी के होते हैं. इस दीक्षा में गुरु अपने शिष्य को अघोरपंथ से जुड़े सभी रहस्य बता देता है. इन्हीं पर चलकर शिष्य ​अघोरपंथ की सिद्धियों को प्राप्त करता है. 

Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

देश-दुनिया की ताज़ा खबरों Latest News पर अलग नज़रिया, अब हिंदी में Hindi News पढ़ने के लिए फ़ॉलो करें डीएनए हिंदी को गूगलफ़ेसबुकट्विटर और इंस्टाग्राम पर.