डीएनए हिंदी: अघोरा चतुर्दशी कठोर साधना एवं शक्ति सिद्धि प्राप्ति के लिए जानी जाती है. इस चतुर्दशी को कई जगहों पर ड्गयाली भी कहा जाता है. अघोरा चतुर्दशी को दो दिन तक मनाया जाता है. पहले दिन को छोटी अघोरी और दूसरे दिन को बड़ी अघोरी चतुर्दशी कहा जाता है.
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार अघोरी चतुर्दशी को अमावस्या भी कहा जाता है क्योंकि ये अगले दिन अमावस्या तिथि पर मनाई जाती है. आइए जानते हैं अघोरी चतुर्दशी से जुड़ी कई विशेष बातें और भगवान शिव को समपर्ति इस व्रत का महत्व.
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इन राज्यों में अघोरी चतुर्दशी है बेहद खास
असम, बंगाल, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, उत्तराखंड, और नेपाल में अघोरा चतुर्दशी का महत्व बहुत ज्यादा होता है. शिव उपासक खासकर अघोर साधकों और तंत्र-मंत्र में रुचि रखने वालों के लिए ये व्रत बहुत खास होता है. इस दिन दुर्वा को पृथ्वी से उखाड़कर रखना बहुत फलदायी माना जाता है.
अघोरी चतुर्दशी पर पितृ पूजा करें
अघोरी चतुर्दशी के दिन उठते ही स्नान कर भगवान शिव का आहृवान करें और गणपति पूजा के बाद शिवजी का ध्यान और पूजा पाठ करने का विधान करें. इस दिन जप करना और पितरों की शांति के लिए दान करना महत्वपूर्ण माना जाता है.
अघोर चतुर्दशी व्रत
शास्त्रों में अघोरी चतुर्दशी के दिन स्नान अपने सभी पितरों को जल और कुश दक्षिण दिशा की ओर मुख करके जल अर्पित करें. इससे जीवन और परिवार में सुख-शांति बढ़ती है. इस दिन भगवान शिव के अघोर रूप की पूजा की जाती है. ये पूजा सात्विक एवं तामसिक दोनों ही रुपों में होती है.
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इस दिन सिद्धियों को पाने के लिए तप किया जाता है. पितरों से संबंधित कार्य किए जाते हैं. इस दिन पितरों की आत्मा की शांति के लिए व्रत रखना और विधि-विधान से उनकी पूजा करना भी बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है.
शास्त्रों के अनुसार प्रत्येक अमावस्या तिथि का स्वामी पितृ हैं, इसलिए इस दिन उनकी पूजा को महत्व दिया जाता है. एक अन्य मान्यता के अनुसार आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में आने वाला पितृ पक्ष अघोर चतुर्दशी के दिन से शुरू होता है, इस कारण से भी इस दिन सभी देवताओं में शिव जी की पूजा करना सबसे अनुकूल समय माना जाता है.
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