अघोरियों की गुप्त तपस्या का ठिकाना है ये मंदिर, मिलती हैं अद्भुत शक्तियां

नितिन शर्मा | Updated:Feb 24, 2024, 05:37 PM IST

Facts About Aghoris: अघोरी साधु संतों की जगह दिन उजाले या रात के अंधेरे में यूं ही दिखाई नहीं देते. अघोरियों की तपस्या (Aghori Tapasya) जितनी कठिन, उतनी ही गुप्त होती है. आइए जानते हैं अघोरी पंथ की 'तिलिस्मी दुनिया का सच' की छठी कड़ी में अघोरियों की तपस्या के गुप्त स्थान...

अघोरी पंथ पर चलने वाले अघोरियों (Aghor Panth) की तपस्या से लेकर उनका रहन सहन बेहद अलग होता है. यह माता काली और भगवान शिव को ही अपना देव और देवी मानते हैं. शिव की तरह शरीर पर भस्म और साधना के दौरान वो मां काली की तरह नर मुंडो की माला पहनते हैं. इनकी दीक्षा (Aghori Diksha) से लेकर तपस्या तक बेहद अलग होती है. अघोरी अपना ज्यादातर समय तंत्र साधना करते हुए ध्यान में लीन रहकर बिताते हैं. अघोरी मुर्दो के साथ ही उठते बैठते और सोते तक हैं. यह हर किसी को आसानी से दिखाई नहीं देते. इसकी वजह अघोरियों का तपस्या से लेकर अनुष्ठान तक बेहद गुप्त तरीके से करना है. अघोरी कुछ विशेष अवसर ग्रहण, पूर्णिमा, अमावस्या और महाशिवरात्रि पर विशिष्ट पूजा करते हैं. लोग जानना चाहते हैं कि आखिर अघोरी (Aghori Real Story) किन गुप्त स्थानों पर अपनी तपस्या (Aghori Tapasya) करते हैं, यह कहां रहते हैं तो (Facts About Aghoris) आइए जानते हैं देश से लेकर विदेश में मौजूद कुछ मंदिर और स्थल जहां अघोरी तंत्र मंत्र साधन के साथ तपस्या करते हैं. 

अघोरियों की तपस्या और अनुष्ठान के लिए प्रसिद्ध हैं ये मंदिर


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दत्तात्रेय मंदिर चित्रकूट

चित्रकूट में स्थित दत्तात्रेय मंदिर त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु, महेश त्रिदेव के रूप से जाना जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, त्रिदेव का जन्म यहीं हुआ था. किशोरावस्था के शुरुआती वर्षों में उन्होंने अपना घर छोड़ दिया था. वह नग्न हालत में  इधर-उधर भटकने लगे थे. अंत में वह अघोरी बन गए. उन्होंने वेद और तंत्र को मिलाने में मदद की थी. इसी के बाद से अघोरी यहां भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करने आते हैं. यहां लंबी तपस्या करते हैं.  

कालीमठ मंदिर

उत्तराखंड रुद्रप्रयाग के सिद्धपीठ में काली मठ मंदिर है, जहां माता सती का पिंड गिरा था. कहा जाता है कि दुनिया भर की यात्रा करने के बाद अघोरी अंत में काली मठ पहुंचते हैं, जिसे सिद्ध पीठ भी माना जाता है. अघोरी अंत में यही के होकर रह जाते हैं और तंत्र मंत्र साधना करने के साथ ही सिद्धियां प्राप्त करते हैं. 

नेपाल का अघोर कुटी

नेपाल के काठमांडू में स्थित अघोर कुटी सबसे पुराने और प्राचीन स्थानों में से एक है. बताया जाता है कि यह मंदिर भगवान राम के भक्त बाबा सिंह शाक द्वारा बनाया गया था. तब से अब तक यह कुटी अपनी सामाजिक सेवाओं के लिए प्रख्यात है. बताया जाता है कि यहां देर रात अघोरी दिखाई देते हैं. वह दिन भर अपनी तपस्या में लीन रहते हैं. 

 


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तारापीठ मंदिर  

पश्चिम बंगाल के रामपुराहाट में स्थित तारापीठ मंदिर छोटा सा मंदिर है. यहां तंत्र साधना के लिए जाना जाता है. देवी सती को यहां तारा देवी के रूप में पूजा जाता है. मंदिर के पास में ही श्मशान घाट है. यहां अघोरी तांत्रिक अनुष्ठानों से लेकर तपस्या करते हैं. कहा जाता है कि यहां पागल संत साधन बामखेपा ने श्मशान घाट में रहकर कई योग और तांत्रिक कला सीखी थी. तभी से यहां अघोरी तंत्र मंत्र का ज्ञान लेने और तपस्या करने के लिए आते हैं. 

कपालेश्वर

मुदैर में स्थित कपालेश्वर मंदिर अघोरियों की पूजा और पाठ के लिए जाना जाता है. यहां मंदिर के पास एक आश्रम है, जहां अघोरी तपस्या और अनुष्ठान करते हैं. यहां भारी संख्या में अघोरी दिखाई देते हैं. यह काफी दिनों तक साधना में लगे रहते हैं. 

दक्षिणेश्वर काली मंदिर

कोलकाता में स्थित दक्षिणेश्वर काली मंदिर कालीघाट के पास स्थित है. कहा जाता है देवी सती की मृत्यु के बाद माता के बाएं पैर की चार उंगलियां इस स्थान पर गिरी थी. इसी वजह से अघोरी यहां तांत्रिक साधना करने और मोक्ष पाने के लिए आते हैं. 
 

Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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