मालवा की महारानी अहिल्याबाई होलकर साहसी होने के साथ ही भगवान शिव की बड़ी भक्त (Lord Shiva Devotee Ahiliyabai Holkar) थी. उन्होंने 250 वर्ष पूर्व इंदौर के पश्चिम क्षेत्र में प्रजा की सुलभता के लिए राजवाड़ा के अंदर राजवंश के कुलदेवता मल्हारी मार्तंड मंदिर में 12 ज्योतिर्लिंग स्थापित किये थे. रानी की स्मृतियों को संजोने के लिए श्रमिक क्षेत्र में श्रीमातेश्वरी अहिल्या शिव मंदिर का निर्माण किया गया, जहां ज्योतिर्लिंगों पर (12 Jyotirling) चांदी चढ़ाई गई. आज भी यहां भक्तों की भारी भीड़ जमा होती है. आइए जानते हैं साहसी होने के साथ ही शिव भक्त रानी अहिल्या बाई होलकर की आखिरी कड़ी में उनके द्वारा स्थापित इस मंदिर की कहानी...
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शिवलिंग दर्शन के साथ रखी है मोहर
राजवाड़ा स्थित मल्हारी मार्तंड मंदिर में आज भी अहिल्याबाई द्वारा स्थापित ज्योतिर्लिंग मौजूद हैं. इनकी दर्शन के लिए भारी संख्या में भक्त आते हैं. जहां ज्योतिर्लिंगों के साथ ही रानी के शासन काल में प्रचलित शिव आर्डर की मोहर देखने को मिलती है. उनके हाथों में दिखने वाला स्वर्ण शिवलिंग भी मंदिर में प्रतिष्ठित है. इसकी पूजा अर्चना हर दिन की जाती है. अहिल्या बाई होलकर ने ज्योतिर्लिंग की स्थापना करने से पहले देशभर में धार्मिंक यात्राएं की थी. इसी दौरान वे 12 ज्योतिर्लिंगों की पिंडियां लेकर यहां आई और इन्हें स्थापित किया. यह मध्यप्रदेश का एकमात्र मंदिर है, जहां उन्हीं के हाथों से स्थापित 12 ज्योतिर्लिंग आज भी मौजूद हैं.
बालू से निर्मित शिवलिंग पर चढ़ाई गई स्वर्ण परत
रानी अहिल्याबाई होलकर ने इंदौर सूबे की बागडोर 29 वर्षों तक संभाली थी. इस दौरान सहासी से लेकर भक्ति और दयालुता के कई भाव उन्होंने दिखाये. न्याय की देवी कही जाने वाली अहिल्या बाई होलकर ने 12 ज्योतिर्लिंग पिड़ियों की स्थापना की थी. उनके हाथों से विराजित शिवलिंग के दर्शन भी यहां होते हैं. बालू से निर्मित शिवलिंग पर स्वर्ण परत चढ़ाई गई है. उनकी मोहर, भाला, कटार, निशासन स्वर्ण छड़ी भी मल्हारी मार्तंड मंदिर में मौजूद है. इनका विजय दशमी पर विशेष पूजन होता है। इस मंदिर का दो करोड़ रुपये खर्च कर जीर्णोद्धार खासगी ट्रस्ट द्वारा 11 मार्च 2007 को किया गया था.
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225 साल पहले अहिल्याबाई की याद में बना मंदिर
इंदौरा के श्रमिक क्षेत्र में देवी अहिल्याबाई होलकर का मंदिर है. बताया जाता है कि यह मंदिर आज से करीब 225 साल पूर्व अहिल्याबाई होलकर की स्मृति के रूप में बनाया गया था. इसे श्रीमातेश्वरी अहिल्या शिव मंदिर कहा जाता है. मान्यता है कि महाशिवरात्रि पर शिवालय के दर्शन, जलाभिषेक और अन्य अनुष्ठानों का कई गुना पुण्य फल यहां माथा टेकने से मिलता है. छोटे से गर्भगृह की सकारात्मक ऊर्जा ऐसी है कि जो भीतर जाए उसे सकारात्मक अनुभूति होती है. यही वजह है कि यहां शिव भक्तों से लेकर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ लगती है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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