डीएनए हिंदी: करवा चौथ के चार दिन बाद अहोई अष्टमी का व्रत रखा जाता है. यह व्रत कृष्ण पक्ष की अष्टमी पर आता है, जो आज है. यानी इस बार अहोई अष्टमी 5 नवंबर 2023 को मनाई जाएगी. इस दिन संतान सुख की प्राप्ति होती है. वहीं अहोई अष्टमी पर जितन महत्व व्रत रखने का है. उससे कहीं ज्यादा राधा कुंड में स्नान करने पर मिलता है. इस कुंड में नहाने से राधा रानी और भगवान श्री कृष्ण की कृपा प्राप्त होती है. यही वजह है कि अहोई अष्टमी पर इस कुंड में नहाने के लिए लाखों लोगों की श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है. देश भर के जोड़े संतान प्राप्ति के लिए इस कुंड में डुबकी लगाते हैं.
मथुरा के गोवर्धन में स्थित है यह कुंड
दरअसल यह कुंड मथुरा के गोवर्धन परिक्रमा मार्ग पर स्थित है. यहां श्री कृष्ण की असीम कृपा प्राप्त होती है. यह मथुरा से लगभग 27 किलोमीटर दूर है. इस कुंड में हर साल अहोई अष्टमी के दिन रात 12 बजे के बाद स्नान करने का बड़ा महत्व माना जाता है. इसके लिए प्रशासन की तरफ विशेष इंतजाम किए जाते हैं. इसकी पौराणिक कथा और विशेष महत्व भी हैं. आइए जानते हैं इस कुंड में नहाने से मिलने वाले लाभ और कथा...
राधा कुंड में स्नान से होती है संतान प्राप्ति
मान्यता है कि राधा कुंड में स्नान करने से संतान की प्राप्ति होती है. राधा रानी से जो भी मांगते हैं. वह सब मिलता है, लोग विशेष रूप से अहोई अष्टमी पर राधा कुंड में स्नान करने जाते हैं. इस कुंड में स्नान करने की प्रथा वर्षों पुरानी है, जिन दंपत्तियों को संतान नहीं होती है. वह राधा कुंड में स्नान करने जाते हैं. इससे जल्द ही संतान की प्राप्ति होती है. हर साल कार्तिक मास की अष्टमी पर इस कुंड में डुबकी लगाने का विशेष महत्व है. यहां जो भी संतान की प्राप्ति की कामना करता है. उनकी मनोकामना जल्द पूरी होती है.
यह है राधा कुंड से जुड़ी पौराणिक कथा
बताया जाता है कि एक बार भगवान श्री कृष्ण अपने मित्रों के साथ गोवर्धन पर्वत के पास गाय चरा रहे थे. इसी दौरान अरिष्टासुर नाम के राक्षस ने गाय का रूप धारण कर भगवान श्री कृष्ण पर हमला कर दिया. भगवान श्री कृष्ण समझ गए की गाय के रूप में यह कोई राक्षस है. उसके बाद श्री कृष्ण ने उस राक्षस का वध कर दिया. अरिष्टासुर ने गाय का रूप धारण किया था, इसलिए श्री कृष्ण पर गौ हत्या का पाप लग गया. पाप का प्रायश्चित करने के लिए उसी जगह श्री कृष्ण ने अपनी बांसुरी से एक कुंड का निर्माण किया. वहां स्नान किया. इसके ठीक बगल राधा जी ने भी अपने कंगन से एक कुंड का निर्माण किया और उसमे उन्होनें भी स्नान किया. तब से इस कुंड का नाम राधा कुंड पड़ गया.
Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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