Ahoi Ashtami 2024 katha: आज अहोई अष्टमी पर व्रत के साथ पढ़ें ये कथा, स्याहु माता पूर्ण करेंगी आपकी हर कामना

Written By नितिन शर्मा | Updated: Oct 24, 2024, 01:02 PM IST

आज माताएं संतान की कामना और संतान की लंबी आयु और बेहतरी के लिए व्रत रखती हैं. माताएं यह व्रत तारों को देखकर खोलती हैं. वहीं इसमें व्रत संकल्प माता की कथा के बाद ही लिया जाता है.

Ahoi Ashtami Vrat katha: कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी के रूप में मनाया जाता है. इस दिन माताएं अपनी संतान की लंबी आयु और सुरक्षा के स्याहु माता का व्रत रखती है. इसे अहोई अष्टमी का व्रत भी कहा जाता है. अहोई अष्टमी के व्रत में महिलाएं निर्जला व्रत करती है. इस व्रत में तारों को अर्घ्य देकर ही पारण किया जाता जाता है. व्रत का संकल्प लेने के साथ माताएं अहोई अष्टमी व्रत की कथा सुनती हैं. इस बार अहोई व्रत कथा 24 अक्टूबर 2024 को रखा जाएगा. इससे उन्हें विशेष लाभ प्राप्त होते हैं. आइए जानते हैं. अहोई अष्टमी व्रत की कथा और पूजा विधि...

अहोई अष्टमी व्रत कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार एक नगर में एक साहूकार रहता था, उसके सात लड़के, सात बहुएं तथा एक पुत्री थीं. दीपावली से पहले कार्तिक बदी अष्टमी को सातों बहुएं अपनी इकलौती ननद के साथ जंगल में मिट्टी लेने गई. जहां से वे मिट्टी खोद रही थीं, वहीं पर स्याऊ-सेहे की मांद थी. मिट्टी खोदते समय ननद के हाथ सेहे का बच्चा मर गया. स्याऊ माता बोली- कि अब मैं तेरी कोख बांधूगी. तब ननद अपनी सातों भाभियों से बोली कि तुम में से कोई मेरे बदले अपनी कोख बंधा लो सभी भाभियों ने अपनी कोख बंधवाने से इंकार कर दिया परंतु छोटी भाभी सोचने लगी, यदि मैं कोख न बँधाऊगी तो सासू जी नाराज होंगी. ऐसा विचार कर ननद के बदले छोटी भाभी ने अपनी कोख बंधा ली. उसके बाद जब उसे जो बच्चा होता वह सात दिन बाद मर जाता.

एक दिन साहूकार की पत्नी ने पंडित जी को बुलाकर पूछा, कि क्या बात है मेरी इस बहु की संतान सातवें दिन क्यों मर जाती है? तब पंडित जी ने बहू से कहा कि तुम काली गाय की पूजा किया करो. काली गाय स्याऊ माता की भायली है, वह तेरी कोख छोड़े तो तेरा बच्चा जियेगा.

इसके बाद से वह बहु प्रातःकाल उठ कर चुपचाप काली गाय के नीचे सफाई आदि कर जाती. एक दिन गौ माता बोली– कि आज कल कौन मेरी सेवा कर रहा है, सो आज देखूंगी. गौमाता खूब तड़के जागी तो क्या देखती है कि साहूकार की के बेटे की बहू उसके नीचे सफाई आदि कर रही है. गौ माता उससे बोली कि तुझे किस चीज की इच्छा है जो तू मेरी इतनी सेवा कर रही है? मांग क्या चीज मांगती है? तब साहूकार की बहू बोली की स्याऊ माता तुम्हारी भायली है और उन्होंने मेरी कोख बांध रखी है, उनसे मेरी कोख खुलवा दो.

गौ माता ने कहा- अच्छा तब गौ माता सात समुंदर पार अपनी भायली के पास उसको लेकर चली. रास्ते में कड़ी धूप थी, इसलिए दोनों एक पेड़ के नीचे बैठ गई. थोड़ी देर में एक साँप आया और उसी पेड़ पर गरुड़ पंखनी के बच्चे थे उनको मारने लगा. तब साहूकार की बहू ने सांप को मार कर ढ़ाल के नीचे दबा दिया और बच्चों को बचा लिया. थोड़ी देर में गरुड़ पंखनी आई तो वहां खून पड़ा देखकर साहूकार की बहू को चोंच मारने लगी.

तब साहूकारनी बोली- कि मैंने तेरे बच्चे को मारा नहीं है बल्कि साँप तेरे बच्चे को डसने आया था. मैंने तो तेरे बच्चों की रक्षा की है. यह सुनकर गरुड़ पंखनी खुश होकर बोली की मांग, तू क्या मांगती है?

वह बोली, सात समुंदर पार स्याऊ माता रहती हैं. मुझे तू उसके पास पहुंचा दें. तब गरुड़ पंखनी ने दोनों को अपनी पीठ पर बैठा कर स्याऊ माता के पास पहुंचा दिया. स्याऊ माता उन्हें देखकर बोली की आ बहन बहुत दिनों बाद आई. फिर कहने लगी कि बहन मेरे सिर में जूं पड़ गई हैं. तब सुरही के कहने पर साहूकार की बहू ने सिलाई से उसकी जुएं निकाल दी. इस पर स्याऊ माता प्रसन्न होकर बोली कि तेरे सात बेटे और सात बहुएं हो.

सहुकारनी बोली- कि मेरा तो एक भी बेटा नहीं, सात कहां से होंगे? स्याऊ माता बोली- वचन दिया वचन से फिरुॅं तो धोबी के कुंड पर कंकरी होऊँ. तब साहूकार की बहू बोली, माता मेरी कोख तो तुम्हारे पास बन्द पड़ी है. यह सुनकर स्याऊ माता बोली तूने तो मुझे ठग लिया, मैं तेरी कोख खोलती तो नहीं परंतु अब खोलनी पड़ेगी. जा, तेरे घर में तुझे सात बेटे और सात बहुएं मिलेंगी. तू जा कर उजमान करना, सात अहोई बनाकर सात कड़ाई करना. वह घर लौट कर आई तो देखा सात बेटे और सात बहुएं बैठी हैं. वह खुश हो गई और उसने सात अहोई बनाई, सात उजमान किये, सात कड़ाई की. दिवाली के दिन जेठानियां आपस में कहने लगी कि जल्दी जल्दी पूजा कर लो, कहीं छोटी बहू बच्चों को याद करके रोने न लगे.

थोड़ी देर में उन्होंने अपने बच्चों से कहा-अपनी चाची के घर जाकर देख आओ की वह अभी तक रोई क्यों नहीं? बच्चों ने देखा और वापस जाकर कहा कि चाची तो कुछ मांड रही है, खूब उजमान हो रहा है. यह सुनते ही जेठानीयाँ दौड़ी-दौड़ी उसके घर गई और जाकर पूछने लगी कि तुमने कोख कैसे छुड़ाई?

वह बोली तुमने तो कोख बंधाई नही मैंने बंधा ली अब स्याऊ माता ने कृपा करके मेरी को खोल दी है. स्याऊ माता ने जिस प्रकार उस साहूकार की बहू की कोख खोली उसी प्रकार हमारी भी खोलियो, सबकी खोलियो. कहने वाले की तथा हुंकार भरने वाले तथा परिवार की कोख खोलिए.

(Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है. ये जानकारी समान्य रीतियों और मान्यताओं पर आधारित है.)

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