डीएनए हिंदी : West Bengal's Durga Puja Special- पूरे देश में नवरात्रि (Navratri) की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं, पितृपक्ष खत्म होते ही देवी मां का श्रृंगार शुरू हो जाता है. गुजरात, बंगाल, यूपी, बिहार हर कहीं नवरात्रि अलग ढंग से मनाई जाती है. कहीं गरबा करते हैं तो कहीं दुर्गा पूजा (Durga Puja 2022) सेलेब्रेट करते हैं. बंगाल की दुर्गा पूजा की बात ही कुछ और है. पश्चिम बंगाल (West Bengal Famous Festival Durga Puja) का सबसे लोकप्रिय त्योहार है दुर्गा पूजा. बंगाल की दुर्गा पूजा बहुत ही खास होती है, आज हम जानेंगे कौन सी ऐसी चीजें हैं जो इस आनंद के पर्व को सबसे अलग बनाती है. बंगालियों को पूरे साल इस त्योहार का इंतजार रहता है.
ढाक ढोल और शंख की ध्वनी (Dhaak Dhol)
दुर्गा पूजा के नौ दिन पंडालों के बाहर ढाक और ढोल बजते रहते हैं.ढाक की ध्वनी से पूरा मोहल्ला गूंज उठता है. शंख भी बजाते हैं और मां की आराधना होती है. ढाक के बगैर पूजा अधूरी सी है
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कुमारी पूजा (Kumari Puja)
बंगाल में कुमारी पूजा का विधान है. दुर्गा शक्ति का स्वरूप है और कुमारियों को भी देवी का स्वरूप समझा जाता है. ऐसे में कुमारियों का पूजन होता है. नवमी के दिन उनके पैर धोकर उन्हें प्रसाद खिलाया जाता है और उनकी पूजा भी होती है. देवी दुर्गा की मिट्टी की मूर्ति नहीं बल्कि साक्षात जीवंत कन्याओं को दुर्गा का स्वरूप समझकर पूजा जाता है. यह मान्यता है कि ऐसा करने से उन्हें फल की प्राप्ति होती है
सिंदूर खेला (Sidur Khela)
जिस दिन मां का विसर्जन होता है यानी दशमी के दिन विधि विधान से मां को विदा किया जाता है. उस दिन मां की भव्य पूजा और श्रृंगार होता है. लाल पाड़ की साड़ी,हाथों में पूजा की थाली और चेहरे पर सिंदूर का लेप के साथ हर जुबां पर मां दुर्गा की महिमा को बखान होता है.बंगाली समाज की महिलाएं इस दिन मां को सिंदूर अर्पित कर सुहाग की लंबी उम्र की कामना करती हैं. इसके बाद सिंदूर खेला का उल्लास होता है.जिसमें परंपरागत ढाक की थाप पर माहौल को भक्तिमय बनाया जाता है,इस दौरान महिलाएं एक दूसरे को सिंदूर लगाकर पर्व की खुशियां मनाती हैं और साथ ही ग्रुप में डांस भी करती हैं.एक दूसरे के सुहाग की मंगल कामना भी करती हैं.
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विजया दशमी (Vijaya Dashami)
दशमी के दिन का यह दृश्य देखने के लिए लोग दूर दूर से अलग-अलग शहरों से आते हैं. विजया दशमी के दिन मां के पंडाल में बहुत भीड़ होती है. मां को विदा देने का जो दर्द दिल में होता है उसके साथ-साथ सभी मां को उमंग और उत्साह के साथ अलविदा कहते हैं. मां को उलू ध्वनी के साथ विदा किया जाता है. एक दूसरे को गुलाला लगाने की भी प्रथा है. नम आंखों से मां को अगले साल आने का न्योता दिया जाता है. साथ ही एक स्लोगन कहते हैं, जाच्छे कोथाय नदीर धारे, आसबे कोबे बोछोर पोरे..
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धुनुची नाच (Dhunuchi Naach)
धुनुची नाच बिल्कुल ही अलग तरह से किया जाता है. दुर्गा पूजा की शान है यह डांस. हाथों में धूप लेकर मां के गीतों पर ढाक की धून के साथ डांस किया जाता है. कहते हैं कि यह नाच शक्ति को प्रदर्शन करता है. इसके बगैर मां की आराधनी अधूरी सी है. डांस करने वाले कभी दांतों में फंसाकर तो कभी दोनों हाथों के बीच धुनुची की ऐसी अटखेलियां दिखाते हैं कि देखने वाले हैरान रह जाते हैं. उस पर खास बात यह कि उनका बैलेंस बहुत अच्छा रहता है. बस ढाक का साथ मिलता है तो माता के भक्त हाथ में जलती धुनुची लेकर मंत्रमुग्ध होकर नाचने लगते हैं
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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