बसंत पंचमी से ही भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली मथुरा में होली की शुरुआत हो जाती है. यह उत्सव ब्रज में 40 दिनों तक चलता है. बुधवार को विष्णु प्रसाद बांके बिहारी मंदिर में हजारों लोगों ने भगवान के साथ होली खेलकर इस उत्सव की शुरूआत की और अब ये धुलेड़ी तक चलेगा. पूरे 40 दिन कान्हा की नगरी में रंगोत्सव मनेगा. 'रंगभरनी एकादशी' तक सूखे 'गुलाल' से होली मनाई जाती है और उसके बाद ब्रज क्षेत्र में पानी वाले रंगों के साथ होली मनाई जाती है.
रंगों के साथ फूलों की होली,बरसाना में लड्डू होली और लट्ठ-मार होली, नंदगांव में लट्ठ-मार होली, दाऊजी मंदिर में हुरंग, इसके अलावा बांके बिहारी मंदिर, द्वारकाधीश मंदिर और श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर सहित प्रमुख मंदिरों में अन्य कार्यक्रम होंगे.ब्रज के बरसाना में लाडलीजी मंदिर में मनाई जाने वाली होली और बलदेव के दाऊजी मंदिर की हुरंगा होली इसी अनोखे उत्सव का हिस्सा हैं.
कल बसंत पंचमी के दिन बरसाने के लाडलीजी मंदिर में रत्नजड़ित स्वर्ण सिंहासन को फूलों से सजाकर श्रीराधाजी के दर्शन किया गया. सेवायत पुजारी श्रीराधाजी के चरणों में अबीर-गुलाल चढ़ाकर होली उत्सव की शुरुआत किए. देवालय में सेवक गोस्वामी समाज पारंपरिक होली धमार भी गाए, जिसे 'समाज गायन' कहा जाता है.
केसरिया हलवे का भोग और सरसों के फूल ठाकुर जी को किया गया अर्पित
बुधवार को बांके बिहारी जी मंदिर में बसंती वस्त्र आभूषण में सजे संवरे ठाकुर बांके बिहारी जी महाराज की श्रृंगार सेवा के अंतर्गत गुलाल अर्पित किया गया. हुरियारे स्वरूप में दर्शन दे रहे आराध्य प्रभु के समक्ष पंच मेवा युक्त केसरिया मोहन भोग का विशेष भोग लगा कर बांके बिहारी महाराज को सरसों के फूलों के गुथे हुए गुंजे (माला) धारण कराया गया. भगवान को विभिन्न प्रकार के दिव्यतम ऋतु आधारित पदार्थ सेवार्थ निवेदित किए गए तथा बसंत आगमन के पद सुनाए गए.
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