Shraddha Karma: क्या कोई बेटी अपने पिता का श्राद्ध कर सकती है? जानिए गरुड़ पुराण क्या कहता है?

Written By ऋतु सिंह | Updated: Sep 24, 2024, 09:52 AM IST

Can daughter perform Shraddha of her father

क्या लड़कियां अपने माता-पिता या पिता का श्राद्ध कर सकती हैं? या क्या विवाहित लड़कियाँ अपने माता-पिता को तर्पण दे सकती हैं? चलिए जानें इसके बारे में गरुण पुराण क्या कहता है.

क्या लड़कियां पितरों का श्राद्ध या तर्पण कर सकती हैं? ये सवाल आपके मन में कभी न कभी तो आया ही होगा. वहीं, समाज में ऐसे भी लोग हैं जिन्हें धर्म या पुराणों का पूरा ज्ञान नहीं है, लेकिन समाज की संरचना या संकीर्ण मानसिकता के कारण वे लड़कियों को कुछ धार्मिक गतिविधियों से पूरी तरह बाहर कर देते हैं.

लेकिन हमारे पुराण में हर प्रश्न का उत्तर दिया गया है. यदि आप मूल रूप में लिखे पुराणों को पढ़ेंगे तो आपको सही जानकारी मिलेगी. उदाहरण के लिए, गरुड़ पुराण में बेटी और बहुओं के तर्पण के बारे में कुछ विशेष लिखा है. आइए जानते हैं गरुड़ पुराण में पितरों का श्राद्ध करने वाली लड़कियों से जुड़ी खास बातें.

पितरों का श्राद्ध या तर्पण शुभ माना जाता है

गरुड़ पुराण के अनुसार, जो लोग इस धरती को छोड़कर चले गए वे हमारे पूर्वज हैं. पितृलोक एक अलग लोक है जहां सभी मनुष्यों के पूर्वज रहते हैं. पैतृक कर्मों का लेखा-जोखा किया जाता है, जिसके आधार पर पूर्वजों की भूमिकाएँ निर्धारित होती हैं. मृत्यु के बाद आत्मा एक से सौ वर्ष तक पितृ लोक में रहती है. गरुड़ पुराण के अनुसार पितरों की मुक्ति से संबंधित कोई भी कार्य या धार्मिक अनुष्ठान शुभ माना जाता है. पितरों को तर्पण करने से ना सिर्फ पितरों की आत्मा को शांति मिलती है बल्कि प्रसाद चढ़ाने वाले व्यक्ति के लिए सुख-समृद्धि के द्वार भी खुल जाते हैं.

पितरों का श्राद्ध कौन कर सकता है?

गरुड़ पुराण में लिखा है कि पितरों का श्राद्ध करना सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान माना जाता है, इसलिए इसे किसी भी कारण से नहीं रोकना चाहिए. गरुड़ पुराण के अनुसार पितरों का श्राद्ध परिवार का कोई भी बच्चा यानी लड़का या लड़की कर सकता है. इसका मतलब यह है कि यदि किसी के माता-पिता इस धरती को छोड़कर पितृलोक में चले गए हैं, तो ऐसी स्थिति में उन माता-पिता की कोई भी संतान यानी लड़का या लड़की अपने माता-पिता का श्राद्ध या तर्पण कर सकते हैं. इसके पीछे कारण यह है कि दोनों बच्चे माता-पिता का हिस्सा होते हैं और दोनों में खून होता है, जो उन्हें एक कबीले के रूप में बांधता है.

कन्याओं के श्राद्ध या तर्पण का महत्व  

गरुड़ पुराण के अनुसार यदि किसी के पुत्र नहीं है तो उसका श्राद्ध या तर्पण उसकी पुत्री भी कर सकती है. वहीं, अगर कोई बेटी भी बेटा होने के बाद भी अपने पूर्वजों या मृत माता-पिता को तर्पण देना चाहती है तो वह ऐसा कर सकती है. अत: दो बच्चे अलग-अलग स्थानों पर श्राद्ध कर सकते हैं. इसमें कोई नुकसान नहीं है. पुत्र, पुत्री और पोते-पोतियों द्वारा किया गया श्राद्ध कर्म पितरों को अवश्य स्वीकार होता है. बेटियां भी परिवार का हिस्सा हैं, इसलिए अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए अनुष्ठान करना उनका कर्तव्य है.

पितरों का श्राद्ध और तर्पण बहुएं भी कर सकती हैं

गरुड़ पुराण के अनुसार, यदि किसी घर में केवल बहू रहती है और माता-पिता का निधन हो चुका है और उनके कोई संतान नहीं बची है या अन्य कारणों से माता-पिता को तर्पण देने में असमर्थ हैं, तो ऐसी स्थिति में बहू -पितरों की पूजा और तर्पण भी कर सकते हैं. रामायण में फल्गु नदी के तट पर माता सीता द्वारा अपने ससुर दशरथ को पिंड दान करने का प्रसंग भी आता है. रामायण की कहानी के अनुसार, सीता जी ने गाय, तुलसी, ब्राह्मण और एक कौए को साक्षी मानकर पूरे विधि-विधान से राजा दशरथ को पिंडदान दिया था.

यदि पुत्र न हो तो बेटियां अपने माता-पिता का श्राद्ध और तर्पण कर सकती हैं

गरुड़ पुराण में यह भी बताया गया है कि अगर किसी का बेटा नहीं है तो बेटियां ही सभी धार्मिक अनुष्ठान कर सकती हैं. लड़कों की तरह लड़कियाँ भी अपने माता-पिता का हिस्सा होती हैं और परिवार से जुड़ी होती हैं. ऐसे में बेटियां न सिर्फ अपने माता-पिता के दाह संस्कार से जुड़ी हर रस्म निभा सकती हैं बल्कि पितृ पक्ष में श्राद्ध और तर्पण भी कर सकती हैं. इससे माता-पिता की आत्मा को शांति मिलती है और बेटियां भी अपने माता-पिता के प्रति अपनी जिम्मेदारियां निभाती हैं.

यहां तक ​​कि विवाहित लड़कियां भी श्राद्ध और तर्पण कर सकती हैं

कई लोगों को आश्चर्य होता है कि क्या एक विवाहित लड़की भी अपने माता-पिता, दादा-दादी, परदादा या अन्य पूर्वजों को तर्पण दे सकती है. गरुड़ पुराण में यह भी उल्लेख है कि विवाहित बेटियां भी अपने पिता को 'तर्पण' दे सकती हैं क्योंकि दूसरे कुल में शादी के बाद भी उनका रिश्ता अपने कुल से बना रहता है. लड़कियाँ अपने परिवार का हिस्सा होती हैं, उनका अस्तित्व स्थाई होता है. ऐसे में जो लोग लड़कियों के माता-पिता हैं उन्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है. समाज में कितने भी संकीर्ण सोच के लोग क्यों न हों, आपको यह सोचना चाहिए कि पूरा जीवन जीने के बाद जब आप पितृलोक में रहेंगे तो न केवल आपके बेटे को, बल्कि आपकी बेटियों, बहुओं को भी मुक्ति मिल सकेगी.  

(Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है. ये जानकारी समान्य रीतियों और मान्यताओं पर आधारित है.) 

ख़बर की और जानकारी के लिए डाउनलोड करें DNA App, अपनी राय और अपने इलाके की खबर देने के लिए जुड़ें हमारे गूगलफेसबुकxइंस्टाग्रामयूट्यूब और वॉट्सऐप कम्युनिटी से.