डीएनए हिंदीः आज नवरात्रि (Navratri 2022) का पहला दिन है. नौ दिनों तक चलने वाले इस पावन त्योहार का विशेष महत्व होता है. इन दिनों मेंं देवी दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है. शक्ति (Shakti) की साधना का पहला दिन मां शैलपुत्री (Goddess Shailputri) की पूजा के लिए समर्पित होता है. मां शैलपुत्री हिमालयराज की पुत्री हैं. माता के नाम का अर्थ भी 'पर्वत की बेटी' ही है. अपने मस्तक पर चंद्रमा को धारण करने वाली माता शैलपुत्री की साधना करने पर कुंडली से जुड़ा चंद्र दोष और उससे होने वाली सारी परेशानियां दूर होती हैं. मां की पूजा से व्यक्ति के जीवन में उनके नाम की तरह स्थिरता बनी रहती है. आइए जानके हैं माता शैलपुत्री की पूजा विधि, कथा और आरती…
माता शैलपुत्री की पूजा सामग्री
एक छोटी चुनरी, एक बड़ी चुनरी, कलावा, चौकी, कलश, कुमकुम, पान, सुपारी, कपूर, जौ, नारियल, लौंग, बताशे, आम के पत्ते, केले का फल, देसी घी, धूप, दीपक, अगरबत्ती, माचिस, मिट्टी का बर्तन, माता का श्रृंगार का सामान, देवी की प्रतिमा या फोटो, फूलों की माला, गोबर का उपला, सूखे मेवा, मावे की मिठाई, लाल फूल, एक कटोरी गंगाजल और दुर्गा सप्तशती या दुर्गा स्तुति आदि का पाठ जरूर करें.
मां शैलपुत्री की पूजा विधि (Shailputri Puja Vidhi):
- मां का यह स्वरूप बेहद ही शुभ माना जाता है. इनके एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल है. देवी वृषभ पर विराजमान हैं.
- नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की तस्वीर के आगे लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं. इसके ऊपर केसर से शं लिखें और मनोकामना पूर्ति गुटिका रखें.
- इसके बाद हाथ में लाल फूल लेकर शैलपुत्री देवी का ध्यान करें.
- मां के मंत्र का जाप करें.
मां शैलपुत्री मंत्रः (Mata Shailputri Mantra)
या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्री रूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:
- अब मंत्र के साथ ही हाथ में लिए गए फूल मनोकामना गुटिका एवं मां की तस्वीर के ऊपर छोड दें.
- इसके बाद माता को भोग लगाएं तथा उनके मंत्रों का जाप करें. यह जप कम से कम 108 बार होना चाहिए.
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माता शैलपुत्री की व्रत कथा (Maa Shailputri Vrat Katha)
मां शैलपुत्री को माता पार्वती का स्वरूप माना जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार राजा दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया. इस यज्ञ में उन्होंने सभी देवी-देवताओं व राजा-महाराजाओं को आमंत्रित किया लेकिन भगवान शिव का औघड़ रूप होने के कारण राजा दक्ष ने उन्हें यज्ञ का न्योता नहीं भेजा. वहीं जब देवी सती को अपने पिता द्वारा आयोजित इस विशाल यज्ञ के बारे में पता चला तो उनका मन इसमें शामिल होने के लिए व्याकुल होने लगा. माता ने भोलेनाथ से अपनी इच्छा जताई, इसपर भोलेनाथ ने कहा, राजा ने हमें यज्ञ में शामिल होने का न्योता नहीं दिया है. ऐसे में बिना आमंत्रण के कैसे जाया जाए लेकिन जब सती ने ज्यादा बार आग्रह किया तो शिव को भी अनुमति देनी पड़ी. प्रजापति दक्ष के यज्ञ में पहुंचकर सती को अपमान महसूस हुआ. सब लोगों ने उनसे मुंह फेर लिया. केवल उनकी माता ने उन्हें स्नेह से गले लगाया. उनकी बहने उपहास उड़ा रही थीं और भोलेनाथ को भी तिरस्कृत कर रही थीं. खुद प्रजापति दक्ष भी माता भोलेनाथ का अपमान कर रहे थे. पति के इस अपमान को देख माता सती ने यज्ञ में कूदकर अपने प्रांण त्याग दिए. इधर जैसे ही भगवान शिव को इस बात का पता चला, वे क्रोधित हो उठे. भगवान ने पूरे यज्ञ को ध्वस्त कर दिया. उसके बाद सती ने हिमालय के यहां पार्वती के रूप में जन्म लिया. कहते हैं मां शैलपुत्री काशी नगर वाराणसी में वास करती हैं.
मां शैलपुत्री की आरती (Shailputri Aarti):
शैलपुत्री मां बैल असवार। करें देवता जय जयकार।
शिव शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिमा किसी ने ना जानी।
पार्वती तू उमा कहलावे। जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू। दया करे धनवान करे तू।
सोमवार को शिव संग प्यारी। आरती तेरी जिसने उतारी।
उसकी सगरी आस पुजा दो। सगरे दुख तकलीफ मिला दो।
घी का सुंदर दीप जला के। गोला गरी का भोग लगा के।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं। प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं।
जय गिरिराज किशोरी अंबे। शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे।
मनोकामना पूर्ण कर दो। भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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