डीएनए हिंदीः सूर्य को ग्रहों का राजा (Surya Dev) माना जाता है. ग्रहों के राजा सूर्य देव नेत्र और बुद्धि के कारक माने जाते हैं. सूर्य देव को जल चढ़ाने से और उपासना करने से सूर्य देव की कृपा बनी रहती है. नेत्र रोगों (Eye Problems) से बचने और आंखों की रोशनी तेज करने के लिए भी सूर्य की स्थिति का मजबूत होना जरूरी होता है. ऐसे में सूर्य की उपासना करने से नेत्र रोग दूर होते हैं. अगर आपको आंखों से संबंधित समस्या हो रही है या आई फ्लू (Eye Flu) का खतरा बढ़ गया है तो ऐसे में आपको रोज सुबह शाम चाक्षुषोपनिषद मंत्र (Chakshushopanishad Mantra) का जाप करना चाहिए. ऐसा करने से आंखों की रोशनी बढ़ती है. इस मंत्र के जाप से सूर्य की स्थिति मजबूत होती है और आंखों को लाभ होता है.
चाक्षुषोपनिषद मंत्र (Chakshushopanishad Mantra)
विनियोग
ॐ अस्याश्चाक्षुषीविद्याया अहिर्बुध्न्य ऋषिः, गायत्री छन्दः, सूर्यो देवता, ॐ बीजम्, नमः शक्तिः, स्वाहा कीलकम्, चक्षूरोगनिवृत्तये जपे विनियोगः.
चक्षुष्मती विद्या
ॐ चक्षुः चक्षुः चक्षुः तेजस्थिरोभव
मां पाहि पाहि त्वरितम् चक्षूरोगान् शमय शमय
ममाजातरूपं तेजो दर्शय दर्शय
यथाहमंधोनस्यां तथा कल्पय कल्पय
कल्याण कुरु कुरु यानि मम पूर्वजन्मोपार्जितानि चक्षुः प्रतिरोधक दुष्कृतानि सर्वाणि निर्मूलय निर्मूलय
ॐ नमश्चक्षुस्तेजोदात्रे दिव्याय भास्कराय
ॐ नमः कल्याणकराय अमृताय ॐ नमः सूर्याय
ॐ नमो भगवते सूर्याय अक्षितेजसे नमः
खेचराय नमः महते नमः रजसे नमः तमसे नमः
असतो मा सद्गमय तमसो मा ज्योतिर्गमय मृत्योर्मा अमृतं गमय
उष्णो भगवान्छुचिरूपः हंसो भगवान् शुचिप्रतिरूपः
ये 5 रत्न पहनने से चुंबक की तरह खींचा चला आता है पैसा, कभी नहीं करना पड़ता तंगी का सामना
ॐ विश्वरूपं घृणिनं जातवेदसं
हिरण्मयं ज्योतिरूपं तपन्तम्
सहस्त्ररश्मिः शतधा वर्तमानः
पुरः प्रजानामुदयत्येष सूर्यः
ॐ नमो भगवते श्रीसूर्यायादित्यायाऽक्षितेजसेऽहोवाहिनिवाहिनि स्वाहा
ॐ वयः सुपर्णा उपसेदुरिन्द्रं
प्रियमेधा ऋषयो नाधमानाः
अप ध्वान्तमूर्णुहि पूर्धि-
चक्षुर्मुग्ध्यस्मान्निधयेव बद्धान्
ॐ पुण्डरीकाक्षाय नमः. ॐ पुष्करेक्षणाय नमः. ॐ कमलेक्षणाय नमः. ॐ विश्वरूपाय नमः. ॐ श्रीमहाविष्णवे नमः. ॐ सूर्यनारायणाय नमः.. ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः
य इमां चाक्षुष्मतीं विद्यां ब्राह्मणो नित्यमधीयते न तस्य अक्षिरोगो भवति.
न तस्य कुले अंधो भवति न तस्य कुले अंधो भवति.
अष्टौ ब्राह्मणान् ग्राहयित्वा विद्यासिद्धिर्भवति .
विश्वरूपं घृणिनं जातवेदसं हिरण्मयं पुरुषं ज्योतीरूपं तपंतं सहस्ररश्मिः
शतधावर्तमानः पुरःप्रजानामुदयत्येष सूर्यः ॐ नमो भगवते आदित्याय.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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