डीएनए हिंदी: कलंक चतुर्थी को चौथ का चांद भी कहा जाता है. भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी व कलंक चतुर्थी होती है और इस बार यह 30 अगस्त को होगी. मान्यता है कि इस दिन लोगों को भूल से भी चंद्रमा को नहीं देखना चाहिए, क्योंकि इस दिन का चांद देखने भर से आप किसी न किसी कलंक के भागी बन सकते हैं. पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्री कृष्ण पर भी इस चांद को देखने से एक कलंक लगा था.
हालांकि, अगर भूलवश चांद को देख लिया जाए तो हाथ में जल लेकर सिंहः प्रसेन मण्वधीत्सिंहो जाम्बवता हतः.सुकुमार मा रोदीस्तव ह्मेषः स्यमन्तकः मंत्र का जाप करने से इसका श्राप का असर कम होता है. आखिर चंद्र दर्शन के श्राप से श्रीकृष्ण तक कैसे न हीं बच पाएं और इसके पीछे क्या पौराणि कथा है, चलिए जानें.
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जाने क्यों लगा था श्रीकृष्ण पर मिथ्या कलंक
एक बार जरासंध के भय से श्रीकृष्ण द्वारिकापुरी के समुद्र के मध्य नगरी बसाकर रहने लगे थे. उस समय राजा सत्राजित यादव ने सूर्य के परम भक्त थे और और उनकी पूजा से प्रसन्न होकर सूर्यदेव ने उन्हें स्यमन्तक नामक मणि अपने गले से उतारकर उनको दे दी थी.
मणि को देखकर तब श्रीकृष्ण ने उस मणि को प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त की थी लेकिन सत्राजित ने वह मणि श्रीकृष्ण को न देकर अपने भाई प्रसेनजित को दे दी. एक दिन प्रसेनजित शिकार के लिए जंगल गया और वहां शेर ने उसे मार दिया और वह मणि ले लिया. यह देख रीछों के राजा जामवन्त ने सिंह को कर वह मणि लेकर गुफा में चले गए.
जब प्रसेनजित कई दिनों तक शिकार से न लौटा तो सत्राजित को लगा कि शायद श्रीकृष्ण ने ही मणि प्राप्त करने के लिए उसका वध कर दिया होगा. इस लोक-निंदा के निवारण के लिए श्रीकृष्ण मणि खोजने का निर्णय लिया और जब वह जंगल में गए तो वहां जामवन्त की गुफा में उनकी पुत्री के पास इस मणि को पाया. जावंत को लगा कि वह कोई दुश्मन हैं और वह कृष्ण के साथ 7 दिन तक युद्ध करता रहा लेकिन बाद में भगवान को पहचान गया और वह मणि उन्हें देकर अपनी बेटी जामवंती का विवाह भी उनसे कर दिए.
श्रीकृष्ण जब मणि लेकर वापस आए तो सत्राजित अपने किए पर बहुत लज्जित हुआ.इस लज्जा से मुक्त होने के लिए उसने भी अपनी पुत्री का विवाह श्रीकृष्ण के साथ कर दिया.
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कुछ समय के बाद श्रीकृष्ण किसी काम से इंद्रप्रस्थ चले गए.तब अक्रूर तथा ऋतु वर्मा की राय से शतधन्वा यादव ने सत्राजित को मारकर मणि अपने कब्जे में ले ली.सत्राजित की मौत का समाचार जब श्रीकृष्ण को मिला तो वे तत्काल द्वारिका पहुंचे.वे शतधन्वा को मारकर मणि छीनने को तैयार हो गए.
इस कार्य में सहायता के लिए बलराम भी तैयार थे.यह जानकर शतधन्वा ने मणि अक्रूर को दे दी और स्वयं भाग निकला.श्रीकृष्ण ने उसका पीछा करके उसे मार तो डाला, पर मणि उन्हें नहीं मिल पाई. बलरामजी भी वहां पहुंचे.श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि मणि इसके पास नहीं है.बलरामजी को विश्वास न हुआ.वे अप्रसन्न होकर विदर्भ चले गए.श्रीकृष्ण के द्वारिका लौटने पर लोगों ने उनका भारी अपमान किया.तत्काल यह समाचार फैल गया कि स्यमन्तक मणि के लोभ में श्रीकृष्ण ने अपने भाई को भी त्याग दिया.
श्रीकृष्ण इस अकारण प्राप्त अपमान के शोक में डूबे थे कि सहसा वहां नारदजी आ गए.उन्होंने श्रीकृष्णजी को बताया- आपने भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के चंद्रमा का दर्शन किया था.इसी कारण आपको इस तरह लांछित होना पड़ा है.
श्रीकृष्ण ने पूछा- चौथ के चंद्रमा को ऐसा क्या हो गया है जिसके कारण उसके दर्शनमात्र से मनुष्य कलंकित होता है? तब नारदजी बोले- एक बार ब्रह्माजी ने चतुर्थी के दिन गणेशजी का व्रत किया था.गणेशजी ने प्रकट होकर वर मांगने को कहा तो उन्होंने मांगा कि मुझे सृष्टि की रचना करने का मोह न हो.
गणेशजी ज्यों ही तथास्तु कहकर चलने लगे, उनके विचित्र व्यक्तित्व को देखकर चंद्रमा ने उपहास किया.इस पर गणेशजी ने रुष्ट होकर चंद्रमा को श्राप दिया कि आज से कोई तुम्हारा मुख नहीं देखना चाहेगा. श्राप के कारण चंद्रमा मानसरोवर की कुमुदिनियों में जा छिपा. चंद्रमा के बिना प्राणियों को बड़ा कष्ट हुआ. उनके कष्ट को देखकर ब्रह्माजी की आज्ञा से सारे देवताओं के व्रत से प्रसन्न होकर गणेशजी ने वरदान दिया कि अब चंद्रमा श्राप से मुक्त तो हो जाएगा, पर भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को जो भी चंद्रमा के दर्शन करेगा, उसे चोरी आदि का झूठा लांछन जरूर लगेगा.
यह सुनकर देवता अपने-अपने स्थान को चले गए.इस प्रकार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को चंद्रमा का दर्शन करने से आपको यह कलंक लगा है.तब श्रीकृष्ण ने कलंक से मुक्त होने के लिए यही व्रत किया था. कुरुक्षेत्र के युद्ध में युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा- भगवन्! मनुष्य की मनोकामना सिद्धि का कौन-सा उपाय है? किस प्रकार मनुष्य धन, पुत्र, सौभाग्य तथा विजय प्राप्त कर सकता है?
यह सुनकर श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया- यदि तुम पार्वती पुत्र श्री गणेश का विधिपूर्वक पूजन करो तो निश्चय ही तुम्हें सब कुछ प्राप्त हो जाएगा.तब श्रीकृष्ण की आज्ञा से ही युधिष्ठिरजी ने गणेश चतुर्थी का व्रत करके महाभारत का युद्ध जीता था.