Chhath Puja 2024: संकल्प लेने के बाद भी नहीं करते हैं छठ पूजा तो लगता है यह दोष, जानें इसकी वजह 

Written By नितिन शर्मा | Updated: Nov 06, 2024, 11:22 AM IST

छठ का व्रत सुहागिन महिलाएं संतान सुख, परिवार की खुशहाली और समृद्धि के लिए रखती हैं. इस त्योहार पर सूर्य देव और छठ माता की उपासना की जाती है. वहीं  इस व्रत की कई कथाएं प्रचलित हैं जो इसके महत्व को और बढ़ा देती हैं.

Chhath Puja 2024:  हिंदू धर्म में छठ पूजा का त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. इसकी शुरुआत नहाय खहाय से होती है और उगते हुए सूर्य को जल देने के बाद व्रत का पारण किया जाता है. छठ का व्रत सुहागिन महिलाएं संतान सुख, परिवार की खुशहाली और समृद्धि के लिए रखती हैं. इस त्योहार पर सूर्य देव और छठ माता की उपासना की जाती है. वहीं  इस व्रत की कई कथाएं प्रचलित हैं जो इसके महत्व को और बढ़ा देती हैं. ऐसे में कहा जाता है कि भूलकर भी इस व्रत का संकल्प लेकर व्रत न करने से या इसमें गलती करने से बड़ा दोष लगता है. आइए जातने हैं इसकी प्रचतिल कथा और दोष लगने की वजह क्या है...

व्रत का संकल्प और भूल

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बुजुर्ग महिला थी. उनकी कोई संतान नहीं थी. उन्होंने उसने कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन ये संकल्प लिया कि अगर उसे संतान सुख मिलेगा, तो वह हर साल सूर्य षष्ठी का व्रत करेगी. कुछ समय बाद उन्हें सूर्य देवता की कृपा से पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, लेकिन संतान पाकर उसने अपना संकल्प निभाया नहीं, सालों बीत गए, बेटा बड़ा हो गया और शादी के लायक हो गया, फिर उसकी शादी भी हो गई.

राहु डालेंगे अशुभ प्रभाव

विवाह के बाद जब बहू अपने पति के साथ घर लौट रही थी, तो रास्ते में अचानक पति की मृत्यु हो गई. बहू जोर-जोर से रोने लगी. उसी वक्त एक बुजुर्ग महिला वहां आई और उसने कहा, ‘मैं छठ माता हूँ. तुम्हारी सास ने मुझसे संतान पाने का वादा किया था लेकिन फिर पूजा नहीं की.’ माता ने बहू को समझाया कि वह घर जाकर अपनी सास से इस बारे में पूछे.’ माता ने बहू के पति को पुनः जीवनदान दिया. घर पहुंचने पर बहू ने सास को सब बताया, तब सास ने अपनी गलती मानी और फिर से सूर्य षष्ठी व्रत करने का निश्चय किया. तब से इस व्रत का महत्व और भी बढ़ गया.

महाभारत काल की छठ से जुड़ी है ये कथा

छठ पर्व को लेकर महाभारत काल की दूसरी कथा बताई जाती है कि एक प्रतापी राजा की एक हजार रानियां थीं, लेकिन उनसे केवल एक कन्या का जन्म हुआ, जिसका नाम सुकन्या था. वह अपने माता-पिता की लाडली थी. एक दिन सुकन्या जंगल में फूल तोड़ने गई. वहां उसने एक ऋषि (च्यवन ऋषि) को देखा जिनका शरीर मिट्टी में ढक गया था. सिर्फ आंखें दिख रही थीं. सुकन्या ने गलती से उनकी आंखों को नुकसान पहुंचा दिया. जब सुकन्या को अपनी गलती का एहसास हुआ. राजा ने शांति बनाए रखने के लिए उसका विवाह ऋषि च्यवन से कर दिया. एक दिन सुकन्या झील पर पानी लेने गई. वहां उसने एक नाग कन्या को सुंदर कपड़ों और गहनों में सूर्य की पूजा करते देखा. सुकन्या ने पूछा कि वह किसकी पूजा कर रही है. नाग कन्या ने बताया कि कार्तिक महीने में सूर्य देव की पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं. सुकन्या ने भी उसी तरह से व्रत किया और इसके फलस्वरूप उसके पति को फिर से देखने की शक्ति मिल गई.

(Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है. ये जानकारी समान्य रीतियों और मान्यताओं पर आधारित है.)

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