Chhath Puja Spiritual Significance: सूर्य को धन्यवाद करने का महापर्व है छठ, क्या है इस पर्व का आध्यात्मिक रहस्य
Chhath Puja का आध्यात्मिक रहस्य क्या है, कैसे सूर्य देवता की पूजा होती है, क्यों चार दिन तक होती है छठ की पूजा
डीएनए हिंदी: Chhath Puja Spiritual Significance- छठ चार दिन चलने वाला आस्था का महापर्व है. पहले तो यह पर्व यूपी,बिहार,झारखण्ड और बंगाल में ही मनाया जाता था लेकिन अब धीरे-धीरे यह पर्व फैलता गया और भारत के हर कोने में ये पर्व मनाया जाने लगा. यह महापर्व सूर्य देवता (Surya Devta0 के प्रति हमारी कृतज्ञता का प्रतीक है और इसलिए छठ महापर्व (Chhath Puja 2022) जब आरम्भ होता है तो सूर्य उदय की नहीं लेकिन जब सूर्य अस्त होता है तब उसकी पूजा करते हैं अर्थात जिस सूर्य से जीवन मिलता है. आईए जानते हैं छठ पूजा का आध्यात्मिक महत्व क्या है.
क्या है आध्यात्मिक रहस्य
सूर्य से तो भोजन मिलता है,अनाज बनता है. आज सूर्य है तो वृक्षों से ऑक्सीजन हमारे सामने आता है. सूर्य से जब पानी वाष्पीकृत होता है और वहीं वर्षा के रूप में बरसता है तो सूर्य है तो पानी है,सूर्य है तो हवा है,सूर्य है तो भोजन है. अब मौसम जब परिवर्तित होता है तब सूर्य के प्रति कृतज्ञता उत्पन्न होती है और इसलिए ढलते सूरज अर्घ्य देते हैं. इसका मतलब है कि हमारे मन के भावों के माध्यम से हम सूर्य का शुक्रिया अदा करते हैं. इसके साथ ही कहा जाता है कि यह तोयौहार जब आता है तो विशेष सफाई होती है.नचारों ओर कोना कोना साफ़ हो जाता है और बड़ी स्वच्छता के साथ इसे मनाया जाता है.
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तन, मन की सफाई और शुद्धता
अपनी सफाई के साथ साथ घरों की सफाई भी होती है, बिना स्नान किए रसोई घर में भी नहीं जाते. साथ साथ इन दिनों जो मन, तन, वातावरण और घर की पवित्रता को कायम रखा जाता है और इसलिए इन दिनों में कोई भी प्रकार का अशुद्ध भोजन नहीं किया जाता है. यहां तक कि नमक,प्याज और लहसुन खाने तक की स्वीकृति नहीं होती है,इतनी शुद्धता के साथ यह त्यौहार मनाया जाता है.
वास्तव में, इसके पीछे भाव यह है कि उस सूर्य को तो हम अपनी भावनाएं अर्पण करते हैं, अपना शुक्रिया अदा करते हैं, हमारी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं लेकिन परमात्मा ज्ञान सूर्य है, वह जब सृष्टि में आते हैं तब हम उनका उत्सव शिवरात्रि के रूप में मनाते हैं, लेकिन वो परमात्मा आकर के जब मनुष्य जीवन के अंदर, आत्मा का शुद्धिकरण करते हैं और उस शुद्धिकरण के साथ जाने का समय आता है. जब घर-घर में आत्म ज्योति जग जाती है, भाई-भाई की मनोवृति, पशु-पक्षी, प्रकृति सब शुद्ध हो जाती है, तब उनके वापिस जाने का समय आता है अर्थात सूर्यास्त होता है. ज्ञान सूर्य के अस्त होने का समय है, ऐसे समय पर वह परमात्मा के प्रति हमारी कृतज्ञता है. उनका भी हम शुक्रिया अदा करते हैं और उसके लिए उन्होंने आकर के जो हमारे जीवन के अंदर आत्मा का शुद्धिकरण करते हुए भोजन का शुद्धिकरण और जीवन के अंदर संयम, नियम, आदि के साथ जिस प्रकार से हमें ऊंचा उठाते हैं, हमारे चरित्र का उत्थान करते हैं.
यह पवित्रता न सिर्फ तन की, मन की, वृत्तियों की पवित्रता, वो भी ईश्वर ही हमारे अंदर स्थापित करते हैं. छठ के महापर्व में, लोग 36 घंटे का उपवास करते हैं, यहाँ उप के 2 अर्थ हैं, उप अर्थात नज़दीक, उप माना ऊपर. अतः ऊपर रहने वाले परमात्मा के साथ मेरी बुद्धि का निवास रहे, यह उपवास है. अर्थात ईश्वर को जब हम इतना याद करते हैं, तब शक्ति का सकाश हमारे जीवन के अंदर आता है और 36 उपवास का महत्त्व यही है कि वो परमात्मा की निरंतर स्मृति से हमारे अंदर 36 गुण जो कि दिव्य गुण आने लगते हैं, जीवन इतना दिव्य होने लगता है. उस 36 घंटे के उपवास के बाद, फिर सूर्यास्त जब होने लगता है छठ होता है, तो हाथ में पानी लेकर के सूर्य को अर्पित करते हुए एक संकल्प लेते हैं. माना जब सूर्य जा रहा है, यानी विदाई ले रहा है, उस समय हम संकल्पबद्ध होते हैं.
वैसे इसके पीछे एक वैज्ञानिक कारण भी होता है, जो यही है की जब सूर्योदय और सूर्यास्त के समय जब पानी दिया जाता है, वो पानी जब गिरता है और उसमें जब सूर्य की किरणें आती हैं, तो वो सूर्य की किरणें उसमें सातों रंग बिखेरती हैं. प्रिज्म का काम करतीं हैं और जब सातों रंगों की ऊर्जा हमारे अंदर आती हैं तो हमें स्वास्थ्य प्रदान करती हैं तो इस पर्व के पीछे यही भाव है कि हमारा तन, मन सदा स्वस्थ रहे, कभी कोई बीमारी ना आये, परिवार के अंदर अगर कोई मुसीबत आये तो हर मुसीबत को पार करने की शक्ति हमें प्राप्त हो. वैज्ञानिक कारण तो यही है कि जब वो पानी अर्पित करते हैं, उसमें से सूर्य की किरणें जब गुज़रती हैं, तो वो सातों रंग की ऊर्जा हमें प्रदान करती हैं, जिससे हमारे जीवन के अंदर स्वास्थ्य लाभ होता है और ताकि सूर्य की जो रोशनी हमें प्राप्त होती है, वो ऊर्जा कहीं लीक ना हो जाये
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इसलिए धरनी में खड़े रहकर जल नहीं दिया जाता है, लेकिन पानी में रहकर जल दिया जाता है क्योंकि अगर धरती पर खड़े रहकर जल अर्पित करें तो जो ऊर्जा हमें मिलती है, वो ऊर्जा कुछ लीक होकर के जमीन के अंदर चली जाती है लेकिन जब पानी में खड़े हो जाते हैं, तो पानी से हमारी ऊर्जा लीक नहीं होती है अर्थात परमात्मा ज्ञान सूर्य का निरंतर सिमरन करते हैं, उसकी स्मृति में रहते हैं, तो परमात्मा द्वारा सकाश प्राप्त होता है. वो सकाश यानी आत्मा के सातों गुणों की ऊर्जा हमें मिलने लगती है और जबी मन इतना प्रसन्न होने लग जाए, आत्मा इतनी स्वस्थ हो जाए, तो शरीर तो स्वस्थ हो ही जाएगा.
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छठ का यह महापर्व 4 दिन चलता है और उसके बाद, खुशियां ही खुशियां मनाई जातीं हैं तो दिवाली से यह सिलसिला चलते-चलते, महापर्व के दिन यानी सप्तमी की सुबह में इस पर्व के समय यह महापर्व समाप्त होता है. अतः ऐसी भावना कृतज्ञता, ऐसा आभार हमारा ईश्वर के प्रति हो तो उस आभार से हम परमात्मा के वरदान के भी अधिकारी बन जाते हैं. ऐसा जब हम जीवन जीते हैं, यही हमारा प्रत्यक्ष स्वरूप प्रत्यक्ष फल के रूप में जब हम उन्हें अर्पित करते हैं, तो ज़रूर है कि ईश्वर के भी दुआओं के भी पात्र बन जाते हैं.
तभी कहा जाता है कि सिर्फ स्वयं ही संतुष्ट रहें, इतना नहीं, लोग हमसे संतुष्ट रहें, इतना नहीं, लेकिन हमारा जीवन इस क्वालिटी का हो जो ईश्वर भी हमसे संतुष्ट हो, ताकि ईश्वर भी खुश हो जो उसकी दुआओं का हाथ हमारे ऊपर आ जाए, यह मेरी सत्य कृतज्ञता है ईश्वर के प्रति, जो उसने दिया है, जो उसने सजाया है, जो उसने श्रृंगार किया है, वो मेरे जीवन से प्रत्यक्ष अनेकों के लिए उदहारण बन जाएं, आदर्श बन जाएँ, यही हमारी कृतज्ञता है
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