Chhath Puja Katha 2024: हिंदू धर्म में छठ पूजा का बड़ा महत्व है. इस साल छठ की शुरुआत 5 नवंबर 2024 को नहाय खहाय से हो गई है. छठ के तीसरे दिन 7 नवंबर को डूबते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है. इसमें सूर्यदेव और छठ मैया की पूजा अर्चना की जाती है. व्रती महिलाएं जल में खड़े होकर माता डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं. इसके बाद व्रती और परिवार के लोग पूरी रात किर्तन और माता के भजन के साथ ही छठी मईया की कथा सुनते हैं. मान्यता है कि छठ पूजा पर छठी मईया की कथा सुनने से व्यक्ति के हर दुख-दर्द और कष्ट दूर हो जाते हैं. माता रानी मनोकामना पूर्ण करती हैं. आइए जानते हैं छठी मईया की व्रत कथा...
छठ पूजा व्रत कथा (Chhath Vrat Katha)
पौराणिक मान्यताओं अनुसार, बहुत समय पहले प्रियंवद नामक के राजा थे. उनकी पत्नी का नाम मालिनी था. शादी के काफी समय हो जाने के बाद भी उनकी कोई संतान नहीं थी. इस बात से दोनों दुखी रहते थे. उन्होंने संतान प्राप्ति की इच्छा के कई जतन किए. इसके बाद उन्होंने महर्षि कश्यप द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ कराया. यज्ञ संपन्न करने के बाद महर्षि ने राजा प्रियव्रत की पत्नी मालिनी को खीर खाने को दी. खीर का सेवन करने से मालिनी गर्भवती हो गईं. इससे दोनों के साथ-साथ प्रजा काफी खुशी हुई. समय के साथ महारानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन उन्हें मरा हुआ पुत्र प्राप्त हुआ. राजा को बहुत दुख हुआ. उन्होंने निराश होकर प्राण त्यागने का निश्चय कर लिया.
भगवान की मानस पुत्री देवसेना हुई प्रकट
जब राजा ने प्राण त्यागने चले तो उनके सामने भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हो गई. उन्होंने राजा प्रियंवद से कहा कि वह षष्ठी देवी हैं और वह लोगों को पुत्र का सौभाग्य प्रदान करती हूं. इसके साथ ही जो लोग मेरी सच्चे मन से आराधना करते हैं मैं उनकी सभी मनोकामना पूर्ण कर दूंगी. अगर राजन तुम मेरी विधि विधान से पूजा करोगे तो मैं तुम्हें पुत्र रत्न का वरदान दूंगी.
राजा की पूजा से प्रसन्न हुई मां
देवी की आज्ञा मानकर राजा प्रियंवद ने कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को देवी षष्ठी का विधि विधान से पूजन किया. इसके फलस्वरूप राजा की पत्नी फिर से गर्भवती हुई और उन्हें सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई. ऐसा माना जाता है तभी से छठ पर्व मनाया जाने लगा, जो व्यक्ति छठ पर्व की विधिवत पूजा करने के साथ व्रत रखता है तो छठी मईया उनकी हर मनोकामना पूरी करती है. छठ पर्व के दौरान व्रती तीसरे और चौथे दिन पवित्र नदी या तालाब में कमर तक जल के अंदर खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं.
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