Dev Deepawali 2023: आज से 15 दिन बाद मनाई जाएगी देव दिवाली, जानें सही तारीख तिथि और दीपदान का महत्व

Written By नितिन शर्मा | Updated: Nov 13, 2023, 05:03 PM IST

दिवाली का त्योहार जा चुका है. अब गंगा घाट पर देव दिवाली की तैयारी शुरू हो गई है. इस दिन दीप दान किया जाता है. इसे महापर्व के रूप में मनाया जाता है. दीप दिवाली पर गंगा स्नान के बाद दीप दान करने का बड़ा महत्व है.

डीएनए हिंदी: दिवाली के त्योहार के 15 दिन बाद देव दिवाली की पर्व आता है. इसे दीप दिवाली और देव दिवाली भी कहा जाता है. पंचांग के अनुसार देव दिवाली चतुर्दशी उपरांत पूर्णिमा पर मनाई जाती है. यह राक्षस त्रिपुरासुर पर भगवान शिव की जीत के प्रतीक के रूप में मनाई जाती है. इसलिए देव दीपावली को त्रिपुरोत्सव या त्रिपुरारी पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है. राक्षस से मुक्ति की प्रसन्नता में देवी-देवता काशी के गंगा घाट पर दिवाली मनाने उतरे थे. तभी से इस दिवाली को देव दिवाली कहा जाता है. इस दिन गंगा स्नान और दीपदान का विशेष महत्व होता है. 

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देव दिवाली पर जलाते हैं दीये

देव दिवाली के दिन लोग गंगा जी डुबकी लगाने के बाद शाम के समय मिट्टी के दीपक जलाएं जाते हैं. गंगा घाट से लेकर बनारस के सभी मंदिरों पर लाखों दीपक जलाएं जाते हैं. 

जानें कब है दीप दिवाली

द्रिक पंचांग के अनुसार, पूर्णिमा तिथि 26 नवंबर की दोपहर 3 बजकर 53 मिनट से शुरू होगी और 27 नवंबर 2023 को 2 बजकर 45 मिनट पर समाप्त हो जाएगी. वहीं देव दीवाली का शुभ मुहूर्त प्रदोष काल देव दीपावली मुहूर्त 26 नवंबर की शाम 05 बजकर 08 मिनट से शाम 07 बजकर 47 मिनट तक रहेगी. पूजन की अवधि 02 घंटे 39 मिनट की होगी.

इस तारीख में मनाई जाएगी दीप दिवाली 

हिंदू धर्म में तीज-त्योहारों को लेकर अक्सर तिथियों को लेकर असमंजस की स्थिति बनी रहती है. गोवर्धन के बाद दीप दिवाली पर भी कुछ ऐसे ही स्थिति बन रही है. दीप दिवाली की तिथि की शुरुआत 26 नवंबर और समाप्ति 27 नवंबर को होगी. ऐसे में दीप दिवाली की कन्फ्यूजन को लेकर काशी की विश्व प्रसिद्ध गंगा आरती कराने वाली समितियों ने केंद्रीय देव दीपावली महासमितियों के साथ बैठकर 27 नवंबर को ही उदयातिथि के अनुसार देव दीपावली का पर्व मनाने का फैसला लिया है. इसी को देखते हुए 27 नवंबर 2023 को देव दिवाली का त्योहार मनाया जाएगा.  

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ये है देव दीवाली का मंत्र

अत्रैव त्रिपुरोत्सव उक्तो भविष्य- पौर्णमास्यां तु सन्ध्यायां कर्तव्यस्त्रिपुर उत्सवः. दद्यादनेन मत्रेण सुदीपांश्च सुरालये. कीटाः पतङ्गा मशकाश्च वृक्षा जले स्थले ये विचरन्ति जीवाः. दृष्ट्वा प्रदीप नहि जन्मभागिनस्ते मुक्तरूपा हि भवन्ति तंत्र.' इति . अत्र पौर्णमासी संध्याकालव्यापिनी ग्राह्या पूर्वोक्तभविष्यवाक्ये सध्यायामित्युक्तेः.

Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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