Diwali Spiritual Significance: क्या है दीपक जलाने का महत्व, कैसे मनाएं सच्ची दिवाली

सुमन अग्रवाल | Updated:Oct 22, 2022, 10:46 AM IST

Diwali Celebration-धनतरेस से दिवाली तक क्या है इन त्योहारों तक आध्यात्मिक महत्व, कैसे मनाएं सच्ची दिवाली

डीएनए हिंदी: Diwali Spiritual Significance-  जब भी दीपावली का पर्व आता है, मन उमंग,उत्साह,खुशियों और पुरानी स्मृतियों से भर जाता है. 2-3 दशक पूर्व तक रोशनी का यह पर्व पूरे परिवार में आपसी स्नेह, सौहार्द और सच्चे दिल के साथ मनाया जाता था, उस समय हम सबके दिल पारस्परिक स्नेह व एकता से रोशन होते थे. दिवाली की तैयारियां 10 दिन पहले से ही शुरू हो जाती थी, दिवाली का त्योहार पांच दिन तक लगातार धनतेरस (Dhanteras) से शुरू होकर गोवर्धन (Govardhan) तक होता था, लेकिन अब लगता है वो सारी चीजें इतिहास बन गईं हैं, आज क्यों लोगों के दिल एक-दूसरे से दूर होते जा रहे हैं? हम क्या गलत कर रहे हैं? दिवाली की खुशी तो है लेकिन दिलों में वो प्यार कहीं कम सा हो गया है, हम सच्ची दिवाली का महत्व भूल गए हैं. 

5 दिवसीय इस रोशनी के पर्व का आगाज धनतेरस से होता है, जिसे प्रतिवर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है. इस दिन विशेषकर नए बर्तनों और सोने-चांदी की वस्तुओं की खरीददारी को शुभ माना जाता है. कहते हैं कि इस दिन खरीदारी करने से लक्ष्मी की कृपा बरसने लगती है. इसके अलावा, इस दिन मां लक्ष्मी और धन्वन्तरि के सम्मान में दीये भी जलाये जाते हैं. भले दुकानों की चकाचोंध लुभावनी होती है, लेकिन अब इन साज-सजावट में खुशियां कम बनावट ज्यादा लगने लगी है. लोगों के दिलों के बीच बढ़ती दूरी के कारण ये जश्न बस एक औपचारिकता बनकर रह गया है. 

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धनतेरस का आध्यात्मिक रहस्य (Dhanteras) 

इतना मंगलकारी त्यौहार कार्तिक मास के तेहरवें दिन ही क्यों मनाया जाता है और इतने वर्षों तक इसे मनाये जाने के बावजूद अब तक लक्ष्मी की कृपा क्यों नहीं हुई? निश्चित रूप से, जिसे स्वयं निराकार परमपिता परमात्मा शिव ने गुप्त रूप में अवतरित होकर बताया है कि तेरह माना 'तेरा' करना, अर्थात मेरा का अंश मात्र भी न हो. अगर हम अपना तन,मन,धन,समय, श्वांस,संकल्प,संस्कार,सम्बन्धी,जो कुछ भी हमारा है,वो तेरा करते जायेंगे,अर्थात प्रभु जो दाता है,उसकी अमानत समझ करके चलाएंगे और उसका उपयोग उनके कहे अनुसार करेंगे तो वह सफल होगा.  अगर धन को भी हम प्रभु की अमानत समझकर ईमानदारी से उपयोग करेंगे, तो उससे दुआएं प्राप्त होंगी, जिसके फलस्वरूप, धन की वृद्धि होगी, वह सफल होगा. जब देह ही विनाशी है, तो यह मैं कैसे हुई और यह धन भी साथ नहीं जाएगा तो यह भी मेरा कैसे हुआ. यदि हम मैं को मैं आत्मा मानेंगे और मेरा धन, संपत्ति, मेरे सम्बन्ध के बजाय, मेरा परमपिता परमात्मा कहेंगे तो हमारे सभी खजाने बढ़ते जायेंगे.

छोटी दिवाली अर्थात नरक चतुर्दशी/रूप चौदस

कहा जाता है कि संसार में नरकासुर नाम का सुर था जिन्होंने देवी देवताओं को बंधी बना लिया और जब चारों ओर उसने अपना साम्राज्य बना लिया तो वह उन पर बहुत अत्याचार करने लगा. लोग दुखी होकर ईश्वर को पुकारने लगे, तब कहा परमात्मा इस संसार में अवतरित हुए और अवतरित होकर नरकासुर का खात्मा करते हैं और जो देवी-देवताओं को बंदी बनाया था, उन्हें मुक्त करते हैं और इस तरह सभी देवी-देवतायें ख़ुशी में आकर चारों ओर दीपावली अर्थात दीपमाला सजा देते हैं. खुशी में सभी हर्षोल्लास के साथ यह दीपावली का त्यौहार मनाते हैं. वास्तव में आध्यात्मिक ज्ञान के प्रकाश से इस बात को हमें समझना चाहिए कि नरकासुर कौन है, जिसने हर एक मनुष्य के जीवन पर अपना आधिपत्य स्थापित कर दिया है. यह नरकासुर और कोई नहीं बल्कि ये पांचों विकार - काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार यही तो नर्क के द्वार हैं. श्रीमद्भागवत गीता में भी भगवान ने अर्जुन से कहा कि काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, नर्क का द्वार हैं और इन विकारों के कारण हम दुखी अशांत हो रहे हैं, अत्याचार का सामना करना पड़ रहा है

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दिवाली का महत्व

कहा जाता है कि वो देव कुल की आत्माएं जीवन मुक्त स्थिति का अनुभव करती हैं और जब ऐसी जीवन मुक्त स्थिति आ जाती है, तब श्री लक्ष्मी - श्री नारायण का राज्य पुनः इस संसार में आता है. वो देवी कुल की आत्माएं बहुत सुन्दर जीवन को व्यतीत करते हैं, जहां हर प्रकार के धन-धान्य से संपन्न जीवन होता है. तो आइये नरक चतुर्दशी के इस अवसर पर हम यह संकल्प करते हैं कि हम अपने जीवन में नरकासुर का खात्मा करें, क्योंकि इसी ने हमारे जीवन को इतना दुखी अशांत बना दिया है. कहते हैं जैसे दिवाली पर दीपक जलाकर बाहर का अंधेरा  दूर करते हैं, वो साल में एक बार होता है, लेकिन आत्मा की ज्योत जलाकर मन का अंधेरा, संसार का अंधेरा दूर करना ही सच्ची दिवाली है. 

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