डीएनए हिंदी: भगवान शिव (Lord Shiva) के कई नाम हैं और उनकी पूजा भी कई तरह से होती है. शिवलिंग की पूजा अलग तरह से और शंकर की प्रतिमा की पूजा अलग तरह से होती है. इतना ही नहीं दोनों ही स्वरूपों की पूजा में चढ़े प्रसाद को ग्रहण करने से संबंधित नियम भी अलग-अलग हैं. मंदिर में कहीं भगवान शिव तो कभी शिवलिंग की स्थपाना होती है. तो चलिए आज सावन के पहले सोमवार पर आपको भगवान शिव और शंकर से जुड़ी कुछ विशेष बातों की जानकारी दें.
Shiv Aur Shankar को कभी भोलेबाबा, तो कभी महादेव तो कभी त्रिलोकी नाथ जैसे अनेक नामों से पुकारा जाता है. सोमवार के दिन भगवान शिव की पूजा का विशेष विधान माना गया है. लेकिन बहुत से लोगों को यह पता नहीं होता कि भगवान शिव और शंकर दोनों अलग-अलग हैं.
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तस्वीरों में शिव और शंकर हैं अलग-अलग
शिव और शंकर की तस्वीरों में उनकी आकृति अलग-अलग है. कई जगह तस्वीरों में शंकर को शिवलिंग का ध्यान करते हुए भी दिखाया जाता है. भगवान शिव का नाम भगवान शंकर के साथ जोड़ा जाता है. इसलिए लोग शिव, शंकर, भोलेनाथ के नाम से पुकारते हैं. बता दें कि भगवान शंकर को ऊंचे पर्वत पर तपस्या में लीन बताया जाता है. जबकि भगवान शिव ज्योति बिंदु के स्वरूप हैं. जिनकी पूजा ज्योतिर्लिंग के रूप में की जाती है.
शिव जी के तीन प्रमुख कर्तव्य हैं
पुराणों में भगवान शिव के 3 प्रमुख कर्तव्य बताए गए हैं. सत युगी दुनिया की स्थापना करना, दैवीय दुनिया की पालना करना और पतित दुनिया का विनाश करना. ये तीनों कर्तव्य भगवान शिव तीन प्रमुख देवताओं ब्रह्मा, विष्णु और शंकर (महेश) के द्वारा करवाते हैं. इसीलिए भगवान शिव को त्रिमूर्ति भी कहा जाता है. भगवान शिव जन्म मरण के चक्र या बंधन से मुक्त हैं. जबकि शंकर साकारी देवता हैं. भगवान शंकर को आदिदेव महादेव भी कहा जाता है. भगवान शिव, शंकर में प्रवेश करके महान से महान कार्य करवाते हैं.
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ऐसे कार्य जिन्हें कोई देवी देवता, साधु संत, महात्मा नहीं कर सकते, इसके अलावा भगवान शिव सत्य ज्ञान देकर सत्ता चरण की धारणाओं को भगवान ब्रह्मा द्वारा पृथ्वी पर स्थापित करते हैं. भगवान शिव एक निराकार ज्योति बिंदू स्वरूप हैं जबकि शंकर साकार हैं.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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