डीएनए हिंदीः देव दीपावली की तरह ही गया में आज यानी पितृपक्ष के 14वें दिन पितरों की दीपावली होती है. क्योंकि इस बार 17 सितंबर को श्राद्ध नहीं थे, इसलिए 14 दिन पितृपक्ष के आज पूरे हो रहे हैं. आज शाम को गया में पितरों के निमित्त दीपदान कर आतिबाजी की जाती है.
मान्यता है कि जिन पितरों का तपर्ण और पिडंदान हो जाता है वह अपने लोक वापस जाने लगते हैं और उनके आदर-सम्मान के साथ ही ही उनके मार्ग को प्रकाशमय करने के लिए ये दीपावली होती है.
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बता दें कि गया को भगवान विष्णु की नगरी और मोक्ष की भूमि कहा जाता है. गया को भगवान विष्णु स्वयं पितृ देव के रूप में विराजमान रहते हैंए इसलिए इसे पितरों का तीर्थ भी कहा जाता है. यहां जिस भी पितरों का पिंडदान होता है वह मोक्ष को प्राप्त करते हैं गरुड़ पुराण के अनुसार गया में श्राद्ध पितरों को सीधे स्वर्ग के दरवाजे पर ले जाता है.
श्राद्ध 10 सितंबर से शुरू हुआ था और महालया यानी सर्वपितृ अमावस्या के साथ 25 सितंबर को समाप्त हो जाएगा.
पितृपक्ष में पितरों का पिंडदान वैसे तो कहीं पर भी किया जा सकता है लेकिन गया में पिंडदान सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है. आज शाम को आप कहीं पर भी हों आपने पूर्वजों के निमित्त दीपदान जरूर करें. इससे वह प्रसन्न होंगे और अपने आदर सत्कार का आशीर्वाद पूरे कुल को देंगे.
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पितृपक्ष का 14वां दिन बहुत मायन रखता है. इस बार 17 सितंबर को पिंडदान होने से 14वां दिन आज यानी शनिवार 24 सितंबर को है. आज के दिन फल्गु नदी के जल और दूध से तर्पण किया जाता है, जिससे पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. सुबह नित्यकर्म कर फल्गु नदी में स्नान कर नदी में दूध से तर्पण करना चाहिए. तर्पण के बाद विष्णुपद मंदिर स्थित गदाधर भगवान को पंचामृत से स्नान करवाना चाहिए. उसके विष्णुपद की पूजा कर संध्या बेला में दीप दान करना चाहिए.
क्या होता है आज के दिन
14वें दिन शाम को विष्णुपद फल्गु नदी के किनारे पितृ दीपावली मनाए जाने की परंपरा है. इस दौरान पितरों के लिए दीप जलाकर आतिशबाजी की जाएगी. दीपदान के अवसर पर विष्णुपद तथा देवघाट को दीयों से सजाया जाएगा. आज के दिन दीपदान करने से पितरों के स्वर्ग जाने का मार्ग प्रकाशमय हो जाता है. मान्यता है कि कि वर्षा ऋतु के अंत में आश्विन कृष्ण पक्ष त्रयोदशी को यमराज अपने लोक को खाली कर कर सभी को मनुष्य लोक में भेज देते हैं. मनुष्य लोक में आए प्रेत एवं पितर भूख से दुखी अपने पापों का कीर्तन करते हुए अपने पुत्र एवं पौत्र से मधु युक्त खीर खाने की कामना करते हैं. अतः उनके निमित ब्राह्मणों को खीर खिलाकर तृप्त करना चाहिए.
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