धार्मिक कथाओं के अनुसार ऋषि मार्कण्डेय जन्म से ही अल्पायु थे. उनके माता-पिता अपने बेटे की असामयिक मृत्यु से बहुत भयभीत थे. बाद में ऋषि मार्कंडेय ने महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया और यमराज को वापस लौटने और लंबी उम्र पाने के लिए मजबूर किया. इन्हीं मार्कण्डेय ने बाद में विश्व कल्याण के लिए श्रीमृत्युंजयस्तोत्रम् लिखा.
शिव मृत्युंजय स्तोत्र भगवान शंकर की स्तुति है. इसकी रचना ऋषि मार्कंडेय ने की थी जिनका उल्लेख पद्म पुराण के उत्तरखंड में मिलता है. शिव मृत्युंजय स्तोत्र का पाठ करने से चमत्कारिक लाभ होता है. इससे मृत्यु का भय दूर होता है और व्यक्ति में सकारात्मक ऊर्जा और साहस बढ़ता है. इस कारण इस स्तोत्र का पाठ युवाओं के लिए विशेष लाभकारी है.
यह स्तुति भगवान शंकर के गुणों का वर्णन करती है. ऐसा माना जाता है कि जो भी भक्त प्रतिदिन इस स्तोत्र का पाठ करता है उसे भगवान शंकर की कृपा प्राप्त होती है. इसका पाठ विशेषकर सोमवार, त्रयोदशी, चतुर्दशी या श्रावण मास के दिन अवश्य करना चाहिए.
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॥ शिव मृत्युंजय स्तोत्रम्
रत्नासानुशर द्वारा रजताद्रिश्रृंगानिकेतन
शिंजिनिकात् पन्नगेस्वरमचूथनलसयकम्.
क्षिप्रदग्धापुरत्रय त्रिदशलयैरभिवंदितम्
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥1॥
पंचपादपुष्पगन्धिपादम्बुजद्व्यासोभित
भलोचनजतपवकदग्धामन्मथविग्रहम्.
भस्मादिग्धकाल धन का अपव्यय है
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम: ॥2॥
मत्त्वारान् मुख्यचर्मकृतोत्तारीयमनोहारा
पंकजासनपद्मालोचनपूजितंघृस्रोरुहम्.
देवसिद्धतरंगिणी कारसिकताशितजताधर
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥3॥
कुण्डलीकृतकुण्डलीश्वरकुण्डलं वृषभानम्
नारदादिमुनिश्वरस्तुवैभवं भुवनेश्वरम्.
अंधकंटकमाश्रितमरपादपं शमनंतकम्
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम: ॥4॥
यक्षराजसख भगक्षीहार भुजंगविभूषणम्
शैलराजसुतापरिस्कृतचारुवामक्लेवराम.
मृगों का क्षवेदनी से गहरा संबंध है
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम: ॥5॥
भेषजं भवारोगिनमिखिलापहारी
दाक्षयज्ञविनाशिनाम् त्रिगुणात्मक त्रिविलोचनम्.
भुक्तिमुक्तिफलप्रदं निखिलघ संघनिबर्हना
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥6॥
भक्तवत्सलामरचत् निधिमक्षाय हरिदम्बरम्
सर्वभूतपति परतपरमप्रमयमनुपमम्.
भूमिवारिंभोहुतासंसोमपलितस्वकृति
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥7॥
ब्रह्मांड का पुनरुद्धार
संहारन्तमथ प्रपंचमशेषलोकनिवासिनम्.
युवाओं में खेलों की गिनती होती है
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥8॥
रूद्र पशुपति स्थान नीलकंठुमपतिम्.
नमामि शिरसा देव कि न मृत्यु: करिष्यति ॥9॥
कलाकंठ कलामूर्ति कालाग्नि कलनाशनम्.
नमामि शिरसा देवा कि नो मृत्यु: करिष्यति ॥10॥
नीलकण्ठ विरुपाक्ष निर्मलं निरुपद्रवम्.
नमामि शिरसा देवा कि नो मृत्यु: करिष्यति ॥11॥
वामदेव महादेव लोकनाथ जगद्गुरुम्.
नमामि शिरसा देवा कि नो मृत्यु: करिष्यति ॥12॥
देवदेवं जगन्नाथ देवेशमृषभध्वजम्.
नमामि शिरसा देवा कि नो मृत्यु: करिष्यति ॥13॥
अनन्तमव्यय शान्तमक्षमालाधर हरम.
नमामि शिरसा देवा कि नो मृत्यु: करिष्यति ॥14॥
आनंद परमं नित्यं कैवल्यपादकरणम्.
नमामि शिरसा देवा कि नो मृत्यु: करिष्यति ॥15॥
स्वर्गापवर्गदातारं सृष्टिस्तत्यन्तकारिणाम्.
नमामि शिरसा देव कि न मृत्यु: करिष्यति ॥16॥
॥ इति श्रीपद्मपुरन्तर्गत उत्तरखण्डे श्रीमृत्युंजयस्तोत्रम सम्पूर्णम्. ॥
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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