Durga Puja 2023: सीने पर त्रिशूल, लहूलुहान शरीर, फिर भी देवी के साथ क्यों होती है महिषासुर की पूजा

Written By ऋतु सिंह | Updated: Oct 18, 2023, 02:18 PM IST

Durga Puja

देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था बावजूद इसके क्यों हर नवरात्रि पर उसकी पूजा होती है, जानिए पुराण इस बारे में क्या कहता है.

डीएनए हिंदीः शुक्रवार 20 अक्टूबर को महाषष्ठी है और इस दिन से दुर्गा जी की विशेष पूजा और पंडालों में देवी के दर्शन की तैयारियां पूरी हो जाती हैं. दुर्गा पूजा का त्योहार विभिन्न रीति-रिवाजों और पौराणिक कहानियों से जुड़ा है.आज महिषासुर के बारे में जानेंगे कि आखिर देवी संग इसकी पूजा क्यों होती है.

महिषासुर आसुरी शक्ति का प्रतीक है. हमेशा देवी की मूर्ति के साथ महिषासुर भी होता है.  छाती पर देवी दुर्गा का त्रिशूल, रीर पर घावों से खून बहता उसकी भी मूर्ती देवी के चरणों के पास होती है. लेकिन घायल और तबाह होने के बावजूद, महिषासुर पूजा से वंचित नहीं रहता. मां दुर्गा के साथ उनकी भी पूजा की जाती है. महिषासुर की भी पूजा क्यों की जाती है, जानिए पुराणों से.

इसलिए महिषासुर की होती है पूजा

महिषासुर ने ब्रह्मा के वर के रूप में अत्यंत शक्तिशाली बनकर स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया. उसने देवताओं को स्वर्ग से निकाल दिया और स्वर्ग पर कब्ज़ा कर लिया. महिषासुर से पराजित होकर देवता ब्रह्मा की शरण में गये. महिषासुर को कोई भी मनुष्य नहीं मार सकता, यह वरदान उसे स्वयं ब्रह्मा ने दिया था.

देवताओं की दुर्दशा सुनकर ब्रह्मा, विष्णु, शिव, इंद्र और अन्य देवताओं के शरीर से तेज निकल गया. देवताओं की एकत्रित तेज से एक अत्यंत सुंदर देवी प्रकट हुईं और देवताओं ने उन्हें अपने सभी सर्वोत्तम हथियार दिये. यह दस हाथों वाली देवी दुर्गा सर्वशक्तिमान ही थीं. उसकी चीख से त्रिलोक कांप उठा था.

उनके रूप से आकर्षित होकर महिषासुर ने देवी के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा. जब देवी ने इसे लापरवाही से अस्वीकार कर दिया तो क्रोधित होकर देवी ने महिषासुर से भीषण युद्ध किया. इस युद्ध में महिषासुर मारा गया. महिषासुर ने तीन अलग-अलग रूप धारण करके देवी पर तीन बार हमला किया.

दुर्गा ने उसे हर बार नष्ट कर दिया. सबसे पहले उन्होंने आठ भुजाओं वाली उग्रचंदा के रूप में, दूसरी बार भद्रकाली के रूप में और तीसरी बार दस भुजाओं वाली देवी दुर्गा के रूप में महिषासुर का वध किया. दुर्गा परम प्रकृति हैं.

महिषासुर ने अपनी मृत्यु से पहले देवी से क्षमा मांगकर पूजा की. उनकी पूजा से संतुष्ट होकर, देवी ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि उग्रचंद, भद्रकाली और दुर्गा, इन तीन रूपों में, महिषासु के समय में देवताओं, पुरुषों और राक्षसों द्वारा पूजा की जाएगी.' महिषासुर की देवी के चरणों में पूजा किये जाने का वर्णन कालिका पुराण में मिलता है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

देश-दुनिया की ताज़ा खबरों Latest News पर अलग नज़रिया, अब हिंदी में Hindi News पढ़ने के लिए फ़ॉलो करें डीएनए हिंदी को गूगलफ़ेसबुकट्विटर और इंस्टाग्राम पर.