Dussehra: रावण ने यहां किया था महादेव को अपना 9 सिर समर्पित, आज भी मौजूद हैं निशानियां

ऋतु सिंह | Updated:Oct 05, 2022, 07:43 AM IST


रावण ने यहां किया था महादेव को अपना 9 शीश समर्पित, आज भी मौजूद हैं निशानियां

Dussehra :रावण ने उत्‍तराखंड में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए 10 हजार साल तक तपस्‍या की थी और उसकी निशानियां आज भी मौजदू हैं.

डीएनए हिंदीः भगवान शिव का परम भक्त रावण को कहा जाता है और मान्यता है कि महादेव को प्रसन्न करने के लिए कभी रावण ने देवभूमि के पहाड़ों साधना की थी और शिव जी को यहीं पर अपने 9 सिर अर्पित किए थे और जब दसवां सिर अर्पित करने जा रहा था तब महादेव प्रकट को कर उसे रोक दिए थे. 

उत्तराखंड के गोपेश्वर स्थित दशोली गढ़ में रावण के तपस्या करने की दंत कथाएं प्रचलित हैं. मान्यता है कि रावण ने करीब दस हजार साल तक तपस्या की थी और जब अपने  एक एक कर सिर को महादेव के नाम समर्पित किया था.

यह भी पढ़ें : दशहरे पर ही खुलता है 7 सौ साल पुराना ये मठ, नागा साधुओं से जुड़ी है परंपरा 

यहां रावण से जुड़ी निशानियां आज भी मौजूद है. स्कंद पुराण के केदार खंड में भी दसमोलेश्वर के नाम से वैरासकुंड क्षेत्र का उल्लेख मिलता है. मान्यता के अनुसार दशोली गढ़ में वैरासकुंड में रावण ने तप किया था और यहीं पर रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तप 10 हजार सालों तक तप कर अपने नौ सिरों की आहुति दी थी.
वैरासकुंड में जिस स्थान पर रावण ने तपस्या की थी वह कुंडए यज्ञशाला और शिव मंदिर आज भी यहां मौजूद है.

स्‍थानीय लोगों के मुताबिक कुछ समय पहले यहां एक खेत में खुदाई की गई थी। जहां से एक और कुंड मिला था. उनका है कि जब भी यहां आस-पास के क्षेत्रों में जब भी खुदाई होती है कुछ न कुछ प्राचीन काल की चीजें मिलती हैं.

यह भी पढ़ें: आज दशहरे पर बन रहा है दुर्लभ योग, जानिए विजयदशमी का मुहूर्त और पूजा विधि

यहां रावण शिला और यज्ञ कुंड है, जहां भगवान शिव के साथ रावण की पूजा भी होती है. शिव मंदिर में भगवान शिव का स्वयंभू लिंग भी है. स्कंद पुराण के केदारखंड के अनुसार यहां रावण ने भगवान शिव को प्रसन्‍न करने के लिए तपस्‍या के दौरान अपने नौ सिर यज्ञ कुंड को समर्पित कर दिए थे.

जैसे ही वह अपने 10वें सिर की आहूति देने लगा तो भगवान शिव प्रकट हुए और प्रसन्‍न होकर रावण को मनवांछित वरदान दिया. दस दौरान रावण ने भगवान शिव से इस स्थान पर हमेशा के लिए विराजने का वरदान मांगा था. तब से इसे भगवान शिव का स्‍थान माना जाता है.

यह भी पढ़ें: दशहरे पर भगवान श्रीराम की इन राशियों पर होगी कृपा,जानें अपना भाग्यफल  

दशानन के नाम से पड़ा दशोली
बैरासकुंड के पास रावण शिला है. जहां रावण की भी पूजा की जाती है. स्‍थानीय लोगों के मुताबिक दशोली शब्द रावण के 10वें सिर का अपभ्रंश है. इसी के नाम पर क्षेत्र का नाम दशोली पड़ा है. इसके साथ ही दशहरे पर यहां रावण के पुतले का दहन नहीं किेया जाता है. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 

देश-दुनिया की ताज़ा खबरों Latest News पर अलग नज़रिया, अब हिंदी में Hindi News पढ़ने के लिए फ़ॉलो करें डीएनए हिंदी को गूगलफ़ेसबुकट्विटर और इंस्टाग्राम पर

dussehra Ravan Kissa Uttarakhand Ravan Mandir Shiv-Ravan Kissa