भगवान परशुराम उनका जन्म त्रेतायुग में हुआ था और वे 7 चीरंजीवियों में शामिल हैं. परशुराम, धर्म, तपस्या, और ज्ञान के प्रतीक माने गए हैं और ब्राह्मण समाज परशुराम को गुरु, आचार्य, और वेदों के प्रतिनिधि के रूप में पूजा है.
लेकिन क्या आपको पता है कि परशुराम किस कुल से थे और उनके वंशज कौन थे. रविवार को गुरुग्राम में भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता व्यापार प्रकोष्ठ भाजपा, हरियाणा के प्रदेश संयोजक नवीन गोयल की ओर से परशुराम जी की लीला का मंचन कराया गया जिसमें भगवान परशुराम से जुड़ी कई जानकारी दी गई और ब्राह्मण समाज को एकजुट होने का संकल्प लिया गया
परशुराम का परिवार एवं कुल :
- परशुराम सप्तऋषि जमदग्नि और रेणुका के सबसे छोटे पुत्र हैं.
- ऋषि जमदग्नि के पिता का नाम ऋषि ऋचिका तथा ऋषि ऋचिका, प्रख्यात संत भृगु के पुत्र थे.
- ऋषि भृगु के पिता का नाम च्यावणा था. ऋचिका ऋषि धनुर्वेद तथा युद्धकला में अत्यंत निपुण थे. अपने पूर्वजों की तरह ऋषि जमदग्नि भी युद्ध में कुशल योद्धा थे.
- जमदग्नि के पांचों पुत्रों वासू, विस्वा वासू, ब्रिहुध्यनु, बृत्वकन्व तथा परशुराम में परशुराम ही सबसे कुशल एवं निपुण योद्धा एवं सभी प्रकार से युद्धकला में दक्ष थे.
- परशुराम भारद्वाज एवं कश्यप गोत्र के कुलगुरु भी माने जाते हैं.
इस समारोह में भगवान परशुराम जी का उनके पिता के साथ भावुक संवाद का मंचन हुआ और परशुराम जी द्वारा अपने पिता के वचन को निभाने का भावुक पर भी देखने को मिला. कार्यक्रम के अंत में भगवान परशुराम जी की आरती हुई.
इस मौके पर नवीन गोयल ने कहा कि जिस गुरु द्रोणाचार्य के नाम से गुरुग्राम है उनके भी गुरु भगवान परशुराम जी थे. जिस तरह से अन्याय, अधर्म, अत्याचार के खिलाफ भगवान परशुराम ने काम किए, ऐसे ही हम भी गुरुग्राम को हर तरह से बेहतर बनाकर विकास का एक मॉडल बनाने की सोच पर काम कर रहे हैं. भगवान परशुराम जी की तरह से हमें संकल्प लेकर काम करना है. साथ ही प्रतिज्ञाएं ली गई की गुडग़ांव में किसी का बुरा नहीं होने दिया जाएगा. ऐसा भाव लाना चाहते हैं कि सभी में परस्पर प्रेम हो. समारोह में जुटे ब्राह्मण समाज से आशीर्वाद मांगते हुए नवीन गोयल ने कहा कि हमने तो बचपन से ही ब्राह्मणों का आशीर्वाद लेकर काम की शुरुआत की है. राजनीति में आना एक विकल्प हो सकता है, लेकिन उनकी सोच समाज सेवा की है. ब्राह्मण समाज का आशीर्वाद लेकर वे 36 बिरादरी को साथ लेकर चले हैं.
नवीन गोयल ने कहा कि आप सबके आशीर्वाद से जो काम पिछले 20-30 साल में गुरुग्राम में हुए, मात्र 5 साल में उससे ज्यादा काम करने की सोच है. इस सोच को पूरा करने में गुरुग्राम की जनता का सहयोग चाहिए. जिस तरीके से सत्य व धर्म की रक्षा भगवान परशुराम ने की थी, उनके दिखाए रास्ते पर चलकर किसी के साथ अन्याय नहीं होने दूंगा. इस सफल कार्यक्रम के लिए नवीन गोयल ने सभी को बधाई दी. ब्राह्मण समाज की अनेक संस्थाओं के पदाधिकारियों ने नवीन गोयल को पगड़ी पहनाकर दिया विजयी भव का आशीर्वाद. नवीन गोयल ने कहा कि ब्राह्मण समाज के वश में मंत्र हैं. मंत्रों के वश में भगवान हैं. ब्राह्मण ब्रह्म स्वरूप हैं. भगवान से मिलाने का एक रास्ता है.
सत्यदेव शास्त्री ने कहा-प्रतिज्ञा लेते हैं कि नवीन गोयल की कामयाबी में मजबूती से काम करूंगा. अपने वोट के साथ 1000 वोट भी नवीन गोयल को डलवाने का काम करूंगा. कैलाश शर्मा, बाली पंडित, राजेश शर्मा ने कहा कि गुरुग्राम की सेवा जिस तरह से नवीन गोयल ने की है, उसे हर व्यक्ति जानता है. इस सेवा को रुकने नहीं देना है. इसलिए नवीन गोयल को कामयाब बनाना है. अशोक शर्मा ने कहा कि नवीन गोयल को ब्राह्मण समाज का सम्पूर्ण आशीर्वाद है. वे विजयी भव हों.
आरपीएस चौहान ने कहा कि नवीन गोयल 36 बिरादरी के नेता हैं. उनकी इस चुनाव में सबसे बड़ी जीत होगी. अजीत सिंह यादव ने कहा कि संजय ग्राम क्षेत्र की तरफ से नवीन गोयल का पूर्ण समर्थन है. क्षेत्र का एक-एक वोट नवीन गोयल के नाम पर होगा. महावीरपुरा से संदीप भारद्वाज ने कहा कि नवीन गोयल को हर बिरादरी का समर्थन है. उनके द्वारा गुरुग्राम के लोगों के हित में किए गए काम जाया नहीं जाएंगे. सुरेश गौड़, योगेश शर्मा, रमेश शर्मा ने कहा कि अपने धर्म का पालन करने में नवीन गोयल का साथ देंगे. उनको कामयाब बनाकर गुरुग्राम को बेहतर बनाएंगे
भगवान परशुराम के अस्त्र क्या थे?
परशुराम का मुख्य अस्त्र कुल्हाड़ी माना जाता है. इसे फारसा, परशु भी कहा जाता है. परशुराम ब्राह्मण कुल में जन्मे तो थे, परंतु उनमे युद्ध आदि में अधिक रुचि थी. इसीलिए उनके पूर्वज च्यावणा, भृगु ने उन्हें भगवान शिव की तपस्या करने की आज्ञा दी. अपने पूर्वजों कि आज्ञा से परशुराम ने शिवजी की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया. शिवजी ने उन्हें वरदान मांगने को कहा तब परशुराम ने हाथ जोड़कर शिवजी की वंदना करते हुए शिवजी से दिव्य अस्त्र तथा युद्ध में निपुण होने कि कला का वर मांगा. शिवजी ने परशुराम को युद्धकला में निपुणता के लिए उन्हें तीर्थ यात्रा की आज्ञा दी. तब परशुराम ने उड़ीसा के महेन्द्रगिरी के महेंद्र पर्वत पर शिवजी की कठिन एवं घोर तपस्या की.
उनकी इस तपस्या से एक बार फिर शिवजी प्रसन्न हुए. उन्होंने परशुराम को वरदान देते हुए कहा कि परशुराम का जन्म धरती के राक्षसों का नाश करने के लिए हुआ है इसीलिए भगवान शिवजी ने परशुराम को, देवताओं के सभी शत्रु, दैत्य, राक्षस तथा दानवों को मारने में सक्षमता का वरदान दिया. परशुराम युद्धकला में निपुण थे. ऐसी मान्यता है कि धरती पर रहने वालों में परशुराम और रावण के पुत्र इंद्रजीत को ही सबसे खतरनाक, अद्वितीय और शक्तिशाली अस्त्र ब्रह्मांड अस्त्र, वैष्णव अस्त्र तथा पशुपत अस्त्र प्राप्त थे.परशुराम शिवजी के उपासक थे. उन्होंने सबसे कठिन युद्धकला “कलारिपायट्टू”की शिक्षा शिवजी से ही प्राप्त की. शिवजी की कृपा से उन्हें कई देवताओं के दिव्य अस्त्र-शस्त्र भी प्राप्त हुए थे. “विजया” उनका धनुष कमान था, जो उन्हें शिवजी ने प्रदान किया था.
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