Holi 2022: फूल-लड्डू-लट्ठ से लेकर रंग और कीचड़ तक... ब्रज में ऐसे खेली जाती है होली

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Mar 15, 2022, 03:07 PM IST

कहा जाता है कि जिसने ब्रज की होली नहीं देखी, उसने दुनिया देखी भी तो क्या देखी.

डीएनए हिंदी: होली रंगों का त्योहार है, रसभरे रंगों और उमंग भरे गीतों का पर्व है. यह फसल तैयार होने के बाद मस्ती की धुन में झूमते किसानों का उत्सव है, लोक आस्थाओं और सनातन परंपराओं का आयोजन है. कोई नहीं जो इसके रंग में रंगे बिना दामन बचाकर निकल जाए. 

होली में लगने वाले रंग जितने गहरे होते हैं, उतनी ही गहरी परंपरा इस त्योहार को मनाने की रही है. हिंदू मान्यताओं में शायद ही कोई देवी-देवता हो जो होली के रंग में न रंगे हों. हर भगवान के साथ होली की मान्यता जुड़ी है लेकिन कहा जाता है कि जिसने ब्रज की होली नहीं देखी, उसने दुनिया देखी भी तो क्या देखी.

ब्रज की होली की बात ही अलग है. देश-विदेश से लोग यहां  होली का आनंद लेने आते हैं. त्योहार के कुछ दिनों पहले से ही मथुरा में अलग-अलग तरह की होली का जश्न शुरू हो जाता है जो लगभग 40 दिनों तक चलता है. लड्डू की होली, फूलों की होली, लट्ठमार होली, रंगवाली होली और कीचड़ की होली का खूब जश्न मनाया जाता है. आइए जानते हैं कृष्ण की नगरी ब्रज में खेली जानी वाली होली की शुरुआत कब और कैसे हुई-

लड्डू की होली


कहा जाता है कि श्रीजी लाड़ली मंदिर में लड्डुओं के साथ होली खेलने की परंपरा द्वापर युग से शुरू हुई थी. मान्यताओं के अनुसार, द्वापर युग में राधा रानी के पिता वृषभानुजी ने कान्हा के पिता नंद बाबा को होली खेलने का न्योता दिया था. इसे स्वीकार करते हुए नंद बाबा ने पत्र लिखकर पुरोहित के हाथों बरसाने भिजवाया. इधर बरसाने में पुरोहित का जमकर स्वागत किया गया. यहां उन्हें एक थाली में ढेर सारे लड्डू दिए गए. इसके बाद बरसाने की गोपियां पुरोहित को रंग लगाने लगीं तो पुरोहित भी अपने बचाव में गोपियों को लड्डू मारने लगे. बस तभी से ब्रज में लड्डू की होली खेली जाती है. 

लट्ठमार होली


लट्ठमार होली खेलने की परंपरा भी भगवान कृष्ण और राधा रानी के समय से चली आ रही है. कहते हैं कि श्री कृष्ण होली के उत्सव में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया करते थे. इस मौके पर वे नंदगांव के ग्वाल बाल के साथ राधा रानी से मिलने उनके महल बरसाने जाते थे. वहीं होली की ठिठोलियों के बीच राधा रानी और उनकी सखियां छड़ी लेकर कान्हा और उनके ग्वालों के पीछे भागती थीं. तभी से लट्ठमार होली खेलने की परंपरा चली आ रही है. आज भी बरसाने और नंदगांव में इसी परंपरा को निभाया जाता है.इस होली को देखने को लिए देश विदेश से लाखों लोग ब्रज आते हैं. फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को राधारानी की नगरी बरसाने में लट्ठमार होली खेली जाती है. आज भी नंदगांव के ग्वाल बाल राधा रानी के महल आते हैं और फिर बरसाने की सखियां ग्वालबालों के साथ लट्ठमार होली खेलती हैं. 

फूलों की होल


माना जाता है कि श्री कृष्ण ने होली खेलने की शुरुआत रमणरेती से की थी. यही वजह है कि ब्रज में होली का शुभारंभ रमणरेती में फूलों की होली के साथ किया जाता है. भगवान कृष्ण और राधा रानी के भक्त फूलों की होली खेलते हैं और ब्रज की गलियां भीनी-भीनी खुशबू से महक उठती हैं. 

रंगवाली होली


वैसे तो दुनिया भर में रंगों की होली मनाई जाती है लेकिन कान्हा की नगरी ब्रज में खेली जाने वाली होली अपने आप में पूरे विश्व को समेटे हुए है. होली के 1 महीने पहले से ही ब्रजवासियों में अलग उत्साह देखने को मिलता है. ढोलक की थाप और मजीरों की झनकारों के बीच उड़ते गुलाल किसी का भी मन मोह लेने के लिए काफी हैं.

कीचड़ की होली


धुलेंडी के दिन रंगों की होली खेलने के बाद ब्रज में गोबर या कीचड़ की भी होली खेली जाती है. कीचड़ से होली खेलने की परंपरा भी यहां सदियों से चली आ रही है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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