डीएनए हिंदीः गंगाजल में कभी बदबू नहीं आती और इसका जल कभी खराब भी नहीं होता. हिंदू धर्म में जीवन के अंतिम समय तक में गंगाजल मुख में डालकर आत्मा की विदाई होती है. क्या आपको पता है कि गंगाजल कहीं भी लाया- लेजाया सकता है लेकिन एक खास नदी को पार कर गंगाजल लाना मना होता है.मान्यता है कि ये नदी गंगाजल के कर्म का नाश कर देती है और इस नदी का नाम भी कर्मनाशा है.
चलिए ज्योतिषाचार्य प्रीतिका मौजूमदार से 27 अप्रैल को गंगा सप्तमी के अवसर पर कर्मनाशा नदी के बारे में जानें, जिसे पार करने से गंगाजल की शक्तियां क्षीण हो जाती हैं और वह साधारण पानी समान हो गया होगा. यूपी-बिहार के बीच बहने वाली कर्मनाशा का पानी को छूने से भी लोग डरते हैं क्योंकि ये कर्म का नाश कर देती है. यह एक शापित नदी है और मान्यता है कि इस नदी के पानी से हरा-भरा पेड़ भी सूख जाता है.
तो चलिए जाने उत्तर प्रदेश और बिहार में बहने वाली शापित नदी कर्मनाशा की वह कहानी जिसकी वजह से लोग इसके जल को छूने से भी डरते हैं.
कर्मनाशा होने का कारण गंगाजल बनता है पानी
अगर आप गंगाजल लेकर कर्मनाशा नदी को पार करते हैं तो इसका जल इस नदी के प्रभाव से अपनी शक्तियां खो देता है. क्योंकि गंगाजल अपने मूल रूप यानी नदी रूप में नहीं होता है. जबकि यही नदी जब बक्सर में गंगा से मिलती है तो गंगा इस नदी को खुद में समाहित कर इसके बुरे कर्मों का नाश कर देती है, क्योंकि तब गंगा अपने मूल रूप यानी नदी में होती है.
बिहार से निकलती है नदी
कर्मनाशा नदी का उद्गम बिहार के कैमूर जिले से हुआ है. यह बिहार के अलावा उत्तर प्रदेश के भी कुछ हिस्से में बहती है. यूपी में यह नदी 4 जिलों सोनभद्र, चंदौली, वाराणसी और गाजीपुर से होकर बहती है और बिहार में बक्सर के समीप गंगा नदी इस नदी को खुद में समा लेती हैं और इसके पापों का नाश कर देती हैं.
कर्मनाशा नदी ऐसे प्रकट हुई
नदी के बारे में एक पौराणिक कथा प्रचलित है. राजा हरिश्चन्द्र के पिता थे राजा सत्यव्रत.पराक्रमी होने के साथ ही यह दुष्ट आचरण के थे. राजा सत्यव्रत अपने गुरु वशिष्ठ के पास गए और उनसे सशरीर स्वर्ग जाने की इच्छा प्रकट की. गुरु ने ऐसा करने मना कर दिया तो राजा विश्वामित्र के पास पहुंचे और उनसे सशरीर स्वर्ग भेजने का अनुरोध किया. वशिष्ठ से शत्रुता के कारण और तप के अहंकार में विश्वामित्र ने राजा सत्यव्रत को सशरीर स्वर्ग भेजना स्वीकार कर लिया.
विश्वामित्र के पास गए त्रिशंकु
विश्वामित्र के तप से राजा सत्यव्रत सशरीर स्वर्ग पहुंच गए जिन्हें देखकर इंद्र क्रोधित हो गए और उलटा सिर करके वापस धरती पर भेज दिया. लेकिन विश्वामित्र ने अपने तप से राजा को स्वर्ग और धरती के बीच रोक लिया. बीच में अटके राजा सत्यव्रत त्रिशंकु कहलाए.
राजा की लार से बन गई नदी
देवताओं और विश्वामित्र के युद्ध में त्रिशंकु धरती और आसमान के बीच में लटके रहे थे. राजा का मुंह धरती की ओर था और उससे लगातार तेजी से लार टपक रही थी. उनकी लार से ही यह नदी प्रकट हुई. ऋषि वशिष्ठ ने राजा को चांडाल होने का शाप दे दिया था और उनकी लार से नदी बनी थी इसलिए इसे अपवित्र माना गया साथ ही यह भी धारणा कायम हो गई कि इस नदी के जल को छूने से समस्त पुण्य नष्ट हो जाएंगे.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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