Govardhan Puja Aarti And Katha 2024: इस आरती और कथा के बिना अधूरी है गोवर्धन पूजा, जल्द पूरी होगी मनोकामना

Written By नितिन शर्मा | Updated: Nov 02, 2024, 12:51 PM IST

गोवर्धन पूजा में आरती और कथा का बड़ा महत्व है. इससे भगवान श्रीकृष्ण भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं. इससे भक्तों की हर इच्छा पूर्ण होती है.

 

 

गोवर्धन पूजा हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाई जाती है. इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने इद्र देव को पराजित कर दिया था. तभी से इस दिन को गोवर्धन पूजा के रूप में मनाया जाने लगा है. गोवर्धन पूजा को अन्नकूट पूजा भी कहा जाता है. गाय के गोबर से घर में छोटा सा गोवर्धन पर्वत बनाकर शाम के समय उसकी पूजा अर्चना की जाती है. साथ ही 56 भोग और कथा और आरती की जाती है. गोवर्धन पूजा बिना आरती और कथा के अधूरी मानी जाती है. पूजा में आरती, कथा के बाद श्रीकृष्ण भगवान को भोग लगाने पर पूजा पूर्ण मानी जाती है. गोवर्धन महाराज भक्त की हर मनोकामन को पूर्ण करते हैं...

गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त (Govardhan Puja 2024 Muhurat)

गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त 2 नवंबर 2024 शनिवार को सुबह 5 बजकर 34 मिनट से लेकर सुबह 8 बजकर 46 मिनट तक रहेगा. इसमें भक्तों को करीब 2 घंटे 12 मिनट का समय मिलेगा. वहीं दूसरा शुभ मुहूर्त शाम 3 बजकर 23 मिनट से शाम 5 बजकर 35 मिनट तक रहेगा. इसमें भी भक्तों को 2 घंटे 12 मिनट तक पूजा का समय मिलेगा.  

गोवर्धन महाराज की आरती (Govardhan Maharaj Aarti 2024)

श्री गोवर्धन महाराज, महाराज,
तेरे माथे मुकुट विराज रह्यो .
श्री गोवर्धन महाराज, महाराज,
तेरे माथे मुकुट विराज रह्यो .
तोपे पान चढ़े, तोपे फूल चढ़े,
तोपे पान चढ़े, तोपे फूल चढ़े,
तोपे चढ़े ( जय हो )
तोपे चढ़े ( जय हो )
तोपे चढ़े दूध की धार, हो धार,
तेरे माथे मुकुट विराज रह्यो,
श्री गोवर्धन महाराज, महाराज,
तेरे माथे मुकुट विराज रह्यो .
तेरे कानन कुंडल साज रहे,
तेरे कानन कुंडल साज रहे,
ठोड़ी पे ( जय हो )
ठोड़ी पे ( जय हो )
ठोड़ी पे हीरा लाल, हो लाल,
तेरे माथे मुकुट विराज रह्यो,
श्री गोवर्धन महाराज, महाराज,
तेरे माथे मुकुट विराज रह्यो .
तेरे गले में कंठा सोने को,
तेरे गले में कंठा सोने को,
तेरी झांकी ( जय हो )
तेरी झांकी ( जय हो )
तेरी झांकी बनी विशाल, हो विशाल,
तेरे माथे मुकुट विराज रह्यो,
श्री गोवर्धन महाराज, महाराज,
तेरे माथे मुकुट विराज रह्यो .
तेरी सात कोस की परिक्रमा,
तेरी सात कोस की परिक्रमा,
और चकले ( जय हो )
और चकले ( जय हो )
और चकलेश्वर विश्राम, विश्राम,
तेरे माथे मुकुट विराज रह्यो,
श्री गोवर्धन महाराज, महाराज,

तेरे माथे मुकुट विराज रह्यो .
श्री गोवर्धन महाराज, महाराज,
तेरे माथे मुकुट विराज रह्यो .

श्रीकृष्ण की आरती

आरती कुंजबिहारी की,श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ..
आरती कुंजबिहारी की,श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ..

गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला
श्रवण में कुण्डल झलकाला,नंद के आनंद नंदलाला

गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली
लतन में ठाढ़े बनमाली भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक

चंद्र सी झलक, ललित छवि श्यामा प्यारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की, आरती कुंजबिहारी की..

कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं.
गगन सों सुमन रासि बरसै, बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग ग्वालिन संग.

अतुल रति गोप कुमारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ..

.. आरती कुंजबिहारी की..

जहां ते प्रकट भई गंगा, सकल मन हारिणि श्री गंगा.
स्मरन ते होत मोह भंगा, बसी शिव सीस.

जटा के बीच,हरै अघ कीच, चरन छवि श्रीबनवारी की

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ..

.. आरती कुंजबिहारी की..

चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू

चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू

हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद, कटत भव फंद.

टेर सुन दीन दुखारी की

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ..

.. आरती कुंजबिहारी की..

आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की..

आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ..

गोवर्धन पूजा की पौराणिक कथा (Govardhan Puja Katha)

गोवर्धन पूजा का पर्व भगवान श्री कृष्ण की अद्भुत लीलाओं का स्मरण कराता है. इस पूजा में विशेष रूप से गोवर्धन पर्वत, गाय की कृपा के लिए हमारी कृतज्ञता को प्रकट किया जाता है. आइए पढ़ते हैं गोवर्धन की भागवत कथा…

शास्त्रों में वर्णित गोवर्धन पूजा कथाओं के अनुसार, द्वापर युग की बात है एक बार देवराज इंद्र को अपनी पूजा आदि किए जाने का अहंकार हो गया. उस समय द्वापर युग में धरती पर लीला कर रहे भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण ने इंद्रदेव का अंहकार तोड़ने का सोचा. इस पर इंद्रदेव नाराज हो गये. उन्होंने भारी बारीश शुरू कर दी. इससे सभी लोग परेशान हो गये. खुद बचाने के लिए सभी भाग दौड़ रहे थे. तभी श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठा लिया और सभी वासियों और पशुओं को उसके नीचे रखा. इस पर इंद्रदेव और नाराज हो गये. उन्होंने भारी वर्षा की, लेकिन इंद्र देव की नाराजगी का श्रीकृष्ण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. परेशान होकर इंद्रराज भगवान शिव के पास पहुंचे, जहां भगवान शिव ने उन्हें बताया कि श्रीकृष्ण भगवान विष्णु का अवतार हैं. इसके बाद इंद्रराज ने श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी. तभी से गोवर्धन पूजा में श्रीकृष्ण को 56 भोग लगाएं जाने लगे.