डीएनए हिंदी: हिंदू धर्म में सभी त्योहारों का एक अलग ही महत्व है. इनमें दिवाली से लेकर गोवर्धन तक सभी शामिल हैं. दिवाली पर आने वाले पांच दिवसीय त्योहारों में गोवर्धन की पूजा भी अहम होती है. देशभर में इसे बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन शाम के समय घर के आंगन में गाय के गोबर से गिरिराज पर्वत बनाया जाता है. इन्हें अन्नकूट का भोग लगाया जाता है. साथ ही भगवान श्री कृष्ण की पूजा की जाती है. मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान से पूजा करने से श्री कृष्ण जिन्हें गिरिराज भी कहा जाता है. गिरिराज भगवान प्रसन्न होते हैं. सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं.
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार गोवर्धन पूजा के दिन उनकी कथा पढ़ने के साथ ही गिरिराज भगवान की चालीसा चाहिए. इसके बाद अन्नकूट का भोग लगाना चाहिए. ऐसा करने से पाठ किया जाए तो व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. आइए जानते हैं किस समय करें गिरिराज भगवान की पूजा और पाठ...
ऐसे करें गोवर्धन पूजा और कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, श्री कृष्ण ने देखा कि सभी बृजवासी इंद्र की पूजा कर रहे थे, जब उन्होंने अपनी मां को भी इंद्र की पूजा करते हुए देखा तो सवाल किया कि लोग इन्द्र की पूजा क्यों करते हैं, उन्हें बताया गया कि वह वर्षा करते हैं, जिससे अन्न की पैदावार होती और हमारी गायों को चारा मिलता है. तब श्री कृष्ण ने कहा ऐसा है तो सबको गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि हमारी गायें तो वहीं चरती हैं.
उनकी बात मान कर सभी ब्रजवासी इंद्र की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे. देवराज इन्द्र ने इसे अपना अपमान समझा और प्रलय के समान मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी. तब भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा कर ब्रजवासियों की भारी बारिश से रक्षा की थी. इसके बाद इंद्र को पता लगा कि श्री कृष्ण वास्तव में विष्णु के अवतार हैं और अपनी भूल का एहसास हुआ. इसके बाद में इंद्र देवता को भी भगवान कृष्ण से क्षमा याचना करनी पड़ी. इन्द्रदेव की याचना पर भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को नीचे रखा और सभी ब्रजवासियों से कहा कि अब वे हर साल गोवर्धन की पूजा कर अन्नकूट पर्व मनाए. तब से ही यह पर्व गोवर्धन के रूप में मनाया जाता है.
गिरिराज जी महाराज की चालीसा से पूर्ण होगी
बंदहु वीणा वादिनी, धर गणपति कौ ध्यान .
महाशक्ति राधा सहित, कृष्ण करौ कल्याण ..
सुमिरन कर सब देवगण, गुरु-पितु बारम्बार .
वरणों श्री गिरिराज यश, निज मति के अनुसार ..
जय हो जग बंदित गिरिराजा .
ब्रज मण्डल के श्री महाराजा ..
विष्णु रूप तुम हो अवतारी .
सुन्दरता पर जग बलिहारी ..
स्वर्ण शिखर अति शोभा पावें .
सुर-मुनिगण दरशन कुं आवें ..
शांत कंदरा स्वर्ग समाना .
जहां तपस्वी धरते ध्याना ..
द्रोणागिरि के तुम युवराजा .
भक्तन के साधौ हौ काजा .
मुनि पुलस्त्य जी के मन भाये .
जोर विनय कर तुम कूं लाये ..
मुनिवर संग जब ब्रज में आये .
लखि ब्रजभूमि यहां ठहराये ..
बिष्णु-धाम गौलोक सुहावन .
यमुना गोवर्धन वृन्दावन ..
देव देखि मन में ललचाये .
बास करन बहु रूप बनाये ..
कोउ वानर कोंउ मृग के रूपा .
कोउ वृक्ष कोउ लता स्वरूपा ..
आनंद लें गोलोक धाम के .
परम उपासक रूप नाम के ..
द्वापर अंत भये अवतारी .
कृष्णचन्द्र आनंद मुरारी ..
महिमा तुम्हरी कृष्ण बखानी .
पूजा करिबे की मन ठानी ..
ब्रजवासी सब लिये बुलाई .
गोवर्धन पूजा करवाई ..
पूजन कूं व्यंजन बनवाये .
ब्रज-वासी घर घर तें लाये ..
ग्वाल-बाल मिलि पूजा कीनी .
सहस्त्र भुजा तुमने कर लीनी ..
स्वयं प्रकट हो कृष्ण पुजावें .
माँग-माँग के भोजन पावें ..
लखि नर-नारी मन हरषावें .
जै जै जै गिरवर गुण गावें ..
देवराज मन में रिसियाए .
नष्ट करन ब्रज मेघ बुलाए ..
छाया कर ब्रज लियौ बचाई .
एकऊ बूँद न नीचे आई ..
सात दिवस भई बरखा भारी .
थके मेघ भारी जल-धारी ..
कृष्णचन्द्र ने नख पै धारे .
नमो नमो ब्रज के रखवारे..
कर अभिमान थके सुरराई .
क्षमा मांग पुनि अस्तुति गाई ..
त्राहिमाम मैं शरण तिहारी .
क्षमा करौ प्रभु चूक हमारी ..
बार-बार बिनती अति कीनी .
सात कोस परिकम्मा दीनी ..
सँग सुरभी ऐरावत लाये .
हाथ जोड़ कर भेंट गहाये ..
अभयदान पा इन्द्र सिहाये .
करि प्रणाम निज लोक सिधाये ..
जो यह कथा सुनें, चित लावें .
अन्त समय सुरपति पद पावें ..
गोवर्धन है नाम तिहारौ .
करते भक्तन कौ निस्तारौ ..
जो नर तुम्हरे दर्शन पावें .
तिनके दु:ख दूर ह्वै जावें ..
कुण्डन में जो करें आचमन .
धन्य-धन्य वह मानव जीवन ..
मानसी गंगा में जो नहावें .
सीधे स्वर्ग लोक कूं जावें ..
दूध चढ़ा जो भोग लगावें .
आधि व्याधि तेहि पास न आवें ..
जल, फल, तुलसी-पत्र चढ़ावें .
मनवांछित फल निश्चय पावें ..
जो नर देत दूध की धारा .
भरौ रहै ताकौ भंडारा ..
करें जागरण जो नर कोई .
दु:ख-दारिद्रय-भय ताहि न होई ..
श्याम शिलामय निज जन त्राता .
भुक्ति-मुक्ति सरबस के दाता ..
पुत्रहीन जो तुमकूं ध्यावै .
ताकूं पुत्र-प्राप्ति ह्वै जावै ..
दंडौती परिकम्मा करहीं .
ते सहजही भवसागर तरहीं ..
कलि में तुम सम देव न दूजा .
सुर नर मुनि सब करते पूजा ..
Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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